लखनऊ। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश में बाढ को लेकर प्रभावी कदम
उठाये जाने की बजाय मुख्यमंत्री व बाढ मंत्री, बाढ राज्य मंत्री और
सिंचाई मंत्री के क्रियाकलाप और सरकार द्वारा बाढ़ पीडितों की अनदेखी को
देखने से लगता है कि सरकार बाढ को लेकर घडियाली आंसू बहा रही है। उक्त
आरोप कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता अजय कुमार लल्लू ने प्रेस वार्ता के
दौरान कही।

उन्होनें कहा कि प्रदेश में बाढ़ के कारण 211 लोगांे की मौत हो गयी है,
और दर्जनों जिलों के सैकड़ों की संख्या में गांव प्रभावित है तथा पशुओं
की मौतें हो रही है। लगभग तीन हजार से अधिक मकान क्षतिग्रस्त हुए हैं।
कुछ जिलें ऐसे भी हैं जहां पर लोग अपने बनाये हुए आषियाने का स्वयं उजाड़
रहे है या तोड़ रहे हैं। कुषीनगर जिले के अहिरौली दान गांव में लोगों ने
स्वयं अपने मकान को तोड़ा, यह बहुत ही दुखद स्थिति है और प्रदेश में
स्थिति बहुत ही भयावह है। उन्होनें बाढ को लेकर सरकारी प्रयासों को कम
आंकते हुए सरकार को आडे हाथों लिया और कहा कि विगत वर्ष मुख्यमंत्री जी
जो स्वयं बाढ़ मंत्री भी है, ने सदन में यह आश्वासन दिया था कि नदि और
बांध के बीच के किसी भी गांवो को कटने नहीं दिया जायेगा, उनके लिए माकूल
प्रबंध किया जायेगा, किंतु उनके बचाव के लिए कोई कार्यवाही नहीं की गयी।

उन्होनें कहा कि तकनीकी बैठक में बाढ़ को लेकर जितनी भी योजनायें स्वीकृत
हुई उनको मुख्यमंत्री जी ने स्थायी संचालन समिति में न तो लिया और न ही
उनके लिए धन का आवंटन किया। इसी तरह से बाढ़ राज्य मंत्री स्वाति सिंह जी
ने बयान दिया कि यह प्राकृतिक आपदा है और सिंचाई मंत्री धर्मपाल सिंह जी
ने कहा है कि बाढ़ तो अभी शुरू हुई है तबाही और बाकी है। इस तरह के
बयानबाजी और कार्यवाही बाढ़ पीड़ितों के प्रति सरकार की संवेदनहीनता को
दर्शाती है। सरकार राहत कार्य कम चला रही है बल्कि आम चुनाव का प्रचार
करने में लगी है तभी तो बाढ राहत के पैकेटों पर मुख्यमंत्री और
प्रधानमंत्री जी की तस्वीर प्रकाषित कराया गया है। जैसे इस तरह की आपदा
का इंतजार सुनियोजित तरीके से किया जा रहा था। बाढ़ आने पर हवाई सर्वेक्षण
किया जा रहा है और बाढ़ से बचाव के लिए तकनीकी अधिकारियों के द्वारा बनायी
गयी योजनाओं का ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। इसका उदाहरण गोंडा जिले
में टूटा एल्गिन बांध है, जो विगत दो सालों में 110 मीटर टूट गया और
सरकार देखती रह गयी, समय रहते यदि बचाव किया गया होता तो बाढ़ पीडितों की
संख्या में कमी होती। बाढ़ आने का इंतजार करना और पूर्व में उपाय न करना
वैसे ही है जैसे सरकारी खजाने का लूटने का भरपूर इंतजाम कर लिया गया हो।

उन्होनंे सरकार से पूछा कि आखिर क्या विवशता थी कि अति संवेदनषील और
संवेदनषील बंधों के मरम्मत के लिए समय रहते कोई कार्यवाही नही की गयी।
सरकार से उन्होनें मांग किया कि बंधों को बचाने और बाढ़ पीडितों की मदद के
लिए प्रभावी कदम उठाया जाये।