CJI दीमक मिश्र के खिलाफ SC के चार जजों ने खोला मोर्चा

नई दिल्ली: देश के लोकतंत्र के इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने खुलेआम मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ विद्रोह का संकेत दे दिया. चार जजों ने सीजेआई के खिलाफ असंतोष को उजागर करने के लिए प्रेस कांफ्रेंस बुलाई. वहां उन्होंने जाहिर कर दिया कि केसों के बंटवारे और सीजेआई की कार्यशैली से उनमें गहरे मतभेद हैं.

जिन चार जजों ने प्रेस कांफ्रेंस बुलाई, उसमें जस्टिस जे चेलामेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ शामिल रहे. ये चारों जज करीब 15 से 20 मिनट के लिए मीडिया से रू-ब-रू हुए. ये प्रेस कांफ्रेंस जस्टिस चेलामेश्वर के घर पर बुलाई गई थी.चारों जजों ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का प्रशासन ठीक तरह से काम नहीं कर रहा है, और यदि संस्था को ठीक नहीं किया गया, तो लोकतंत्र खत्म हो जाएगा. उन लोगों ने कहा, हम चारों मीडिया का शुक्रिया अदा करना चाहते हैं. किसी भी देश के कानून के इतिहास में यह बहुत बड़ा दिन, अभूतपूर्व घटना है, क्‍योंकि हमें यह ब्रीफिंग करने के लिए मजबूर होना पड़ा है. उन्‍होंने कहा कि हमने यह प्रेस कॉन्‍फ्रेंस इसलिए की, ताकि हमें कोई यह न कह सके कि हमने आत्मा को बेच दिया है.

जस्टिस जे. चेलामेश्‍वर ने कहा कि SC में बहुत कुछ ऐसा हुआ है, जो नहीं होना चाहिए था. हमें लगा, हमारी संस्था और देश के प्रति जवाबदेही है और हमने CJI को सुधारात्मक कदम उठाने के लिए मनाने की कोशिश की, और उन्हें खत भी लिखा, लेकिन हमारे प्रयास नाकाम रहे. जस्टिस जे. चेलामेश्वर ने दावा किया कि अगर संस्था को नहीं बचाया गया, तो देश में लोकतंत्र खत्‍म हो जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट के अन्य जजों ने भी कहा कि CJI को सुधारात्मक कदम उठाने के लिए मनाने की कई बार कोशिश की गई, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे प्रयास विफल रहे. उन्‍होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में प्रशासन सही तरीके से नहीं चल रहा है.

देश की सबसे बड़ी अदालत के कामकाज को लेकर चारों जजों ने जो चिट्ठी चीफ जस्टिस को भेजी थी, वह सार्वजनिक कर दी गई है। चिट्ठी के मुताबिक, इस कोर्ट ने कई एेसे न्यायिक आदेश पारित किए हैं, जिनसे चीफ जस्टिस के कामकाज पर असर पड़ा, लेकिन जस्टिस डिलिवरी सिस्टम और हाई कोर्ट की स्वतंत्रता बुरी तरह प्रभावित हुई है।

चिट्ठी में आगे लिखा है कि सिद्धांत यही है कि चीफ जस्टिस के पास रोस्टर बनाने का अधिकार है। वह तय करते हैं कि कौन सा केस इस कोर्ट में कौन देखेगा। यह विशेषाधिकार इसलिए है, ताकि सुप्रीम कोर्ट का कामकाज सुचारू रूप से चल सके। लेकिन इससे चीफ जस्टिस को उनके साथी जजों पर कानूनी, तथ्यात्मक और उच्चाधिकार नहीं मिल जाता। इस देश के न्यायशास्त्र में यह स्पष्ट है कि चीफ जस्टिस अन्य जजों में पहले हैं, बाकियों से ज्यादा या कम नहीं।

चिट्ठी के मुताबिक इसी सिद्धांत के तहत इस देश की सभी अदालतों और सुप्रीम कोर्ट को उन मामलों पर संज्ञान नहीं लेना चाहिए, जिन्हें उपयुक्त बेंच द्वारा सुना जाना है। यह रोस्टर के मुताबिक तय होना चाहिए। जजों ने कहा हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि इन नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है। चिट्ठी में कहा गया कि ऐसे भी कई मामले हैं, जिनका देश के लिए खासा महत्व है। लेकिन, चीफ जस्टिस ने उन मामलों को तार्किक आधार पर देने की बजाय अपनी पसंद वाली बेंचों को सौंप दिया। इसे तुरंत रोके जाने की जरूरत है। जजों ने लिखा कि यहां हम मामलों का जिक्र इसलिए नहीं कर रहे हैं, ताकि संस्थान की प्रतिष्ठा को चोट न पहुंचे। लेकिन इस वजह से न्यायपालिका की छवि को नुकसान हो चुका है।