प्लास्टिक एक्सपोर्ट प्रमोशन कौंसिल के मुताबिक भारत का प्लास्टिक निर्यात वित्त वर्ष 2017-18 में बढ़कर 8.85 अरब डॉलर हो गया जो 2016-17 में 7.56 अमेरिकी डॉलर था और इसने अन्य वाणिज्यिक वस्तुओं के निर्यात के मुकाबले ज्यादा तेज वृधि दर्ज की। भारत से होने वाला वाणिज्यिक निर्यात, वित्त वर्ष 2017-18 में 9.9प्रतिशत बढ़कर 303.3 अरब डॉलर को छू गया जो 2016-17 में 275.9 अरब डॉलर था।

कोंसिल के मुताबिक वित्त वर्ष 2017-18 में भारत के कुल वाणिज्यिक वस्तु निर्यात में प्लास्टिक का योगदान 2.92प्रतिशत रहा जो 2016-17 में दर्ज 2.74प्रतिशत के मुकाबले थोड़ा अधिक है। भारत का प्लास्टिक निर्यात उक्त वर्ष में मुख्य तौर पर इसलिए बढ़ा कि यूरोपीय संघ, उत्तर अमेरिका, लैटिन अमेरिका व कैरीबियाई क्षेत्र और उत्तर-पूर्व एशिया को जाने वाली प्लास्टिक कच्चा माल एवं मूल्य वर्धित प्लास्टिक उत्पादों की खेपें बढीं जिनमें वूवन सैकध्एफआईबीसी, प्लास्टिक शीटध्फिल्मध्प्लेट. ऑप्टिकल वस्तुएं, लामिनेट, पैकेजिंग के सामन और चिकित्सकीय उपयोग वाले डिस्पोजेबल सामान शामिल हैं। भारत से अमेरिका को होने वाला प्लास्टिक उत्पाद निर्यात उक्त वर्ष में 1.11 अरब डॉलर रहा।

प्लेक्सकोंसिल के अध्यक्ष, श्री ए के बसाक ने कहा, “वित्त वर्ष 2017-18 में भारत के प्लास्टिक उत्पादों के शीर्ष तीन गंतव्य रहे – अमेरिका, चीन और संयुक्त अरब अमीरात। इन तीन देशों को मूल्य के लिहाज से, भारत के कुल प्लास्टिक उत्पाद निर्यात के 25.7ः के बराबर निर्यात हुआ। प्लेक्सकोंसिल ने अमेरिका को एक अरब डॉलर के निर्यात का आंकड़ा पार करने का लक्ष्य रखा था और वित्त वर्ष 2017-18 में हमने इसमें सफलता हासिल कर ली। प्लेक्सकोंसिल ने 2018-19 में 10.6 अरब डॉलर के निर्यात का लक्ष्य रखा है और 2025 तक उम्मीद है की प्लेक्सकोंसिल वैश्विक प्लास्टिक निर्यात बाजार (850 अरब डॉलर के बराबर) में भारत की हिस्सेदारी बढ़ाकर 3.0प्रतिशत कर लेगा जो फिलहाल 1.0प्रतिशत प्रतिशत है। ”

श्री बसाक ने कहा, “लक्ष्य मुश्किल है लेकिन साध्य है और कौंसिल अपने सदस्यों के मदद से प्रोद्योगिकी के उन्नयन, अनुसन्धान एवं विकास व्यय बढ़ाकर और भारत से मूल्य वर्धित प्लास्टिक उत्पादों का निर्यात बढ़ाने से जुड़ी नवोन्मेषी विपणन रणनीतियों के जरिये इस उद्देश्य की दिशा में मिलकर प्रयास करना चाहती है। इसके अलावा कौंसिल निर्यात के लिए जागरूकता पैदा कर निर्यात ने नए कारोबारों को भी लाना चाहती है।”

देश के प्लास्टिक उद्योग में क्षमता, बुनियादी ढाँचा और कौशल युक्त मानवशक्ति के लिहाज से असीम संभावनाएं हैं। भारत फिलहाल विश्व के पांच शीर्ष पॉलीमर उपभोक्ताओं में शामिल है और पूरे देश फैली 30,000 से अधिक प्लास्टिक प्रसंस्करण इकाइयों में 40 लाख से अधिक लोग काम करते हैं। प्लास्टिक देश के सबसे तेजी से वृद्धि दर्ज करते उद्योगों में से जो औसतन दहाई अंक की दर से वृद्धि दर्ज कर रहा है। भारत का प्लास्टिक उद्योग आर्थिक विकास और देश के प्रमुख क्षेत्रों जिनमें वाहन, निर्माण, इलेक्ट्रॉनिक्स, स्वास्थ्य और एफएमसीजी शामिल हैं, की वृद्धि में उल्लेखनीय योगदान कर रहा है।

प्लास्टिक प्रसंस्करण उद्योग में विदेशी निवेश आकर्षित करने और इस तरह भारत के विनिर्माण हब बनने के लक्ष्य में योगदान करने की क्षमता है। देश में 400 करोड़ रूपये के सरकारी निवेश से 18 प्लास्टिक पार्क बनने वाले हैं ताकि प्रतिस्पर्धात्मकता और निवेश में और बढ़ोतरी हो, पर्यावरण के लिहाज से सतत वृद्धि प्राप्त की जा सके और संकुल विकास दृष्टिकोण अपनाया जा सके ताकि रोजगार सृजन के अलवा प्लास्टिक क्षेत्र की क्षमताओं को सुदृढ़ किया जा सके। भारतीय प्लास्टिक उद्योग में वैश्विक औसत के मुकाबले कमतर प्रति व्यक्ति खपत और कम श्रम लागत तथा कौशलप्राप्त मानवशक्ति व प्रशिक्षण केन्द्रों के उपलब्धता के कारण वृद्धि की अपार संभावनाएं हैं।