नई दिल्ली: पार्टी की लंबे समय से लंबित मांग पूरी करते हुए राहुल गांधी ने शनिवार को कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल ली। पार्टी अध्यक्ष के रूप में उनकी नियुक्ति ऐसे समय में हुई है, जब पार्टी अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। उनके सामने 2019 के लोकसभा चुनाव के रूप में सबसे बड़ी चुनौती खड़ी है। 132 साल पुरानी पार्टी की बागडोर संभालने वाले 47 वर्षीय राहुल गांधी नेहरू-गांधी परिवार के छठे सदस्य हैं। शीर्ष स्तर पर यह फेरबदल ऐसे वक्त में हुआ है, जब गुजरात विधानसभा चुनाव की मतगणना सोमवार को होने वाली है। यह समय राहुल गांधी की अग्नि परीक्षा से कम नहीं है, क्योंकि गुजरात चुनाव में प्रचार अभियान की उन्होंने अगुआई की है। दरअसल, 2014 के लोकसभा चुनाव बाद पार्टी को लगातार हार का समान करना पड़ा है। लेकिन इस साल हुए पंजाब विधानसभा चुनाव में पार्टी ने जीत दर्ज की थी।

राहुल के सामने 2018 में होने वाले विधानसभा चुनाव भी बड़ी चुनौती लेकर आने वाले हैं। अगले साल पहले कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में चुनाव होने हैं, जो उनके लिए काफी महत्वपूर्ण रहने वाले हैं। उसके बाद लोकसभा चुनाव राहुल के लिए सबसे बड़ी चुनौती रहने वाली है। राहुल गांधी के सामने खड़ी चुनौतियों में से एक चुनौती कांग्रेस में नई शक्ति का संचार करना और जान फूंकना है, जो 2014 लोकसभा चुनाव के बाद से मिली हार के बाद डांवाडोल-सी नजर आ रही है। राहुल के समक्ष कांग्रेस को जमीनी स्तर पर मजबूत करने की भी चुनौती है, ताकि मोदी की अगुआई वाली भाजपा और पार्टी प्रमुख अमित शाह जैसे चुनावी रणनीतिकारों से टक्कर ली जा सके।

गांधी के सामने 2019 लोकसभा चुनाव के मद्देनजर एक बड़ा विपक्ष तैयार करने की भी चुनौती होगी। उन्हें मोदी के खिलाफ लड़ने के लिए विभिन्न पार्टियों के समर्थन के साथ खुद को एक विकल्प के रूप में पेश करना होगा। 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में राहुल कांग्रेस का चेहरा रहे थे। विदेशों में अपनी कुछ लंबी यात्राओं के चलते गांधी को एक अनिच्छुक राजनेता के रूप में माना जाता था। साथ ही पार्टी प्रमुख की भूमिका में देरी, संप्रग सरकार के दोनों कार्यकाल में मंत्री पद की जिम्मेदारी नहीं संभालने और कुछ मुद्दों पर उचित तरीके से प्रतिक्रिया न करने से उनकी छवि को नुकसान पहुंचा है।