डा. अब्दुल कादिर जिलानी एमबीबीएस, एमडी (मनोरोग चिकित्सा), डीएनबी (मनोरोग चिकित्सा), डीएम (वयोवृद्ध मानसिक स्वास्थ्य), तथा जेरियाट्रिक स्पेसियलिटी इंडियन साइकिएट्रिक सोसायटी। के संयोजक के अनुसार बुजुर्गों की आबादी के अनुपात में अपेक्षित वृद्धि के कारण निकट भविष्य में डिमेंशिया (पागलपन) की बीमारी महामारी होने वाली है। डिमेंशिया के शुरूआती लक्षण आम तौर पर याद्दाश्त की समस्या, विशेष रूप से हाल की घटनाओं/ गतिविधियों को याद करने में कठिनाई है। विस्मृति (भुलक्कड़पन) अक्सर सतर्कता और एकाग्रता क्षमता कम होने तथा भ्रम बढ़ने से जुड़ी होती है। गैर-विशिष्ट मनोरोग लक्षण जैसे व्यक्तित्व और मूड में परिवर्तन, अवसाद/ चिंता आदि शुरूआती चरण में मौजूद हो सकते हैं।

हालांकि, न्यूरोपैथोलॉजिकल बदलाव के पैटर्न, हैतुकी और क्लीनिकल विशेषताओं के आधार पर वर्गीकृत डिमेंशिया कई प्रकार की होती है। सबसे ज्यादा सामान्य डिमेंशिया अल्जाइमर रोग तथा वैस्कुलर डिमेंशिया, लेवी बॉडी डिमेंशिया और फ्रंटो-टेंपोरल डिमेंशिया होती है। इसकी शुरूआत अक्सर 65 वर्ष से ज्यादा उम्र में होती है। डिमेंशिया पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में ज्यादा होती है। ऐसा महिलाओं की लंबी उम्र के कारण होता है। 65 वर्ष की उम्र में 6 में से 1 महिला को अल्जाइमर रोग होने की संभावना होती है जबकि 11 में से 1 पुरुष में इसके होने की संभावना रहती है।

सौभाग्य से आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में डिमेंशिया को 'लाइलाज' से 'इलाज योग्य' बीमारी की सूची में डाल दिया गया है, हालांकि यह अभी भी सुसाध्य नहीं है। एंटी-डिमेंशिया का इलाज शुरूआती अवस्थाओं में क्लीनिकल सुधार के साथ रोग के बढ़ने से रोकने या धीमा करने में प्रभावी है।

कई पुरानी शारीरिक बीमारियाँ जैसे उच्च रक्तचाप, डायबिटीज मेलिटस, हाइपोथायराइडिज्म, सीओपीडी आदि डिमेंशिया के खतरे को बढ़ा देती हैं। दुर्भाग्य से वृद्धावस्था आम तौर पर उच्च रक्तचाप और हृदय रोग जैसे विकारों से जुड़ी होती है। यदि उच्च रक्तचाप अनियंत्रित होता है, तो इससे वैस्कुलर डिमेंशिया हो सकती है। और एशियाई देश जैसे हमारे देश में वैस्कुलर डिमेंशिया अल्जाइमर रोग के बाद दूसरा सबसे आम रोग है, और इसका एकमात्र कारण अनियंत्रित उच्च रक्तचाप तथा इसके परिणामस्वरूप दौरा पड़ना/ हृदयाघात होना है। इस प्रकार, उच्च रक्तचाप का डिमेंशिया रोग के होने में महत्वपूर्ण योगदान है।

पूरे विश्व में डिमेंशिया रोग से पीड़ित व्यक्तियों की संख्या में भारत दूसरे स्थान पर है। अल्जाइमर और संबंधित डिस्आर्डर सोसायटी ऑफ इंडिया द्वारा प्रकाशित 'डिमेंशिया इंडिया' रिपोर्ट के अनुसार लगभग 4.1 लाख लोग इससे पीड़ित हैं।

भारत में डिमेंशिया के बारे में जागरूकता बहुत ही कम है। बुजुर्गों के बारे में युगों पुरानी धारणा यह है कि याद्दाश्त की समस्या रोग की अपेक्षा बुढ़ापे में आम बात है। इससे शुरूआती पहचान और उपचार में बाधा पहुँचती है।

डिमेंशिया के रोगी संज्ञानात्मक रूप से अक्षम होने का नाटक नहीं करते हैं। दूसरे शब्दों में, वे रोग को जानबूझकर स्पष्ट नहीं करते हैं। अत: परिवार को रोगियों को दोषी नहीं ठहराना चाहिए। लगातार याद्दाश्त में कमी आना और भुलक्कड़पन को बुढ़ापे की सामान्य बात नहीं समझना चाहिए। दूसरा सामुदायिक सरकारी नीतियों और एनजीओ में डिमेंशिया के बारे में जागरूकता से संबंधित होगा। वृद्धाश्रम/ चिकित्सालय स्थापित करने, सामान्य चिकित्सालयों में बुजुर्गों के लिए आरक्षित बेड के लिए नीतिगत स्तर पर पहल की जानी चाहिए।