राज्यपाल ने ‘स्वयंसिद्धा अवार्ड-2018’ प्रदान किये

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने आज होटल हिल्टन गार्डन में अनुपमा फाउण्डेशन द्वारा आयोजित ‘स्वयंसिद्धा अवार्ड-2018’ से अपने-अपने क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाली महिलाओं को सम्मानित किया।
राज्यपाल ने इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि पुरूष और महिला एक गाड़ी के दो पहिये हैं जिनकी आपस में तुलना करना निरर्थक है। दोनों पहिये जब साथ चलते है तो समाज की दिशा के साथ-साथ दशा भी बदलती है। भारत की संस्कृति सबसे पुरानी संस्कृति है जहां नारियों की भूमिका और उत्थान का अपना महत्व है। देश में महिलाओं का शानदार इतिहास रहा है। सांस्कृतिक दृष्टि से सीता, लक्ष्मी, सरस्वती जैसी अनेक देवियों को आराध्य माना जाता है। यह सिलसिला आगे बढ़ता है तो रानी लक्ष्मी बाई, दुर्गावती, जीजाबाई, बेगम हजरत महल जैसी वीरांगनाएं भी हुईं। उत्तर प्रदेश की पहली राज्यपाल श्रीमती सरोजिनी नायडू, प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी, राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल जैसी महिलाओं को भारत ने स्थान दिया है। उन्होंने कहा कि बदलते परिवेश में महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण बदलने की जरूरत है।

श्री नाईक ने कहा कि महिलाओं के पूर्व शानदार इतिहास होने के बावजूद सामाजिक कुरीतियों ने आधी आबादी को दबाने का प्रयास किया है। भ्रूण हत्या, दहेज प्रथा, महिलाओं के प्रति अत्याचार विचार का विषय है। समाचार पत्रों में महिलाओं के प्रति होने वाले अत्याचार के समाचार को देखकर पीड़ा होती है। बेटियों को शिक्षित कर उनके अधिकारों के बारे में अधिक से अधिक जानकारी दी जाये। पूर्व राष्ट्रपति राधाकृष्ण ने कहा था कि एक बेटी के शिक्षित होने से दो परिवार शिक्षित होते हैं। अपना उदाहरण देते हुए राज्यपाल ने कहा कि उनके घर में उनकी पत्नी और दो बेटियां हैं। ‘मेरे यहां तक पहुंचने में मेरी पत्नी और बेटियों का योगदान रहा है।’ उन्होंने कहा कि महिलाओं की शिक्षा की ओर जितना ध्यान देना चाहिए था उतना नहीं दिया गया है।

राज्यपाल ने शिक्षित समाज पर जोर देते हुए कहा कि वे 28 विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं। वर्ष 2016-17 शैक्षणिक सत्र हेतु सम्पन्न दीक्षांत समारोहों में 15 लाख से ज्यादा विद्यार्थियों को उपाधि प्रदान की गई हैं जिनमें 7.97 लाख छात्राओं को उपाधि मिली है। लगभग 66 प्रतिशत छात्राओं को उच्च शिक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए पदक भी दिए गए हैं। समाज में छात्राओं का बदलता चित्र 1998 में पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई द्वारा आरम्भ की गई ‘सर्व शिक्षा योजना’ तथा वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओं’ का परिणाम है। पूर्व में महिलाओं के लिये शिक्षिका और नर्स की ही नौकरी उचित समझी जाती थी पर बदलते परिवेश में महिलाएं हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। राज्यपाल ने अपने द्वारा मुंबई में महिला ट्रैन , महिला शौचालय और महिलाओं के लिये गैस कनेक्शन आदि पर किये गये कार्यों को भी साझा किया। उन्होंने कहा कि बेटियों को आगे बढ़ाने में समाज समर्थन करें।

पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने कहा कि महिलाओं को अपना महत्व समाज को दिखाना होगा। स्थितियों को सम्भालना महिलायें जानती हैं। समाज बेटियों को अपने वृद्ध मां-बाप को साथ रखने की इजाजत दे तो वृद्धाश्रम की आवश्यकता नहीं होगी। उन्होंने कहा कि ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को भी आगे लाकर समाज की मुख्य धारा से जोड़ने की जरूरत है। श्रीमती अवस्थी ने बेटी के जन्म से जुड़े ‘सोहर’ गीत भी सुनाए।

राज्यपाल ने इस अवसर पर प्रो0 निशि पाण्डेय, श्रीमती रेनू सिंह, डाॅ0 दीया बैजल, श्रीमती आभा सिंह, डाॅ0 जयदीप मेहरोत्रा, डाॅ0 उमा सिंह, डाॅ0 स्मृति सिंह, डाॅ0 शोभा कौल, अनिता श्रीवास्तव, आस्था गोस्वामी, दिव्या शुक्ल, सबीहा अहमद, डाॅ0 विदुला दिलीप को ‘स्वयंसिद्धा अवार्ड-2018’ देकर सम्मानित किया। कार्यक्रम में ज्यूरी सदस्यों को भी सम्मानित किया गया।

इस अवसर पर लखनऊ की महापौर संयुक्ता भाटिया, पद्मश्री मालिनी अवस्थी, पीएचडी चेम्बर आॅफ कामर्स एण्ड इण्ड्रस्टी के सहअध्यक्ष मुकेश बहादुर सिंह, अवध नामा ग्रुप के वकार रिजवी, अनुपमा फाउण्डेशन की अध्यक्षा अनुपमा सिंह तथा बड़ी संख्या में विभिन्न स्वयंसेवी संगठन से जुड़ी महिलाएं उपस्थित थीं।