यशवंत सिन्हा ने 2019 में भाजपा को हराने का दिया 'मंत्र'

नई दिल्ली: बीजेपी छोड़ चुके पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने विपक्षी दलों को सत्तारूढ़ बीजेपी को हराने का मंत्र दिया है। एनडीटीवी को लिखे आलेख में यशवंत सिन्हा ने कहा है कि अगर पूरा विपक्ष एकजुट होकर 2019 का लोकसभा चुनाव लड़े तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सत्ता से बेदखल किया जा सकता है। उन्होंने लिखा है कि अभी भी मोदी को हराने की रणनीति बनाने में विपक्षी नेता बहुत पीछे हैं और रोज समय गंवा रहे हैं। उन्होंने यह भी लिखा है कि विपक्षी दलों के अलग-अलग नेताओं द्वारा आने वाले बयान उनके अंदर उलझनें पैदा कर रहा है। पूर्व मंत्री ने लिखा है कि विपक्षी दलों द्वारा मौजूदा समय में तीन तरह के विकल्प की बात की जा रही है। विपक्ष के कुछ नेताओं का कहना है कि चुनाव पूर्व कोई गठबंधन नहीं हो सकता है। जो भी गठबंधन होना है वो चुनाव बाद होगा। दूसरे विकल्प के तौर पर सभी क्षेत्रीय दल गैर भाजपाई, गैर कांग्रेसी मोर्चा बनाकर चुनाव लड़ें और तीसरा विकल्प है कि कांग्रेस की अगुवाई में देशभर में एक महागठबंधन बने और साझा रूप से पीएम मोदी और एनडीए के खिलाफ लड़ाई लड़ी जाय।

महागठबंधन बेहतर विकल्प: सिन्हा ने लिखा है कि कांग्रेस के साथ मिलकर एक महागठबंधन बनाकर मोदी के खिलाफ एकजुट होकर लड़ना सबसे बेहतर विकल्प हो सकता है। उन्होंने लिखा है कि इस गठबंधन के लिए यह जरूरी है कि वो बिना किसी नाम की चर्चा किए सिर्फ बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने के बड़े इरादे से राजनीतिक लड़ाई लड़े। हालांकि, सिन्हा ने चेताया है कि ऐसी सूरत में मोदी-शाह की टीम अक्सर पूछेगी कि इधर तो मोदी है उधर कौन? सिन्हा ने लिखा है कि विपक्षी दलों को बीजेपी के इस जाल में नहीं फंसना चाहिए क्योंकि इस चुनाव में मोदी मुद्दा नहीं हैं बल्कि वो सारे मुद्दे अब मुद्दा बन गए हैं जिनके बल पर 2014 में मोदी ने सत्ता पाई थी। यशवंत सिन्हा ने लिखा है कि विपक्षी मोर्चे के पास मोदी से निपटने के लिए निश्चित तौर पर एक प्रभावी और लोकलुभावन एजेंडा होना चाहिए क्योंकि वे वैकल्पिक नेता के सहारे नहीं बल्कि वैकल्पिक एजेंडे के सहारे ही उन्हें हरा सकते हैं।

चौथा विकल्प भी सुझाया: यशवंत सिन्हा ने सभी क्षेत्रीय दलों का गठजोड़ बनाकर चुनाव लड़ने को भी तो बेहतर बताया है मगर व्यापक गठबंधन न बन पाने की स्थिति में चौथे विकल्प का रास्ता भी सुझाया है। उन्होंने लिखा है कि जिन-जिन राज्यों में जो सबसे बड़े गैर भाजपाई क्षेत्रीय दल हैं वो मिलकर वहां-वहां चुनाव लड़ें। उन्होंने पांच राज्यों में इसकी मजबूती का हवाला देते हुए कहा है कि यूपी में जहां सपा, बसपा और रालोद मिलकर लड़ सकती है, वहीं बिहार में राजद-कांग्रेस का गठबंधन पहले से ही है। झारखंड में भी जेएमएम और कांग्रेस का गठबंधन पुराना है। महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी जबकि कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन को चुनाव में उतरने को कहा है। इन पांच राज्यों में लोकसभा की कुल 210 सीटें आती हैं जहां 2014 के चुनावों में बीजेपी ने कुल 145 सीटें जीती थीं। सिन्हा का मानना है कि अगर इन पांचों राज्यों में अलग-अलग गठबंधन ने बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ा तो टीम मोदी की खाट कड़ी हो सकती है क्योंकि हालिया उप चुनावों ने इसके सबूत दे दिए हैं। यूपी की कैराना, नूरपुर, गोरखपुर, फूलपुर सीटों के नतीजे इस पर मुहर लगाते हैं। उन्होंने लिखा है कि कांग्रेस-जेडीएस ने जब मिलकर कर्नाटक उप चुनाव लड़ा तो जयनगर सीट कांग्रेस के खाते में आ गई जो 2008 से बीजेपी के पास थी।

कांग्रेस की उम्मीदें बरकरार: सिन्हा ने दूसरे कैटगरी में हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और छत्तीसगढ़ को रखा है जहां कांग्रेस का सीधा मुकाबला बीजेपी से है। इन राज्यों में लोकसभा की कुल 110 सीटें आती हैं। इनमें से 104 पर बीजेपी ने साल 2014 में जीत दर्ज की थी। सिन्हा ने लिखा है कि हिमाचल, गुजरात, उत्तराखंड और राजस्थान में बीजेपी ने 100 फीसदी सीटें जीती थीं लेकिन पांच साल बाद यही दोहराया जाएगा अब यह मुश्किल लगता है। वहां कांग्रेस को अपने बूते जोर लगाना चाहिए क्योंकि उप चुनाव के नतीजे कांग्रेस को उम्मीद देते हैं।

बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी तोे: सिन्हा ने लिखा है कि अगर कांग्रेस की अगुवाई में कोई महागठबंधन नही बन पाता है तब भी यूपी, बिहार जैसे राज्यों का गठबंधन बीजेपी के राह में बड़ा रोड़ा अटका सकता है। हालांकि, उन्होंने लिखा है कि महागठबंधन नहीं बनने की स्थित में यह खतरा हमेशा बरकरार रहेगा कि बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर सकती है और तब राष्ट्रपति सबसे बड़े दल को ही सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करेंगे। अगर ऐसा होता है तब बीजेपी न केवल सरकार बनाने में कारगर होगी बल्कि की क्षेत्रीय दलों को साधने में भी कारगर हो जाएगी। लिहाजा, विपक्षी दलों को इस आशंका को मद्देनजर रखते हुए ही रणनीति बनानी चाहिए क्योंकि इस वक्त चुनाव पूर्व गठबंधन ही वक्त की सबसे बड़ी मांग है। भले ही उसका स्वरूप और आकार कैसा भी हो?