नई दिल्ली: कॉलेजियम सिस्‍टम की आलोचना करने वाले सुप्रीम कोर्ट के दूसरे सबसे वरिष्‍ठ जज जस्टिस जस्‍ती चेलामेश्‍वर एक बार फिर से सुर्खियों में हैं। इस बार वह भारत के मुख्‍य न्‍यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा के कामकाज पर सार्वजनिक तौर पर अंगुली उठाकर चर्चा में आए हैं। जस्टिस चेलामेश्‍वर ने राष्‍ट्रीय न्‍यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) का समर्थन कर सभी को हैरत में डाल दिया था। असंतुष्टि का झंडा बुलंद करने वाले जस्टिस चेलामेश्‍वर आंध्र प्रदेश के कृष्‍णा जिले के रहने वाले हैं। उन्‍हें वर्ष 1995 में राज्‍य का अतिरिक्‍त महाधिवक्‍ता नियुक्‍त किया गया था। सुप्रीम कोर्ट के जज को आंध्र के पूर्व मुख्‍यमंत्री एनटी. रामाराव का प्रशंसक माना जाता है, लेकिन चंद्रबाबू नायडू के कमान संभालने के कुछ दिनों बाद ही उन्‍हें अहम पद मिला था। कानून के क्षेत्र में उनके उल्‍लेखनीय योगदान को देखते हुए अमेरिकी प्रांत इलिनॉय का नैपरविले शहर 14 अक्‍टूबर को ‘जस्‍ती चेलामेश्‍वर दिवस’ घोषित कर चुका है।

कानूनी क्षेत्र में प्रतिष्‍ठा हासिल करने के बाद जस्टिस चेलामेश्‍वर को हाई कोर्ट का जज नियुक्‍त किया गया था। कॉलेजियम सिस्‍टम के बदौलत ही वह मई, 2007 गौहाटी हाई कोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश बने थे। लेकिन, अक्‍टूबर, 2011 तक वह सुप्रीम कोर्ट नहीं पहुंच सके थे। ऐसे में वरिष्‍ठता क्रम में वह देश के मौजूदा सीजेआई जस्टिस दीपक मिश्रा से पिछड़ गए थे। जस्टिस चेलामेश्‍वर आने वाले कुछ महीनों में रिटायर होने वाले हैं।

जस्टिस चेलामेश्‍वर ने कई बड़े मामलों की सुनवाई की है। इनमें प्रणब मुखर्जी के राष्‍ट्रपति बनने को चुनौती, व्‍यक्तिगत स्‍वतंत्रता (श्रेया सिंघल केस), एनजेएसी, आधार और जजों को घूस देने जैसे बड़े और विववादास्‍पद मामले शामिल हैं। जस्टिस चेलामेश्‍वर की पीठ ने ही आधार से जुड़े मामले को व्‍यापक प्रभाव वाला बताते हुए संविधान पीठ के हवाले किया था। उन्‍होंने एनजेएसी का समर्थन किया था। सुप्रीम कोर्ट ने आखिरकार इसे असंवैधानिक करार दे दिया था। जजों को घूस देने से जुड़े मामलों को लेकर वह फिर से सुर्खियों में आ गए थे। मुख्‍य न्‍यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्‍यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने इस मामले को अपने पास लेकर सुनवाई के लिए अलग पीठ गठित कर दी थी। सीजेआई ने इस मामले पर जस्टिस चेलामेश्‍वर की पीठ में सुनवाई से महज कुछ दिनों पहले ही नई व्‍यवस्‍था दे दी थी।

जस्टिस चेलामेश्‍वर कॉलेजियम सिस्‍टम के मुखर आलोचकों में से एक हैं। वह वर्ष 2016 में इस मामले पर बुलाई गई जजों की बैठक में शामिल नहीं हुए थे। उन्‍होंने लिखित में अपनी प्रतिक्रिया दी थी। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्‍ठता क्रम में जब वह दूसरे नंबर पर पहुंचे तो कॉलेजियम की सिफारिशों को सार्वजनिक करने का फैसला ले लिया गया।