तौसीफ कुरैशी

राज्य मुख्यालय लखनऊ। पिछले आमचुनाव 2014 में मोदी मैजिक कहे या RSS के मकडजाल को श्रेय दें या पीके की कूटनीतिक चालों को जीत का कारण माने यह तय करना तो अलग बात हुई परन्तु एक ख़ास तरह की मीडिया ने जिसका काम झूठ को ही सच बनाकर पेश करना है उसी ने पीके नाम को काफ़ी बढ़ा चढ़ाकर पेश किया था लेकिन असल कारण कुछ और ही थे जिनकी वजह से मोदी की भाजपा ने 2014 के आमचुनाव में फ़तह हासिल की थी पर मीडिया के द्वारा पीके को लेकर जो प्रस्तुति करण किया गया था उससे प्रेरित होकर बिहार के पिछले विधानसभा चुनाव में पीके को नीतीश कुमार ने जदयू के लिए हायर किया और बिहार भी जीत गए फिर क्या था पीके-पीके-पीके सियासत में वह नाम हो गया कि अगर पीके हमारे साथ आ गए तो हम भी जीतने में सफल हो जाएँगे इसी को ध्यान में रखते हुए यूपी में 1989 के बाद से म्रतप्राय हो चुकी कांग्रेस के आलाकमान को भी लगा कि पीके की नीतियाँ शायद कुछ काम कर जाए परन्तु यहाँ कांग्रेस के लिए पीके की कोई नीति काम न आई और इसबार तो कांग्रेस के इतिहास का सबसे ख़राब प्रदर्शन रहा अब यह सवाल उठने लगे कि पीके की नीतियाँ कहाँ गई जिसने मोदी की भाजपा को व बिहार में महागठबंधन को जीत दिलवाई यूपी में वह सब कुछ करने के बाद भी हार गए जबकि दोनों ही जीत में पीके का कोई कमाल नही था मोदी की भाजपा की जीत झूट की बुनियाद पर आधारित थी उन्होंने जनता के सामने ऐसे-ऐसे वायदे किए जिन्हें वह पूरे नही कर सकते थे परन्तु चुनाव जीतना था यह बात अलग है कि वही वायदे उनके गले की फाँस बन रहे है और बिहार में जीत का कारण महागठबंधन था अगर पीके का कमाल था यूपी में उनके कमाल का जादू क्यों नही चला तो यही कहा जा सकता है की पीके का फ़ार्मूला बिहार में भी फिर यूपी की तरह ध्वस्त होता दिख रहा है, लेकिन बिहार में लोकसभा की 40 सीटों पर मोदी की भाजपा और नीतीश की जेडीयू भले ही आधी-आधी सीटों पर चुनाव लड़ें।मगर सेकुलर सियासत के अलमबरदार लालू प्रसाद यादव की आरजेडी और कांग्रेस एक होकर लड़े तो बिहार में मोदी की भाजपा व नीतीश की जदयू चारों खाने चित होती नजर आएगी।मीडिया और सोशल मीडिया के रुझानों और पिछले दिनों हुए लोकसभा और विधानसभा के कई उपचुनाव में लालू की आरजेडी की जीत को देखते हुए ये आसानी से कहा जा सकता है कि बिहार में जनता का मूड क्या है।बैकवर्ड क्लास की नीतीश कुमार से नाराजगी, बढ़ते अपराध और साम्प्रदायिक दंगों होने की वजह से RSS की सोच से प्रेरित गोदी मीडिया ने सुशासन बाबू के नाम से प्रचारित किया जाता था उसकी हवा पहले ही निकाल दी है।आरजेडी-कांग्रेस महागठबंधन बढ़त पे लग रहा है।बिहार के बड़े भाजपा लीडर शत्रुघन सिन्हा आरजेडी के साथ होने के संकेत दे रहे हैं अब केंद्र में मंत्री उपेंद्र कुशवाहा भी आरजेडी के साथ जाने में अपना फायदा देख रहे हैं इसी लिए बिहार में अलग ही समीकरण बनते जा रहे है सियासत में मौसम वैज्ञानिक के नाम से पहंचान बना चुके राम विलास पासवान के भी चुनाव आने तक पाला बदलने की सम्भावनाओ से इंकार नही किया जा सकता है उनका यही सियासी इतिहास रहा है कि जिस तरफ़ की हवा चलती है वह अपने आपको वही फीट कर लेते है उनके बारे में सियासी गलियारों में कहा जाता है कि भारत की सियासत में राम विलास पासवान ऐसा फ़ोटो है जो किसी भी फ़्रेम में फ़िट हो जाते है अगर यह सब हुआ या नही भी हुआ बिहार की सियासत में महागठबंधन के हालात ठीक लग रहे है इस बार बिहार से भी पीके यूपी की तरह निराश हताश होकर लौटेंगे यही सियासी हवा बता रही है जब यही कहा जाएगा कि पीके पी-के आए पी-के चला गया।