इनमें आधे बच्चे कभी नहीं मिल पाते

नई दिल्लीः देर रात आने वाले फोन काॅल अक्सर बुरी खबर ही लाते हैं। हालांकि ऐमोल के परिवार के साथ कुछ ऐसा हुआ जिसने न केवल उन्हें चौंका दिया बल्कि उनके जीवन को पूरी तरह से बदल डाला। उनकी बेटी जूली को एक महीने पहले ही विदेश में नौकरी मिली थी और पूरा परिवार इस खबर से बेहद खुश था। एम्प्लाॅयमेन्ट एजेन्सी सात और लड़कियों के साथ उसे विदेश लेकर गई। परिवार को तो अब इस बात का इंतज़र था कि उनके अच्छे दिन आने वाले हैं। उन्हें इस बात का बिल्कुल अंदाज़ा भी नहीं था कि यही एक कदम उनके जीवन में अंधेरा भर देगा, उन पर दुःखों का पहाड़ टूट पड़ेगा। जूली और उसके साथ अन्य सात लड़कियों को म्यांमार ले जाया गया, जहां उनके जाली दस्तावेज बनाए गए और यहां से उन्हें सिंगापुर भेज दिया गया। लड़कियों को समझ ही नहीं आ रहा था, कि आखिरकार उन्हें कहां ले जाया जा रहा है। उन्हें सिंगापुर से पहले यांगून के एक लाॅज में ठहराया गया, जूली की किस्मत अच्छी थी कि वह यहां से अपने घर में फोन कर पाई।

मणिपुर के चुराचंदपुर ज़िले के पहाड़ी इलाकों के पीछे जूली का घर है, उसका परिवार यह खबर सुनकर हैरान रह गया। उन्होंने तुरंत मणिपुर अलायन्स फाॅर चाइल्ड राइट्स के एक सदस्य से सपर्क किया। यह संगठन क्राई-चाईल्ड राईट्स एण्ड यू की मदद से राज्य में बाल अधिकारों के लिए काम करता है।
इसके बाद संगठन की टीम, स्थानीय पुलिस विभाग और स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम ने तुरंत कार्रवाई शुरू की और भारतीय दूतावास, राज्य सरकार, विदेश मामलों के मंत्रालय, यांगून पुलिस के सहयोग से इन बच्चियों को बचा लिया गया। इस मामले में छह लोगों को गिरफ्तार किया गया।

इस विषय पर बात करते हुए कीशम प्रदीप कुमार, मणिपुर कमीशन फाॅर प्रोटेक्शन आॅफ चाइल्ड राईट्स ने कहा, ‘‘मणिपुर न केवल सीमापार मानव तस्करी के लिए मुख्य राज्य बन गया है, बल्कि यह इस धंधे के लिए आसान ट्रांज़िट रूट भी है। बच्चों को आसानी से बहलाया-फुसलाया जा सकता है, यह मुद्दा राज्य में गंभीर रूप ले चुका है।’’

‘‘मुझे दूसरा जीवन मिला है। यह वाक्या मेरे लिए बुरे सपने की तरह था, मेरी किस्मत अच्छी थी कि मैं फिर से अपने परिवार से मिल पाई। हर कोई मेरे जैसा भाग्यशाली नहीं होता। बहुत सारे बच्चे लापता हो जाते हैं और फिर कभी अपने परिवार से नहीं मिल पाते।’’ जूली ने कहा।

नेशनल क्राईम रिकाॅर्ड्स ब्यूरो की रिपोर्ट तथा गृह मंत्रालय द्वारा संसद (LS Q NO. 3928, 20-03-2018) में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार 2016 में एक लाख से ज़्यादा बच्चे (1,11,569 लापता हुए और इनमें से 55,625 बच्चे साल के अंत तक खोजे नहीं जा सके। सरल भाषा मं कहंे तो साल 2016 में भारत में रोज़ाना 174 बच्चे लापता हुआ और चिंता की बात तो यह है कि इनमें से सिर्फ आधे बच्चे ही इस अवधि के दौरान अपने घर लौट पाए। यानि हर दस में से पांच बच्चे लापता ही बने रहे।

एमएचए के विश्लेषण दर्शाते हैं कि देश में लापता होने वाले आधे से ज़्यादा बच्चे पांच राज्यों से होते हैं- पश्चिमी बंगाल, दिल्ली केन्द्रशासित प्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और बिहार। पश्चिमी बंगाल इस सूची में सबसे आगे है, जहां से 15.13 फीसदी लापता हुए, जबकि दिल्ली से इसी अवधि में 13.14 फीसदी बच्चे लापता हुआ। वहीं मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और बिहार के लिए यह आंकड़ा 10,8 फीसदी, 8.9 फीसदी और 5.2 फीसदी था।

इस विषय पर पूजा मारवाह, सीईओ, क्राई-चाईल्ड राईट्स एण्ड यू ने कहा, ‘‘यह बेहद दुख की बात है कि हमारे बच्चे लापता हो जाते हैं और हम उन्हें फिर से उनके परिवार से नहीं मिला पाते। आंकड़े देखें तो पता चलेगा कि बड़ी संख्या में बच्चे तस्करी, अपहरण के जाल में फंस जाते हैं।’’

तस्करी पर वैकल्पिक प्रोटोकाॅल, जिस पर भारत ने हस्ताक्षर किए हैं, के अनुसार मानव तस्करी एक संगठित अपराध है। सीमापार होने वाले अवैध कारोबार की बात करें तो यह हथियारों और नशीली दवाओं के बाद अगला सबसे बड़ा कारोबार है। भारत कोई अपवाद नहीं है, क्योंकि यह बच्चों के शोषण और इस्तेमाल हेतू बच्चों की खरीद के लिए कम जोखिव वाला बाज़ार बन रहा है, अंग कारोबार से लेकर बाल मजदूरी और काॅमर्शियल यौन उत्पीड़न देश में तेज़ी से बढ़ रहा है। ‘बाल तस्करी और अपहरण के मामले भारत में तेज़ी से बढ़ रहे हैं। इसके दो मुख्य कारण हैं देश में फैली बहुत ज़्यादा गरीबी और मुश्किल एवं खतरनाक सेवाओं की बढ़ती मांग, जो तस्करों और बिचैलियों को पैसा कमाने में मदद करती हैं।’’ पूजा ने बताया।

अब जबकि मानव तस्करी (रोकथाम, संरक्षण एवं पुनर्वास) विधेयक, 2018 पर काम जारी है, सरकार अपनी विभिन्न पहलों जैसे टैªक चाइल्ड, आॅपरेशन स्माइल और मुस्कान के ज़रिए इन लापता बच्चों को ट्रैक कर रही है। ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि देश इस गंभीर मुद्दे क समाधान के लिए सशक्त कदम उठाएगा।

पूजा ने बताया, ‘‘एक स्तर पर हमें उन सभी गंभीर कारणों पर काम करना होगा, जिन्होंनें समाज को अपनी जकड़ में लिया हुआ है। हमें लापता बच्चों को उनके घर वापस लाने के लिए अपने प्रयासों को तेज़ करना होगा- इसके लिए अन्तर एवं अंतरा राज्यीय समन्वयन, बचाव एवं राहत, पुनर्वास प्रणाली का सहारा लेना होगा। उचित संसाधनों एवं प्रशिक्षित पेशेवेरों में निवेश करना होगा। हमें याद रखना चाहिए कि लापता होने वाला बच्चा सिर्फ एक आंकड़ा नहीं है, यह लापता बचपन है, एक परिवार की लापता .यादें और लापता अनुभव है।’’

बच्ची और उसके परिवार की पहचान छिपाने केे लिए नाम बदला गया है।