नई दिल्ली: रॉयल स्वीडिश एकेडमी ने साल 2018 में शांति प्रयासों के लिए दिए जाने वाले नोबेल पुरस्कार की घोषणा कर दी है। इस घोषणा के मुताबिक इस साल डेनिस मुकवेगे और नादिया मुराद को शांति का नोबेल पुरस्कार दिया जाएगा। यह पुरस्कार इन शख्सियतों को, यौन हिंसा को युद्ध के तौर पर इस्तेमाल करने पर रोक लगाने के प्रयासों के तहत दिया जाएगा।

डेनिस मुकवेगे कांगो मूल के एक डॉक्टर हैं और पिछले काफी समय से राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर युद्ध के दौरान यौन हिंसा को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने मुखर विरोधी रहे हैं। वहीं नादिया मुराद, जो कि इराक के अल्पसंख्यक समुदाय यजीदी समुदाय से ताल्लुक रखती हैं, वह खुद भी खूंखार आतंकी संगठन आईएसआईएस द्वारा काफी समय तक बंधक बनाकर रखी गईँ और इस दौरान उनके साथ कई बार बलात्कार और अन्य तरीकों से शोषण किया गया। नादिया मुराद ने अपने साथ हुए शोषण के बारे में बताकर दुनिया को युद्ध के दौरान होने वाली यौन हिंसा को दुनिया के सामने लाने का काम किया। नादिया मुराद के नाम की घोषणा करते हुए कमेटी ने कहा कि ‘उन्होंने गजब के साहस के साथ अपनी पीड़ा को याद किया।’ वहीं डॉक्टर डेनिस मुकवेगे ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा रिपब्लिक ऑफ कांगो में यौन हिंसा के पीड़ितों की मदद करने में बिताया है। डॉ. डेनिस मुकवेगे और उनका स्टाफ अभी तक यौन हिंसा के शिकार हजारों लोगों की मदद कर चुके हैं।

बता दें कि आईएसआईएस द्वारा अगस्त, 2014 में नादिया मुराद के साथ ही उनकी बहन का भी अपहरण किया गया था। दोनों का अपहरण उत्तरी इराक के सिंजार इलाके में स्थित उनके गांव से ही किया गया था। इस दौरान नादिया के 6 भाईयों और उनकी मां को जेहादी आतंकियों ने मार डाला था। इसके बाद उनके साथ आतंकियों द्वारा कई बार बलात्कार किया गया। साल 2016 में नादिया को यूरोपियन संघ का सखारोव मानवाधिकार सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। इसी साल नादिया को यूरोप के वेकलेव हावेल मानवाधिकार सम्मान से भी नवाजा गया था। नादिया शांति का नोबेल पुरस्कार पाने वाली दूसरी सबसे युवा महिला हैं। पहले नंबर पर मलाला यूसुफजई का नाम है, जिन्हें 17 साल की उम्र में साल 2014 में यह पुरस्कार दिया गया था।