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हटाये गये सपा सरकार में नियुक्त 15 सरकारी वकील

मुकदमों की सुनवाई में बढ़ी परेशानियां

सुलतानपुर। भाजपा शासन के जरिए सपा सरकार में बने 15 शासकीय अधिवक्ताओं
की नियुक्ति रद्द करने से अदालतों का कामकाज बड़े स्तर पर प्रभावित हो रहा
है। परिणाम यह है कि हत्या जैसे अन्य गम्भीर अपराधों में साक्षियों की
गवाही तक नहीं हो पा रही है। सरकार के इस फैसले का असर न्याय के लिए
अदालत की शरण में आयी जनता पर सीधा देखने को मिल रहा है।

गौरतलब हो कि सपा सरकार में 9 फौजदारी, 4 सिविल व 3 राजस्व शासकीय
अधिवक्ताओं की नियुक्ति की गयी थी। जो कि करीब दो वर्ष से अदालतों में
शासकीय अधिवक्ता के रूप में अभियोजन पक्ष अथवा सरकार पक्ष की पैरवी कर
रहे थे। अभी हाल में ही मौजूदा सरकार ने जिले के 8 फौजदारी, 4 सिविल व 3
राजस्व विभाग के शासकीय अधिवक्ताओं की नियुक्ति निरस्त कर दी। जिससे
अदालतों पर कामकाज ही प्रभावित हो गया है। मालूम हो कि पद से हटे 4 सिविल
व तीन राजस्व शासकीय अधिवक्ताओं को सम्बंधित अदालतों को सम्भालने की
जिम्मेदारी मिली थी। जबकि फौजदारी मामलो के लिए जिला शासकीय अधिवक्ता व
सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता समेत पद से हटे 8 अधिवक्ताओं सहित कुल 13 को
जिला न्यायालय में मौजूद चार स्पेशल अदालतों, जिला जज एवं सात अन्य सत्र
अदालतों पर अभियोजन पक्ष की पैरवी की जिम्मेदारी मिली थी, लेकिन अब आठ
फौजदारी शासकीय अधिवक्ताओं के हट जाने से शेष बचे पांच शासकीय अधिवक्ताओं
व एक अभियोजन अधिकारी को ही जिला जज की कोर्ट पर डीजीसी व अन्य 11 सेशन
कोर्टो पर एडीजीसी की जिम्मेदारी सम्भालनी पड़ रही है। जिसके क्रम में
शासकीय अधिवक्ता तारकेश्वर सिंह को जिला जज व एडीजे द्वितीय कोर्ट की,
गोरखनाथ शुक्ल को एडीजे प्रथमध्पाक्सो एक्ट व एडीजे षष्ठम कोर्ट की,
रमेशचंद्र मिश्र को एडीजे चतुर्थध्गैंगस्टर एक्ट व एडीजे नौ/ईसी एक्ट की,
रमेशचंद्र सिंह को एडीजे तृतीय व एडीजे सप्तम कोर्ट की, पवन कुमार दूबे
को एफटीसी प्रथम, एफटीसी द्वितीय व एडीजे पंचम कोर्ट की व विशेष अभियोजन
अधिकारी को एडीजे अष्टम एससी-एसटी एक्ट कोर्ट की जिम्मेदारी मिली है। 12
सत्र न्यायालयों पर सेशन ट्रायलों एवं जमानत प्रार्थना पत्रों पर अभियोजन
पक्ष की पैरवी समेत अन्य जिम्मेदारिया इन पांच शासकीय अधिवक्ताओं व एक
अभियोजन अधिकारी पर ही निर्भर है। ऐसे में शासकीय अधिवक्ताओं के पद पर
हटने की वजह से बड़े स्तर पर न्यायिक कामकाज प्रभावित हो रहा है। मजबूरन
कई मामलों में गवाहों को भी लौटना पड़ रहा है। सरकार की तरफ से भी अभी
शासकीय अधिवक्ताओं की नियुक्ति के लिए कोई सूचना नहीं जारी की गयी है।
जिसकी वजह से न्याय के लिए अदालत की चैखट पर आए वादकारियों को दर-दर की
ठोकरे खानी पड़ रही है। आखिर बगैर कोई व्यवस्था बनाये इन अधिवक्ताओं को
हटाने से बनी समस्या के लिए किसे जिम्मेदार माना जाय यह अहम सवाल है।

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