-आशीष वशिष्ठ

आम आदमी पार्टी के सितारे गर्दिश में दिखाई देते हैं। दिल्ली के मुख्य सचिव के साथ हाथापाई करने के बाद बदनामी कमाने के बाद इन दिनों आम आदमी पार्टी अपने सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल की माफीनामों की वजह से सुर्खियों में है। अरविंद केजरीवाल द्वारा अकाली नेता व पूर्व मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया से मानहानि मामले में माफी मांगने से उपजा विवाद थमा भी न था कि उन्होंने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल से भी अपने बयानों से पीछे हटते हुए माफी मांग ली। केजरीवाल के माफीनामे वर्तमान भारतीय राजनीति के रीति-नीति पर गंभीर प्रश्नचिन्ह तो लगाते ही हैं। वहीं केजरीवाल की माफीनामे सोचने को मजबूर करते हैं खासकर तब जब पार्टी ईमानदारी व पारदर्शिता के दावों के साथ राजनीति में उतरी हो। कहीं न कहीं माफी के निर्णय से पहले कार्यकर्ताओं को विश्वास में लिया जाना जरूरी था। यह लोकतंत्र का तकाजा है। पिछले दिनों बाहरी पूंजीपतियों को राज्यसभा में भेजने को लेकर भी ऐसा ही विवाद खड़ा हुआ था जो पार्टी में बहुमत को दरकिनार करके मनमानी थोपने जैसा था। वैकल्पिक राजनीति का दावा करने वाली पार्टी के लिये यह शुभ संकेत नहीं है। इससे पहले उन्होंने वर्ष 2017 में हरियाणा के बीजेपी नेता अवतार सिंह भडाना को भी माफीनामा भेजा था।

दिल्ली के जनता ने आप पर भरोसा किया और उसे छप्पर फाड़ समर्थन दिया। देश में असम गण परिषद के बाद पहली बार किसी एक्टिविस्ट ने चुनाव जीता था। आज तक सामाजिक कार्यकर्ता चुनाव हारते रहे हैं। ज्यादातर सामाजिक कार्यकर्ताओं के जमानत जब्त हुए हैं। लेकिन केजरीवाल एक विरले शख्स थे, जिन्होंने चुनावी राजनीति में जबरदस्त जीत हासिल की. नये-नये लोग जुड़ने को तैयार थे। कई ऐसे लोग हुए जो अपनी नौकरियां छोड़ आम आदमी पार्टी में शामिल हुए. लोगों को लगा कि कुछ नया होने वाला है लेकिन हाल ही में कई घटनाओं से विश्वास टूट गया। सिविल सोसाइटी से उपजी पार्टी से लोगों को निराशा हाथ लग रही है।

हाथों में कागजों का बंडल पकड़कर अपने राजनीतिक विरोधियों और नेताओं पर निराधार और सनसनी खेज आरोप लगाकर अपना सियासी सफर शुरू करने वाले आम आदमी पार्टी (आप) के संयोजक अरविन्द केजरीवाल को अब अपनी पुरानी पॉलिटिकल लाइन का खमियाजा उठाना पड़ रहा है। जिस अंदाज में वह वे जाने माने नेताओं को एक मिनट में भ्रष्टाचारी होने का तमगा थमा देते थे उसी अंदाज में वह अब उन बयानों पर मांफी मांग कर मानहानि के मामलों से छुटकारा पाना चाहते हैं। केजरीवाल के माफीनामे से नाराज पंजाब से पार्टी सांसद भगवंत मान ने खुलेआम अरविंद केजरीवाल की आलोचना करते हुए पंजाब के आप संयोजक के पद से इस्तीफा दे दिया था। केजरीवाल के खिलाफ दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी मुकदमे कर रखे हैं।

क्या अब यह समझा जायेगा कि अरविंद केजरीवाल ने जो व्यवस्था एवं भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठायी थी, वह सब झूठ था? क्या अब वह मानने लगे हैं कि उन्होंने जितने लोगों पर भी भ्रष्ट होने का आरोप लगाया था, उन सब से उन्हें माफी मांगनी पड़ेगी? क्या केजरीवाल ने देश की जनता को गुमराह करने का काम किया? क्या केजरीवाल ने झूठा प्रचार करके दिल्ली में सत्ता हासिल की? क्या केजरीवाल ने पंजाब में पूर्व अकाली सरकार पर झूठे आरोप लगाकर चुनाव को प्रभावित किया? अगर ऐसा है, तो फिर केजरीवाल जी को तुरंत इस्तीफा दे कर ‘आप’ पार्टी को विघटित कर देना चाहिए। सत्ता का कमान वापस कांग्रेस एवं भाजपा को सौंप देना चाहिए। जब परंपरागत राजनीतिज्ञों में कोई भ्रष्ट है ही नहीं, तो फिर ‘आप’ का यहां क्या काम?

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही देश दिन-प्रतिदिन भ्रष्टाचार के दलदल में ही धंसता चला गया। इसका मुख्य कारण देश की राजनीति में कुछ स्वार्थी लोगों का आना भी है। देश में भ्रष्टाचार के दलदल को साफ करने के लिए बहुत से लोगों ने प्रयास भी किए। इन्हीं लोगों में से एक थे अन्ना हजारे। अरविंद केजरीवाल ने अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार आंदोलन का साथ छोड़कर अपनी एक राजनीतिक पार्टी बना ली, जिसका नाम रखा गया आम आदमी पार्टी (आप)। पहले लोगों ने इस पर विश्वास भी किया था।

निश्चित रूप से बिना ठोस प्रमाणों के आरोप लगाने के मामलों में अदालत के चक्कर काट रहे केजरीवाल को एहसास हो गया कि लंबे समय तक महज आरोप-प्रत्यारोपों की राजनीति नहीं की जा सकती। निःसंदेह संवेदनशील मौकों पर हर किसी पर बिना प्रमाणों के आरोप लगाने से कोई मकसद हासिल नहीं हो सकता। दरअसल, लगातार विवादों से घिरी पार्टी की गिरती लोकप्रियता के बाद आरोपों के दायरे में आये नेता आक्रामक मुद्रा में पलटवार करने लगे थे। अरुण जेटली पर लगाये आरोपों के मामले में मानहानि केस अभी अदालत में है। दरअसल, जिस वैकल्पिक राजनीति के वायदे के साथ आप दिल्ली की सत्ता में आई, वह कोर्ट-कचहरी विवाद के चलते पूरा होता नजर नहीं आ रहा है।

दरअसल, केंद्र सरकार व दिल्ली के उपराज्यपाल से जारी टकराव से यह तो जाहिर होता है कि सत्ता में आने के बाद भी आप अपने शुरुआती बागवती तेवरों से मुक्त नहीं हो पायी जो पार्टी राजनीतिक अपरिपक्वता को ही उजागर करता है। बिक्रम सिंह मजीठिया के खिलाफ पंजाब चुनाव के दौरान लगाये गये आरोपों से पीछे हटने के बाद आप के पंजाब से विधायकों में जो घमासान मचा, वह स्वाभाविक परिणति ही थी। दरअसल, नेतृत्व के पीछे हटने से स्थानीय विधायकों के लिये जनता का सामना करना मुश्किल हो रहा था।

माफी मांगकर अपनी राह आसान करने में जुटे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की चाह शायद बहुत आसानी से पूरी न हो। मानहानि के ऐसे ही मुकदमे में केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली तक भी माफीनामा का संदेश भेजा गया है। केजरीवाल ने जेटली पर डीडीसीए में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था जिससे भड़के जेटली ने 10 करोड़ की मानहानि का दावा ठोक दिया था। बाद में केजरीवाल के कुछ अन्य साथियों के खिलाफ भी मुकदमा किया गया था। केजरीवाल ने राम जेठमलानी जैसे दिग्गज वकील को भी खड़ा किया लेकिन बात बनती नहीं दिख रही है। ऐसे में माफी का रास्ता ज्यादा उचित लग रहा है। लेकिन फिलहाल जेटली की ओर से कोई आश्वासन नहीं मिला है। अगर ऐसा हुआ तो केजरीवाल का संकट बढ़ सकता है। जेटली ने केजरीवाल पर सिविल और क्रिमिनल मानहानि का मुकदमा किया है। सिविल मामले में हर्जाना भरना पड़ता है और क्रिमिनल मे सजा होती है। कानून के जानकारों की माने तो आज के दौर में मानहानि का मुकदमा झेलना आसान बात नहीं होता है. इसके लिए संसाधन की जरूरत पड़ती है और लंबा मुकदमा झेलना पड़ता है. नयी पार्टी के लिए इन सब दिक्कतों का सामना कर पाना आसान नहीं है.

पिछले पांच साल में दिल्ली की जनता ने दो बार आम आदमी का मन खोलकर साथ दिया। लेकिन आप ने कदम-कदम पर जनता का विश्वास तोड़ा। आप के कई विधायक और मंत्री किसी न किसी विवाद के चलते खबरों में बने रहे। वहीं पारदर्शिता और जनहित की माला जपने वाली आम आदमी पार्टी की रीति-नीति तब भी संदेह के घेरे में आई जब उसने राज्यसभा में एनडी गुप्ता और सुशील गुप्ता को उच्च सदन भेजा। ये गुमनाम चेहरे थे। पार्टी में ये कभी सक्रिय नहीं दिखे. आम जनता के पास यह संदेश पहुंचा कि आम आदमी पार्टी सिर्फ पैसों के लिए राज्यसभा की सीट से समझौता कर लिया। पार्टी में कई लोग थे, जो अपनी-अपनी नौकरियों को छोड़ आप में शामिल थे। वैचारिक रूप से प्रतिबद्ध लोगों को भेजने से पार्टी की आवाज और बुलंद होती। सिर्फ धनाढ्य लोगों को भेजने से पार्टी सिर्फ सर्वाइवल के लिए राजनीति कर रही है। हालांकि केजरीवाल मुहल्ला क्लिनिक, सरकारी स्कूलों और पानी के मुद्दे पर अच्छा काम भी कर रहे हैं।

माफी मांगना कोई गलत बात तो नहीं है, लेकिन क्यों न पहले ही किसी पर टीका-टिप्पणी या आरोप-प्रतिरोप सोच-समझ कर किए जाएं। बाद में माफी ठीक नहीं। शुरुआत तो विक्रम सिंह मजीठिया, गडकरी और सिब्बल से हो गयी है। अब आगे शायद अरुण जेटली जी का नंबर है। जेटली के अलावा भी केजरीवाल ने कई कांग्रेसी एवं क्षेत्रीय राजनीतिज्ञों को भ्रष्ट कहा था। क्या सबसे लिखित माफी मांगी जायेगी? केजरीवाल के माफीनामों से साफ हो गया है कि उन्होंने द्वेष वश सियासी लाभ हासिल करने के लिए किसी की छवि को बर्बाद करने का काम किया बल्कि देश की जनता को भी उन्होंने गुमराह करने का गुनाह किया। इस आधार पर नेताओं के साथ ही साथ केजरीवाल को देश की जनता खासकर दिल्लीवासियों से भी माफी मांगनी चाहिए। केजरीवाल तमाम नेताओं की छवि धूमिल करने के साथ ही साथ्ज्ञ देश की जनता के भी गुनाहगार हैं।