मृत्युंजय दीक्षित

देश के सभी मोदी विरोधी दल और नेता अब पूरी ताकत के साथ पीएम नरेंद्र मोदी की मजबूत सरकार को पूरी तरह से उखाड़ फेंकने के लिए पूरी ताकत के साथ लामबंद हो रहे हैं तथा मोर्चाबंदी कर रहे हैं। राजस्थान ,उप्र और मप्र के कुछ उपचुनावों में भाजपा की पराजय क्या हो गयी जैसे इन सभी लोगों को ऐसा लग रहा है कि बस लाॅटरी लग ही गयी है तथा यह लोग अब ऐसा व्यवहार कर रहे हैं कि एक धक्का और दो मोदी सरकार और भाजपा को ध्वस्त कर दो। विपक्ष का यह सपना आखिर कितना और कैसे पूरा हो सकेगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा लेकिन उसने पूरी तन्मन्यता के साथ मोदी सरकार को भेदने के लिए पूरी ताकत लगा दी है। भले ही उसके पास इस समय मुददों और नेता का बडा अभाव है। अतः बेलगाम विपक्ष को बांधने का प्रयास बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कर रही हैं तथा इसकी आड़ मेे सुप्रीम कोर्ट मंे चीफ जस्टिस माननीय दीपक मिश्रा के खिलाफ महाअभियोग लाने की तैयारी भी विपक्ष ने शुरू कर दी है।
जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाअभियोग लाने की बात करना निश्चय ही बेहद खतरनाक खेल की साजिश का हिस्सा है। चारों दिशाओं व सभी विचारों से मोदी को पराजित करने का सपना संजोये विपक्ष को हर जगह से मात ही मात मिल रही थी। यही कारण है कि विपक्ष ने सबसे पहले मोदी सरकार को धराशायी करने के लिए संसद को ठप कर दिया ताकि सरकार सफलतापूर्वक न चल सके तथा वह नाकाम हो जाये तथा जनता के बीच जाकर पीएम मोदी की सरकार को पूरी तरह से नकारा घोषित करके 2019 के पहले से ही ध्वस्त करने में सफल हो जायें। इसी अगली कड़ी में विपक्षी दलों ने पहले चार- चार अविश्वास प्रस्ताव पर नोटिस दिये लेकिन उन पर बहस प्रारम्भ नहीं हो सकी है इसी बीच अब विपक्ष ने देश के चीफ जस्टिस को ही अपनी विकृत राजनीति का शिकार बना लिया है। अब संयुक्त विपक्ष उनके खिलाफ नोटिस देने की तैयारी में जुट गया है। संपूर्ण विपक्ष ने एकजुट होकर जिस प्रकार से सदन की कार्यवाही को बाधित किया तथा अब चीफ जस्टिस को निशाना बना रहे हैं उससे साफ पता चल रहा है कि विपक्ष की योजना देश को अराजकता की ओर ले जाने की है तथा उसमें कुछ विदेशी ताकतें भी संलग्न हैं जो एक मजबूत राष्ट्र को नहीं देखना चाहती।

यह अभियोग तो विपक्ष का बहाना है लेकिन वह इसकी आड़ में अपनी मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति को और धार देना चाह रहे हैं। महाअभियोग की आड़ में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को कमजोर करना चाह रहे हंै। आज कल सुप्रीम कोर्ट से जो फैसले आ रहे हैं। वह इन दलों के मुखियाआंे को रास नहीं आ रहे क्योंकि इन फैसलांे से उनके राजनैतिक अस्तित्व को बेहद खतरा उत्पन्न होने जा रहा है। यह दल सुप्रीम कोर्ट की वजह से अपनी मनमानी नहीं कर पा रहे हैं तथा उनके पक्ष में कोई निर्णय नहीं आ पा रहे हैं इस समय कोर्ट जो भी फैसले कर रहा है वह देशहित तथा समाजहित में कर रहा है।

वर्तमान समय में कोर्ट में काई महत्वपूण बिंदुओं पर सुनवाई चल रही है। जिसमें आधार कार्ड, रोहिंग्या मुसलमान व अयोध्या विवाद प्रमुख है। साथ ही राजनैतिक , सामाजिक व आर्थिक महत्व के कई अन्य मामलों पर भी सुनवाई चल रही हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण अयोध्या विवाद है। अभी पिछली सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्षकरों के वकील कपिल सिब्बल ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर कोर्ट में अयोध्या मामले की सुनवाई अगले साल जुलाई के बाद तक टालने की मांग की थी जिसे सतर्क अदालत ने पूरी तरह से ठुकरा दिया और अब सुनवाई लगभग शुरू हो चुकी है जिस प्रकार से सुनवाई शुरू हुई है उससे सभी पक्षकारों को एक नयी उम्मीद की किरण दिखलायी पड़ रही है। मामले में सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल को काफी अपमानित होना पड़ा था। यह भी अनुमान लगाया गया कि कोर्ट में कपिल सिब्बल ने जिस प्रकार का बयान दिया उसी कारण से गुजरात में भाजपा एक बार फिर चुनाव जीतने में कामयाब हो गयी। कई ऐसे मामले कोर्ट में चल रहे हैं तथा आने वाले हैं जिससे विरोधी दलों की विचारधारा हिल जायेगी। आजकल मुस्लिम पक्षकर के अन्य वकील भी मामले को दूसरी ओर मोड़ने में लगे हुए है। जस्टिस के खिलाफ महाअभियोग भारतीय संविधान व न्यायपालिका के प्रति गंभीर अविश्वास का संशय पैदा कर रहा है। जस्टिस दीपक मिश्रा ने ही याकूब मेनन जैसे आतंकी को देर रात सुनवाई करके फांसी की सजा दिलवाने में अहम भूमिका अदा की थी। उस समय जिन लोगों ने याकूब मेनन को बचाने के लिये मुहिम छेड़ी थी उसमंेे भी यही गंैंग शामिल था। अब रोहिंग्या मुसलामानांे को बचाने में भी यही गैंग शामिल हो गया है। जस्टिस के खिलाफ महाअभियोग का प्रस्ताव लाने वाले सभी दल व लोग पूरी तहर से मुस्लिम परस्त राजनीति करते हंै। अभी कुछ समय पूर्व अयोध्या में कारसेवकोें पर गोली चलवाने वाले सपा के पूर्व मुखिया और उप्र के मुख्यमंत्री मुलाचम सिंह यादव के खिलाफ भी एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में गयी है। महाअभियोग की पूरी कहानी कपिल सिब्बल और प्रशांत भूषण जैसे वकीलों ने ही तैयार की है। प्रशांत भूषण जैसे वकील जनहित याचिका दायर करने वाले एक प्रकार से हिंदू विरोधी दलाल हैं। प्रदूषण के नाम पर दीपावली के अवसर पर पटाखों पर बैन जैसे मामले यह ही उठाते रहते है। ऐसे वकीलों की निष्ठा संदिग्ध रहती है। कोर्ट में एक और याचिका की सुनवाई होने जा रही है जिसमें उन वकीलों की वकालत पर प्रतिबंध की मांग है जो किसी न किसी दल के राजनेता हैं। अभी 2- जी स्पेक्ट्रम मामले में भी कोर्ट ने एक बार फिर कड़ा रूख अपनाया है तथा छह माह में हर हालत में जांच पूरी करने को कहा है। जिसके कारण इन लोगों के मन में भय का वातावरण व्याप्त हो गया है। यह जस्टिस दीपक मिश्रा का ही कारनामा है कि 1984 के सिख दंगों की जांच को अंतिम निष्कर्ष तक पहुंचाने के लिए एक नई एसआईटी गठित की गयी है जो अपना काम कर रही है। मामले की बहुत जल्द सुनवाई होने जा रही है।

मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाआभियोग लाने वाले पूरी तरह से जनता के सामने बेनकाब हो चुके हंै। इन सभी की साजिशें जनता लगातार देख रही है। यह महाअभियोग वास्तव में जज के खिलाफ नहीं अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण न हो सके उसके लिए रची गयी सोची समझी साजिश है । यह न्यायपालिका में भी जातिवाद और मुस्लिम परस्ती को घुसाने की साजिश है। यह देश का दुर्भाग्य ही हैे कि एक ईमानदार प्रधानमंत्री, मजबूत सरकार और मजबूत न्यायपालिका के खिलाफ भी तथाकथित लोकतंत्र के नाम पर अभिव्यक्ति की तथाकथित आजादी के नाम पर परिवारवाद की भ्रष्ट राजनीति करने वाले दल व नेता महाअभियोग लाने का खेल खेल रहे है। यह न्यापालिका के खिलाफ महासाजिश है जिस पर तीखी नजर अवश्य ही डालनी चाहिये। इससे न्यायपालिका का ढांचा चरमरा सकता है। विगत कुछ न्यायााधीशों ने काफी ईमानदारी के साथ देश की न्यायापालिका केे प्रति जनता के मन में विश्वास व भरोसा कायम किया है। फिर भी न्याय व्यवस्था को सुधारने का काफी काम चल रहा है यह उसी को पटरी से उतारने की साजिश का हिस्सा भी हो सकता है।
यूं तो जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाअभियोग की बात उसी समय से उठने लग गयी थी जब जस्टिस जे चेलमेश्वर, रंजन गोगोई, मदन बी. लोकुर और कुरियन जोसेफ ने उनकी कार्यप्रणाली पर सवाल उठाये थे। इसमें से एक जज ने एक वाम नेता से मुलाकात करके देश को चैंका भी दिया था। पूरे मामले पर याकूब मेनन समर्थक वकील प्रशांत भूषण ने पूरा ड्राफ्ट तैयार किया और विपक्ष के नेता गुलाम नवी आजाद, कपिल सिब्बल, आनंद शर्मा, शरद पवार समेत कई नेताआंेे ंने हस्ताक्षर भी कर दिये हंै। यह महाअभियोग पारित कराने के लिए संसद के दोनों सदनों में दो तिहाई से अधिक बहुमत की आवश्यकता होगी जो कि किसी भी दल के पास नहीं है। ऐसे में इस प्रकरण में क्या होने वाला है यह तो आने वाला समय बतायेगा। लेकिन इतना तो है कि यदि यह अभियोग संसद में आया भी तो वह गिर जायेगा क्योंकि भाजपा सहित कई सांसद इसका विरोध करेंगे। महाअभियोग के दौरान यदि बहस होती भी है तो इससे हिंदू विरोधी लोग तथा भारत विरोधी ताकतें व उनकी साजिशें बेनकाब हो जायेंगी। महाअभियोग के समर्थक भारत को अराजकता की आग में झांेकना चाहते हंै तथा उसी के बल पर आपनी राजनीति को चमकार कर रखना चाहते हंै , बस और कुछ नहीं ।