आशीष वशिष्ठ

धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाएं कम होने की बजाय बढ़ती जा रही हैं। पिछले दिनों पत्थरबाजों ने पत्थरबाजी करते हुए कश्मीर घूमने आए एक पर्यटक की जान ले ली। पर्यटक की मौत के बाद पत्थरबाजों पर नकेल कसने और सख्ती करने की मांग चारों ओर से उठ रही है। इन सबके बीच प्रदेश सरकार की ढुलमुल नीति और कार्यप्रणाली से हालात बेकाबू होते दिख रहे हैं। पर्यटक की हत्या गंभीर मसला है। वही यह घटना प्रदेश सरकार को भी कटघरे में खड़ा करती है। ऐसे में अहम प्रश्न यह है कि जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती और केंद्र की मोदी सरकार इन पत्थरबाजों पर नकेल कसने के लिए सख्त कदम क्यों नहीं उठातीं? क्यों पत्थरबाजों पर प्रदेश सरकार रहमदिली दिखाती है? सवाल यह है कि पत्थरबाजों के हौसले इतने बुलंद कैसे हैं? सवाल दर सवाल यह भी है कि सरकार पत्थरबाजों को फडिंग करने वालों के खिलाफ क्यों कड़े कदम नहीं उठाए जाते। गर अपने ही देश में एक नागरिक को दूसरे प्रांत के कुछ उन्मादी पत्थरबाज मार देंगे तो देश में अशांति व अराजकता का माहौल पैदा होगा।

वर्ष 2014 में लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी ने कश्मीर का माहौल शांत या यहां की समस्याओं का हल निकालने के लिए तो बहुत बड़ी-बड़ी बातें और वायदे किये थे। धारा 370 हटाने से लेकर जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म करना बरसों-बरस से भाजपा के एजेण्डे में शामिल रहा है। आज जम्मू कश्मीर की प्रदेश सरकार में भाजपा बराबर की भागीदार है। ऐसे में भाजपा की जिम्मेदारी दोगुनी हो जाती है। पत्थरबाजों के उत्पात को देखते हुए े यह आभास होता है कि कश्मीर मोर्चे पर मोदी सरकार को कामयाबी हासिल नहीं हो सकी। सीमा पर फौज पाकिस्तानी गोलीबारी का जो मुंहतोड़ जवाब दे रही है उसका असर दिखाई तो दे रहा है लेकिन ये कहने में कुछ भी गलत नहीं है कि एक सर्जिकल स्ट्राइक छोड़कर ऐसा कुछ भी नहीं किया गया जिससे केंद्र सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय मिलता जबकि पाकिस्तान युद्धविराम तोडने और घुसपैठ करवाने का कोई मौका नहीं छोड़ता।

कश्मीर की समस्या आजादी के वक्त से ऐसा दर्द बनी हुई है जो सात दशक बीत जाने के बाद भी कम होने का नाम नहीं ले रहा। कश्मीर घाटी में पर्यटन लोगों की आय और रोजगार का प्रमुख जरिया है। यद्यपि अमरनाथ यात्रा के दौरान अनेक बार आतंकवादी वारदातें हो चुकी हैं लेकिन आम तौर पर सैलानियों को नहीं छेड़ा जाता। जिसके पीछे सोच शायद ये रही होगी कि यदि सैर सपाटे के लिए कश्मीर आने वालों में दहशत पैदा हो गई तो घाटी के व्यापार और रोजगार दोनों पर बुरा असर पड़ेगा जिसके कारण स्थानीय जनता के नाराज होने का खतरा बढ़ सकता है। लेकिन गत दिवस पत्थरबाजी के कारण घायल तमिलनाडु के एक पर्यटक की मौत ने घाटी में पर्यटकों के आवाजाही झमेले में डाल दी है।

पर्यटक पर हमले से पूर्व पत्थरबाजों ने एक स्कूल बस को भी निशाना बनाकर सनसनी फैलाई थी। ताजा घटना पर राज्य की मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ्ती ने शर्म से सिर झुकने जैसी प्रतिक्रिया दी है वहीं विपक्ष के नेता उमर अब्दुल्ला ने घटना को कश्मीर की मेहमानवाजी के लिए धब्बा बताया लेकिन ये वही लोग हैं जो पत्थरबाजी करने वालों के प्रति नरमी से पेश आने की वकालत करते आये हैं। सवाल यह भी है कि आखिर पाकिस्तान की नापाक ताकतें, अलगाववादी नेता और आतंकी बने स्थानीय नौजवान ऐसे पढ़े-लिखे युवाओं को किस लालच में फांसने में कामयाब होते रहे हैं? राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने एक रपट तैयार की है, जिसमें 2016-17 के दौरान पाकिस्तान ने 200 करोड़ रुपए की ‘टेरर फंडिंग’ की है, उसका खुलासा भी किया गया है। यह राशि हवाला के जरिए आती है और अलगाववादी नेताओं की भी भूमिका होती है। आतंक का यह पैसा पत्थरबाजों में भी बांटा जाता है। वे भी एक खास किस्म के ‘आतंकवादी’ हैं, लेकिन कश्मीर की महबूबा सरकार उनके प्रति बेहद नरम है, लिहाजा करीब 9700 पत्थरबाजों की रिहाई हो चुकी है।

यह तथ्य शीशे की तरह साफ है कि पत्थरबाजी में लिप्त लड़के बेरोजगार हैं जिन्हें आतंकवादी संगठन पैसे का लालच देकर सनसनी, डर और उत्पात मचवाते हैं। पिछले हफ्ते सुरक्षा बलों ने मारे जा चुके आतंकी सरगना बुरहान वानी गैंग के बचे खुचे सदस्यों को घेर कर मार दिया। उस दौरान भी उन पर खूब पत्थर बरसाए गए। सुरक्षा बलों को दो मोर्चों पर एक साथ लड़ना पड़ रहा था। एक तरफ तो घर में घिरे आतंकवादी ताबड़तोड़ गोलियां चला रहे थे वहीं बाहर सैकड़ों लड़के पत्थरों की बरसात उन पर कर रहे थे जिससे आतंकवादी भागने में कामयाब हो जाएं किन्तु सुरक्षा बलों के जवानों ने जमकर मोर्चेबन्दी की। सभी आतंकवादी भी मारे गए और पत्थरबाजी के जवाब में की गई कार्रवाई में पत्थर फेंकने वाले 5 लड़के भी ढेर हो गए। इससे बौखलाए आतंकवादी अब हताशा के शिकार होकर कभी स्कूली बस में बैठे छोटे-छोटे बच्चों पर पत्थरबाजी करवा रहे हैं वहीं गत दिवस दक्षिण भारत से आये एक पर्यटक की जान पत्थरबाजी में चली गई।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि पिछले एक वर्ष के दौरान कश्मीर घाटी में सुरक्षा बलों के सख्त रवैये ने आतंकवादी गुटों की कमर तोड़कर रख दी है। घाटी के भीतर छिपने की जगहों पर दबिश देकर उनका सफाया करने की मुहिम ने काफी असर दिखाया है। सीमा पार से घुसपैठ पर काफी नियंत्रण लगा है। ऐसा लगता है घबराहट में आतंकवादी गुटों ने दोबारा पत्थरबाजों का सहारा लेने की रणनीति बनाई है। गत वर्ष पैलेट गन की मार ने पत्थरबाजों की कमर तोड़कर रख दी थी लेकिन आतंकवादियों से सहानुभूति रखने वालों ने इसे लेकर खूब बवाल मचाकर पैलेट गन का उपयोग प्रतिबंधित करवा दिया वरना अब तक तो ये बीमारी काफी कुछ ठीक हो चुकी होती। अब जबकि पत्थरबाजों ने सुरक्षा बलों के साथ-साथ स्कूली बच्चों और पर्यटकों पर हमले शुरू कर दिए हैं तब ये जरूरी हो गया है कि उनके हाथ तोड़ने जैसी नीति पर काम फिर शुरू किया जाए।

कश्मीर के बिगड़े हालातों को दुरूस्त करने के लिए केंद्र सरकार की तरफ से जो कोशिशें होती भी हैं वे महबूबा सरकार की ढिलाई से बेकार चली जाती हैं। भाजपा चूंकि खुद भी राज्य सरकार का हिस्सा है इसलिए वह मुख्यमंत्री या उनकी पार्टी पीडीपी पर ठीकरा फोड़कर अलग नहीं बैठ सकती। समय आ गया है जब भाजपा को अपनी नीति बदलते हुए महबूबा मुफ्ती से दो टूक बात करनी चाहिए क्योंकि कश्मीर घाटी के भीतर तो भाजपा का कोई जनाधार बनने वाला है नहीं चाहे वह सिर के बल खड़ी ही क्यों न हो जाए किन्तु यही स्थिति बनी रही तब जम्मू क्षेत्र में भी उसका प्रभाव घटते देर नहीं लगेगी।

इतिहास के पन्ने पलटे तो राजा हरिचंद के समय भी नापाक पाकिस्तान ने कश्मीर में माहौल खराब किया हुआ था। अपने जुल्म, सितमों से कश्मीरियों का जीना दुश्वार किया था। उस समय भी राजा हरिचंद ने कश्मीरियों के दुख-दर्द को दूर करने के लिए भारत से मदद मांगी थी। भारत ने उस समय भी कश्मीरियों को पाकिस्तान के जुल्मो सितम से बचाया था। इसके पहले कि स्थिति और गम्भीर हो उससे निबटने के पुख्ता इंतजाम कर लिए जाने चाहिए। पैलेट गन या जो भी अन्य उपाय हों उनका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करते हुए जब तक पत्थर फेंकने वालों के हाथ नहीं तोड़े जाते तब तक घाटी में जाने वाले पर्यटकों की सुरक्षा खतरे में पड़ी रहेगी।

ऐसे में पत्थरबाजी की घटनाओं में अचानक वृद्धि होना किसी नए खतरे का इशारा है। भले ही कश्मीर की अलगाववादी ताकतें इस घटना से थोड़ी रक्षात्मक नजर आ रही हो, क्योंकि एक पर्यटक की हत्या को उचित ठहराने का कोई भी आधार किसी के पास नहीं है लेकिन इस तरह की वारदात को यदि बच्चों की साधारण गलती मानकर नजरअंदाज कर दिया गया तो आने वाली अमरनाथ यात्रा के दौरान घाटी में आने वाले लाखों हिन्दू तीर्थयात्रियों की सुरक्षा के लिए खतरा बढ़ जाएगा और आतंकवादी भी यही चाहते हैं।