फर्रूखाबाद जनपद के फतेहगढ नगर में एक पुरुष, एक महिला, एक किशोर, एक कन्द्रीय सहित कुल चार कारागार हैं। इन कारागारों में जनपद कारागार जाकर वहाँ की व्यवस्था देखी तथा जेल अधीक्षक उपाधीक्षक, मुख्य रक्षकों, रक्षकों एवं कैदियों से बातचीत की तथा जेल में बन्द कैदियों के परिजनों व जेल से मुक्त लोगों तथा फर्रूखाबाद के जनपद न्यायालय एवं पुलिस थानों-चैकियों की हवालातों को देखा और जनपद न्यायाधीश थाना-चैकी प्रभारियों से बातचीत कर तथ्य संग्रहित किए।

पुलिस और न्यायिक हिरासत में लिए जाने वाले अधिकांश आरोपी दरिद्र व्यक्ति होते हैं। जो पुलिस की मांग तथा न्यायालय की पैरवी और जमानत राशि के अभाव में कैद कर जेल में ड़ाल दिए जाते हैं। जनपद के पुलिस थानों-चैकियों की हवालातें दरबों की भाँति बनी हैं जहाँ आरोपी दरिद्रों को पशुबाडे़ की तरह बन्द कर मलमूत्र-गन्दिगी और जहरीले मच्छरों का शिकार बनाया जाता है। हवालात के अन्दर बन्द दरिद्र आरोपियों को थानों के सिपाही-दरोगा गरियाते, धमाकाते, मारते हुए अपराध कबूल पत्रों और कोरे कागजों पर हस्ताक्षर कराकर मनमानी धाराआंे में चालान बनाते हैं और हथकड़ी-रस्सी में पशुओं की भाँति बाँधकर न्यायालय में बनी हवालात जो थानों की हवालातों से बद्तर हैं में बन्द कर देते हैं। न्यायालय में वकीलों से घिरे न्यायाधीशों की बातचीत अथवा कार्य की अधिकता के कारण आरोपी की पेशी-सुनवाई की उपेक्षा या समयाभाव की मनमानी कागजी खानापूर्ति या आरोपी के पक्ष में पैरवी-जमानत राशि के अभाव में आरोपी को जेल भेज दिया जाता है और जेल में देरी से दाखिला के कारण आरोपी को खाना खिलाए बिना भूखा रखकर जेल की हवालात में ड़ाल दिया जाता है।

जनपद कारागार फर्रूखाबाद में आरोपी-हवालाती और सजायफ्ता दोनों प्रकार के कैदी बन्द हैं। इनके बन्द करने के लिए बनी बैरिकों में निर्धारित क्षमता से लगभग तीन गुना कैदियों को शाम 6 से प्रातः 6 बजे तक पशु-बाड़े की तरह बन्द किया जाता है जहाँ भीड़ के कारण भूमि-फर्श पर लेटने के लिए पर्याप्त भूमि न मिल पाने के कारण कैदियों में रात्रिभर मारपीट होती रहती है। सीवर नालियों की बदबू और मच्छरों के हमलों के बीच गन्दा-फटा कम्बल ओढ़ बिछा कर रात्रि व्यतीत करते हैं और प्रातः शौचालय एवं स्नान के लिए जेल में साबुन, मंजन, कंघा, तेल, नेकर, बनियान, तौलिया, कुर्ता, पैजामा आदि आवश्यक सामान जेल से कैदी को न दिए जाने से बेचारे दरिद्र कैदी रोगों के शिकार हो रहे हैं। प्रातः 9 बजे के नाश्ते में ब्रेड/रबा/चना/चाय की गुणवत्ता एवं मात्रा दरिद्रों के लिए पर्याप्त नहीं होती है। अपराह्न 1 बजे तथा शाम 5 बजे के भोजन की रोटी एक तरफ कच्ची और सब्जी-दाल अति घटिया रहती है जिसे खाकर अधिकांश कैदी पेट के रोगी हो रहे हैं और आए दिन दम तोड़ रहे हैं। अनेक कैदी जेल का भोजन न खाकर बाहर की खाद्य वस्तुएँ मंगाकर जेल में चूल्हा जलाकर भोजन स्वयं बनाकर खाते हैं जिसमें ईंधन के लिए जेल की रोटी को जलाते हैं और दाल-सब्जी नाली में बहाते हैं।

जिला कारागार में जुआँ एव अवैध वसूली चरम पर है। जो कैदी जेल में आता है उससे प्रथम दिन 60 रुपए और दूसरे दिन से 5 दिन तक 20 रुपए प्रति दिन तदुपरान्त 1200-1800 रुपए लिए जाते हैं अन्यथा झाडू पकड़ाकर उनसे नाली सफाई और खूंखार-ठेकेदारों की मालिस कराई जाती है। कैदियों के मुलाकातियों से अवैध वसूली के तो बड़े पैमाने पर ठेके उठे हैं। अनेक खूंखार कैदियों को मोबाइल देते है, बात कराते हैं, जेल से बाहर लाकर घुमाते और मजदूरी कराकर मजदूरी हड़प लेते हैं।

आजादी के 70 वर्षों बाद भी आरोप ट्रायल के नाम पर आरोपियों को काल कोठरी में बन्दकर उनका अमानुषिक उत्पीडन स्वतन्त्रता के दीवानों के अमानुषिक उत्पीडन से कम नहीं है और यह समस्या भारतीय लोकतन्त्र और संविधान को एक खुली चुनौती दे रही है। चूँकि हिरासती की स्वतन्त्रता न्यायिक संरक्षण में परिवर्तित हो जाती है और इसके जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति का दायित्व सरकार और प्रशासन का है। अतः उत्पीडन बन्द होना चाहिए।

(डाॅ.नीतू सिंह तोमर)