लखनऊ: लोक निर्माण विभाग उ.प्र. में मुख्यालय पर, प्रदेशा में तैनात अवर अभियंताओं का प्रदेश स्तरीय व्यवस्थापन का दायित्व निवर्हन कर रहे वरिश्ठ स्टाफ आफिसर इं. अरविन्द कुमार जैन एवं उनको संरक्षण दे रहे शासन के कुछ अधिकारियों की पोल सर्वोच्च न्यायालय में खुल गयी। अपात्रों को प्रोन्नति मामले में जिरह के दौरान सर्वोच्च न्यायालय में उत्तर प्रदेश लोक निर्माण विभाग की खूब किरकिरी हुई। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति अरूण मिश्र एवं न्यायमूर्ति विनीत शरण ने भरी अदालत में जमकर फटकार लगाई। सरकार का पक्ष रख रहे सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता एवं एडिशनल एडवोकेट जनरल अजय कुमार मिश्र को भरी अदालत में उ.प्र. सरकार की तरफ से कईबार माफी मांगनी पड़ी। इसके बावजूद सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में उ0प्र0 सरकार के विरूद्ध तल्ख टिप्पणी की। प्रकरण यह है कि वर्ष 2009 में भ्रष्टाचार के तहत शासन में नियुक्त एक अधिकारी ने विभाग के वरिष्ठ एवं सेवानिवृति की कगार पर खड़े अवर अभियंता को दरकिनार कर नव नियुक्त प्रोवेशनर अवर अभियंताओं को नियमावली एवं उच्च न्यायालय के निर्णय के विरूद्ध बैक डेट में रिक्तियां सृजित कर प्रोन्नति करने का प्रयास किया। डिप्लोमा इंजीनियर्स संघ ने इसका विरोध किया। लोक निर्माण विभाग के तत्कालीन प्रमुख अभियंता एवं विभागाध्यक्ष भी इस प्रोन्नति के पक्ष में नही थे। इन सबको दरकिनार कर प्रोन्नति जारी कर दी गयी।

इस मामले में मजबूरन डिप्लोमा इंजीनियर्स संघ को उच्च न्यायालय की शरण लेनी पड़ी। उच्च न्यायालय ने डिप्लोमा इंजीनियर्स संघ बनाम उ.प्र. सरकार की रिट में 8 सितम्बर 2011 को निर्णय देते हुए नवनियुक्त अवर अभियंताओं को अपात्र माना साथ ही साथ बैक डेट में रिक्तियों के सृजन को भी अवैध पाते हुए पदोन्नतियां निरस्त कर दी। इस निर्णय के विरूद्ध सर्वाेच्च न्यायालय में अलग-अलग पांच एसएलपी दाखिल हुई। सर्वोच्च न्यायालय ने स्थगन देने से मना कर दिया। मजबूरन शासन को 2जनवरी .2012 को इन अपात्र अवर अभियंताओं को पदावनत करना पड़ा। तीन वर्ष बाद इनमें से दो पदावनत एवं अपात्र अवर अभियंताओं द्वारा प्रोन्नति हेतु प्रत्यावेदन दिया, इस प्रत्यावेदन के आधार पर शासन द्वारा इन्हें प्रोन्नत प्रदान करने हेतु पात्रता सूची लोक सेवा आयोग को प्रेषित कर दी गयी। इनकी प्रोन्नति पर उच्च न्यायालय द्वारा तथा कालान्तर में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 12 जनवरी .2016 को रोक लगा दी गयी। वर्ष 2017 में इन्हीं दो अपात्र/पदावनत अवर अभियंताओं द्वारा पुनः शासन/लोक निर्माण विभाग को प्रतिवादी बनाते हुए अपनी पदोन्नति हेतु उच्च न्यायालय में रिट याचिका दाखिल की। विभाग की तरफ से प्रतिपक्षी के रूप में पैरवी करने का दायित्व श्री अरविन्द कुमार जैन, वरिश्ठ स्टाफ आफिसर का था। अरविन्द कुमार जैन द्वारा भ्रष्टाचार के तहत डिग्रीधारी अवर अभियंताओं से मिलीभगत कर उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय के स्थगन आदेश को उच्च न्यायालय के समक्ष न रखने के कारण उच्च न्यायालय द्वारा 4.अप्रैल 2017 को इन दोनों अपात्र/पदावनत अभियंताओं को पदोन्नत करने का आदेश जारी कर दिया गया। इस आदेश के विरूद्ध डिप्लोमा इंजीनियर्स संघ सर्वोच्च न्यायालय गया तब सर्वोच्च न्यायालय ने 31.जुलाई.2017 को इन दोनों अपात्र/पदावनत अवर अभियंताओं की पदोन्नति पर पुनः रोक लगा दी। कालान्तर में शासन/विभाग ने भी उच्च न्यायालय के उसी निर्णय के विरूद्ध सर्वोच्च न्यायालय में एसएलपी दाखिल करने का निर्णय लिया। पैरोकार अरविन्द कुमार जैन वादीगणों के प्रोन्नति के विरूद्ध पूर्व में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी दोनों स्थगन आदेश 12 जनवरी 2016 एवं 31 जुलाई .2017 को रिकार्ड नही लाये। दोनो स्थगन आदेष को छुपाये जाने के कारण सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सरकार के विरूद्ध निर्णय दिया गया। संघ के पत्र पर प्रमुख अभियंता (विकास) एवं विभागाध्यक्ष वी.के. सिंह द्वारा पुनर्विचार याचिका दाखिल करने हेतु शासन को पत्र लिखा। परन्तु भ्रश्टाचार के तहत यही जिम्मेदार अधिकारी/ कर्मचारी पुनर्विचार याचिका डालने के प्रकरण पर लीपापोती कर ठंडे बस्ते में डाल दिया तथा विरोधाभाशी आदेष के अनुपालन करने के लिए बेचैन हो उठे तथा भ्रश्टाचार के तहत 2 के अतिरिक्त अन्य 103 अपात्र अवर अभियंताओं (कुल 105) अपात्र अवर अभियंताओं को पदोन्नति देने के लिए आनन फानन में पात्रता सूची लोक सेवा आयोग को प्रेशित कर दी ओर डीपीसी की तिथि निर्धारित करा दी। अब इस मामले में सर्वाच्च न्यायालय ने शासन के आचरण पर भी सवाल उठाये एवं उसे विपक्षी से मिल कर साजिशन सर्वोच्च न्यायालय से विरोधाभाशी आदेष प्राप्त करने का दोषी बताया।

संघ के प्रान्तीय अध्यक्ष इं. हरि किशोर तिवारी, वरिष्ठ उपाध्यक्ष इं. दिवाकर राय, प्रान्तीय महामंत्री इं. वी.क. कुषवाहा, प्रान्तीय अतिरिक्त महामंत्री इं. एन.डी. द्विवेदी एवं प्रान्तीय मंत्री वित्त इं. अरूण कुमार मिश्र, मंत्री वाद (. सर्वोच्च न्यायालय) इं. पुरातन कुमार ने .मुख्य मंत्री, . उप मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव एवं अन्य उच्चाधिकारियों से भ्रश्टाचार में लिप्त दोशी अधिकारियों/कर्मचारी को दण्डित करने की मांग की है। प्रान्तीय अध्यक्ष इं. हरि किषोर तिवारी ने .सर्वोच्च न्यायालय के दो स्थगन आदेष के विरूद्ध जा कर अपात्रों को प्रोन्नत कराने के जिम्मेदार अधिकारियों के विरूद्ध संघ द्वारा . सर्वोच्च न्यायालय में अवमानना वाद भी दायर किये जाने का निर्णय लिया है।