लखनऊ: अयोध्या की सालों से चली आ रही सांप्रदायिक सौहार्द की परंपरा का नमूना सोमवार (4 जून) को फिर से दिखा। अयोध्या में इस बार एक मन्दिर ने मुस्लिम समुदाय के लिए रोजा इफ्तार का आयोजन किया। ये आयोजन 500 साल पुराने सरयू कुंज मंदिर में किया गया। ये मंदिर अयोध्या के विवादित स्थल के बिल्कुल बगल में ही है। इफ्तार का निमंत्रण पाने वालों में सिर्फ अयोध्या के आम लोग ही शामिल थे। इस आयोजन के मेहमानों की सूची में किसी वीआईपी, राजनीतिक व्यक्ति को शामिल नहीं किया गया था। इस आयोजन पर सरयू कुंज मंदिर के महंत जुगल किशोर शरण शास्त्री ने कहा,”हम ये संदेश देना चाहते हैं कि इस कदम के पीछे हमारा कोई राजनीतिक मकसद नहीं है। हम अयोध्या से पूरे विश्व में शांंति के संदेश का प्रसार चाहते हैं।”

सरयू कुंज मंदिर में राम, सीता और भगवान ब्रह्मा की मूर्तियां स्थापित हैं। इफ्तार के दौरान अयोध्या के विभिन्न मंदिरों के साधू—संत मेहमानों को खजूर और हनुमानगढ़ी मंदिर के प्र​सिद्ध लड्डू परोसते दिखाई दिए। इफ्तार के बाद, मंदिर के परिसर में ही मग़रिब (शाम) की नमाज का आयोजन किया गया। इससे ठीक पहले मंदिर में सांप्रदायिकता के खिलाफ एक सेमिनार का आयोजन भी मंदिर में किया गया। इस कार्यक्रम में स्थानीय विद्यार्थी और उनके शिक्षक शामिल हुए। इस मौके पर किसी भी किस्म के सांप्रदायिक तनाव से मिलकर लड़ने का संकल्प लिया गया। ये पहली बार था जब किसी मंदिर में इफ्तार पार्टी का आयोजन किया गया था। मशहूर हनुमानगढ़ी मंदिर के महंत ज्ञान दास ने पहले दो बार ऐसी कोशिशें की थीं, लेकिन आंतरिक प्रतिरोध के कारण इसे बंद करना पड़ा।

सरयू कुंज मंदिर के महंत के इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए महंत रघुशरण दास ने कहा,”हमारा मानना है कि दोनों समुदायों के बीच दरार को पाटने की कोशिशें होनी चाहिए। मुस्लिम भाइयों के लिए इफ्तार का आयोजन दोनों समुदायों को करीब लाने का अच्छा मौका है। इसीलिए हमने शांति का संदेश देने के लिए रोजा इफ्तार का आयोजन किया है। अयोध्या के रहने वाले उर्दू शायर मुजम्मिल भी सरयू कुंज मंदिर के इफ्तार में शामिल हुए थे। उन्होंने कहा,”अयोध्या में अल्पसंख्यक होने के बावजूद हमने कभी भी असुरक्षित महसूस नहीं किया। हम इसके लिए अपने हिंदू भाइयों को धन्यवाद देते हैं। उन्होंने हमें अपनी सुरक्षा के लिए कभी भी फिक्रमंद नहीं होने दिया।”