नई दिल्ली: राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने खारिज कर दिया. बताया जा रहा है कि महाभियोग प्रस्ताव पर सात रिटायर्ड सासंदों के दस्तखत होने की वजह से राज्यसभा सभापति वेंकैया नायडू ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया है. साथ ही बताया यह भी जा रहा है कि उपराष्ट्रपति को इस प्रस्ताव में कोई मेरिट नहीं दिखा. यानी तकनीकी आधार पर इस प्रस्ताव को खारिज किया या है. इस महाभियोग पर फैसला लेने से पहले वेंकैया नायडू ने संविधान विशेषज्ञों से काफी विचार विमर्श किया. बता दें कि कांग्रेस सहित सात विपक्षी दलों ने यह महाभियोग प्रस्ताव दिया था.

इधर प्रशांत भूषण ने कहा कि राज्यसभा के सभापति के पास मेरिट के आधार पर रिजेक्ट करने का अधिकार नहीं है और उसे उन्होंने असंवैधानिक बताया है. सभापति ने जो आदेश जारी किया है, वह दस पेज का है और इसमें सिलसिलेवार तरीके से खारिज करने के आधार को बताया गया है. इसमें 22 प्वाइंट्स हैं, जिसके आधार पर इस प्रस्ताव का खारिज किया गया है.

वहीं, वेंकैया नायडू ने फैसला देने के बाद कहा कि 'दुर्व्यवहार या नाकाबलियत के बारे में ठोस, विश्वसनीय जानकारी नहीं है. मुझे लगा कि इस मामले को लंबा खींचना उचित नहीं है. यह तकनीकी तौर पर किसी भी तरह से मंजूर करने लायक नहीं है. जानकारों से मशविरे के बाद पाया गया कि नोटिस न तो वांछनीय है और न ही उचित.'

पीएल पुणिया ने कहा कि यह वास्तव में एक महत्वपूर्ण मामला है. हम नहीं जानते कि इसे क्यों खारिज किया गया. कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल कुछ कानूनी विशेषज्ञों से बात करेंगे और अगला कदम उठाएंगे.

यह फैसला लेने से पहले उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के चेयरमैन वेंकैया नायडू ने कानून के विशेषज्ञों से इस बात पर सलाह मशविरा किया, कि क्या महाभियोग का प्रस्ताव स्वीकार या फिर खारिज कर दिया जाये. इतना ही नहीं, इससे पहले वेंकैया नायडू दिल्ली से बाहर थे लेकिन महाभियोग प्रस्ताव पर मशविरे के लिए उन्होंने अपना हैदराबाद बीच में ही रद्द कर और दिल्ली वापस लौट आए.

सूत्रों के मुताबिक, महाभियोग पर निर्णय देने से पहले रविवार को उपराष्ट्रपति ने संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप के अलावा लोकसभा के महासचिव, पूर्व विधि सचिव पीके मल्होत्रा, पूर्व विधाई सचिव संजय सिंह और राज्यसभा सचिववालय के अधिकारियों से बातचीत की है. इसके साथ ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बी सुदर्शन रेड्डी से भी राय ली.

अब कांग्रेस के पास विकल्प यह है कि वह सुप्रीम कोर्ट जाएगी. गौरतलब है कि शुक्रवार को कांग्रेस सहित सात विपक्षी दलों ने राज्यसभा के सभापति नायडू को न्यायमूर्ति मिश्रा के खिलाफ कदाचार का आरोप लगाते हुए उन्हें पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए महाभियोग का नोटिस दिया था.

यहां ध्यान देने वाली बात है कि चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर अंतिम निर्णय राज्यसभा के सभापति का होता है. अब कांग्रेस के पास सिर्फ सुप्रीम कोर्ट जाने का ही रास्ता बचा है.

बता दें कि देश के इतिहास में आज तक किसी भी प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग नहीं लगाया गया है. नियम के मुताबिक जब इस तरह का कोई नोटिस दिया जाता है तो राज्यसभा सचिववालय दो बातों की जांच करता है, पहला- जिन सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं उसकी जांच और क्या इसमें नियमों का पालन किया गया है या नहीं.