नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक अध्यादेश में दखल देने से इंकार किया. CJI रंजन गोगोई ने याचिकाकर्ताओं को कहा कि आपके पास कोई तथ्य हो सकता है, लेकिन हम दखल नहीं देंगे. याचिका में तीन तलाक अध्यादेश को अंसवैधानिक करार देने की मांग की गई है. याचिका में कहा गया है कि ये अध्यादेश मनमाना और भेदभाव पूर्ण है. ये अध्यादेश असंवैधानिक है और समानता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. साथ ही ये धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के भी खिलाफ है. समस्त केरल जमियत उलेमा, यूपी के फैजाबाद के सैंयद फारुक और मोहम्मद सिद्धकी ने दाखिल की है याचिकाएं.

गौरतलब है कि पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने एक एेहतिहासिक फैसले में मुस्लिम समुदाय में 1400 सालों से चल रहे तीन तलाक(तलाक-ए-बिद्दत) के प्रचलन को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि तीन तलाक, मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.

पांच जजों की संविधान पीठ ने बहुमत (3:2) के आधार पर दिए गए इस फैसले में कहा कि तीन तलाक साफ तौर पर मनमाना है क्योंकि इसके तहत मुस्लिम पुरुष वैवाहिक संबंधों को खत्म करने की इजाजत देता है वह भी संबंध को बचाने का प्रयास करने के बगैर. लिहाजा संविधान के अनुच्छेद-25 यानी धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत इस प्रथा पको संरक्षण नहीं दिया जा सकता.

दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट ने सितंबर महीने में तीन तलाक (इंस्टैंट ट्रिपल तलाक) पर अध्‍यादेश को मंजूरी दे दी थी. संसद के मॉनसून सत्र के दौरान राज्यसभा में हंगामे और राजनीतिक सहमति न बन पाने की वजह से तीन तलाक पर संशोधन बिल पास नहीं हो सका था. यही वजह है कि मोदी कैबिनेट ने अध्यादेश लाकर इसे पास किया. इस बिल में 9 अगस्त को तीन संशोधन किए थे, जिसमें ज़मानत देने का अधिकार मजिस्ट्रेट के पास है और कोर्ट की इजाज़त से समझौते का प्रावधान भी है. इस पर राष्ट्रपति ने भी मुहर लगा दी थी.