नई दिल्ली: प्रशासकों की समिति का कहना है कि बीसीसीआई को उसकी बहुप्रतीक्षित सालाना आम बैठक और चुनावों से पहले किसी भी विवाद से निपटने के लिए लोकपाल और एक नैतिकता अधिकारी की यथाशीघ्र नियुक्ति करनी होगी। उच्चतम न्यायालय में रखी गई 10वीं स्थिति रिपोर्ट में सीओए ने बताया कि आगामी चुनावों से पहले ये नियुक्तियां क्यों जरूरी हैं।

सीओए ने रिपोर्ट में कहा, 'बीसीसीआई के नए संविधान के तहत सालाना आम बैठक में लोकपाल की नियुक्ति बेहद जरूरी है ताकि विवादों का निष्पक्ष निपटान हो सके।' इसमें यह भी कहा गया कि लोकपाल सेवानिवृत्त न्यायाधीश या उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश होना चाहिए और उसे एक साल का कार्यकाल दिया जाना चाहिए जो तीन साल तक बढाया जा सके। अभी यह पता नहीं है कि बीसीसीआई की सालाना आम बैठक कब होगी और बोर्ड के चुनाव कहां होंगे।

उच्चतम न्यायालय के नौ अगस्त के आदेश में मंजूरी प्राप्त नए संविधान के तहत बैठक बुलाई जाएगी। इस आदेश में राज्य संघों को 30 दिन का समय दिया गया है लेकिन उनमें से कुछ आयु और पदाधिकारियों के कार्यकाल समेत कुछ बदलावों का विरोध अभी भी कर रहे हैं। सीओए ने कहा कि लोकपाल की नियुक्ति होने पर वह बीसीसीआई सदस्यों और आईपीएल टीमों की शिकायतों का निवारण करेगा। इसके अलावा अनुशासनहीनता, दुर्व्यवहार जैसे मसले भी वह सुलझाएगा।

नैतिकता अधिकारी की जरूरत के बारे में सीओए ने कहा, 'यह जरूरी है कि बीसीसीआई अपने पहले नैतिकता अधिकारी की जल्दी नियुक्ति करे ताकि हितों के टकराव संबंधी शिकायतों का हल पूर्णत: योग्य व्यक्ति निकाल सके।' भारत के पूर्व नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक और भारतीय महिला टीम की पूर्व कप्तान डायना एडुल्जी की सदस्यता वाली समिति ने कोषों का दुरूपयोग रोकने के लिए राज्य संघों के लेखों के फारेंसिक आडिट की भी मांग की।

सीओए ने न्यायालय को बताया कि सात राज्य संघों ने अभी तक नौ अगस्त के फैसले पर अमल करने संबंधी रिपोर्ट जमा नहीं की है और ना ही अपने संविधान में सुधार किया है। इन राज्यों में हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, मेघालय, नगालैंड और अरूणाचल प्रदेश शामिल हैं।