कानपुर:- नात पढ़ना जहां बहुत ही खुशनसीबी की बात है वहीं इश्क़े रसूल में डूब कर नात कहना बहुत ही मुश्किल काम है, हज़रत मुहम्मद स0अ0व0 की अज़मत के साथ सराहना की बुलंदियों पर इस हद तक न जाया जाए कि वह अल्लाह के समकक्ष हो जाए। अच्छी नात कहना विशेष सलाहियत है जो हर किसी के नसीब में नहीं आती, इन विचारों को जमीअत उलमा कानपुर नगर व मज्लिस तहफ्फुज़ खत्मे नबूवत कानपुर के द्वारा मनाए जा रहे रहमते आलम माह के अवसर पर बज्म हस्सान बिन साबित रजि0 कानपुर व मदरसा बैतुल उलूम संजय नगर द्वारा जाजमऊ मंे आयोजित एक दिवसीय भव्य मुशायरा नात व मदहे सहाबा को संबोधित करते हुए दारुल उलूम देवबन्द के मौलाना मुफ्ती मुहम्मद राशिद आजमी ने व्यक्त किया।

मुशायरे की अध्यक्षता फरमा रहे जमीअत उलमा उत्तर प्रदेश और मजलिस तहफ्फुज़ खत्मे नुबुव्वत कानपुर के अध्यक्ष मौलाना मुहम्मद मतीनुल हक़ उसामा क़ासमी ने मुशायरे के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह कोई शौक़िया मुशायरा नहीं बल्कि एक मिशन है, हुजूर स.अ.व. से मुहब्बत और सहाबा को खिराजे अक़ीदत पेश करने का। सहाबा किराम अहलेबैत जिसमें हुजूर स0अ0व0 का पूरा घराना है जिसमें पत्नियां व सभी नवासे नवासियाँ आदि शामिल हैं बिना भेदभाव सभी से मुहब्बत व अक़ीदत रखना हमारे ईमान का हिस्सा है। नबी स0अ0व0 व सहाबा रजि0 के लिए नात पढ़ने व सुनने से हमारे ईमान को ताज़गी मिलती है।

मुशायरे के दौरान शायरांे ने हम्द व नात और मदहे सहाबा पर आधारित ईमान अफरोज शायरी सुनाई, कुछ पसंदीदा शायरी पाठकों की सेवा मे प्रस्तुत हैं।

पढ़ते पढ़ते सहाबा के किरदार को–मेरा बेटा बहुत हिम्मती हो गया

डॉ0 शमीम रामपुरी

मेरे नबी का मदीना भी दिल भी है–खत़ भेजना है उनको पता कौन सा लिखूं

मुजाहिद हसनैन हबीबी

हुस्ने अख्लाक़ भी, खाक़सारी भी है–इल्म व हिकमत भी है, पायेदारी भी है,

मुस्तुफा से मुहब्बत भी यारी भी है,–जिनकी सरकार से रिश्तेदारी भी है,

एक अबूबक्र हैं, एक फारूक हैं, एक उस्मान हैं, एक अली मुर्तजा

कलीम तारिक़

जो चाहो फैसला फौरन उमर के पास आओ,– यह वह नहीं है अदालत जो मुल्तवी होगी

दिल खैराबादी

कौन था दुनिया में आशिक़े खैरूल वरा– फैसला हो जायेगा कल हश्र के मैदान में

ताबिश रेहान

क़ासिर है जुबां अपनी तौसीफ करें हम क्या– सरकारे दो आलम की हर बात निराली है

सलीम ताबिश

खुदारा छोड़ो भी ग़ैर के जु़ल्म का शिकवा–कोई इलाज करो अपनी बेहिसी के लिए

यक़ीन अपना तो ईमान भी यक़ीन भी है– नबी का उसवा ही काफी है ज़िंदगी के लिए

यक़ीन फैज़ाबादी

सितारों ने खुली आंखों से इस मंज़र को देखा है– शबे हिजरत नबी के हमसफर सिद्दीके़े अकबर हैं

फारूक़ आदिल लखनवी

संचालन के कर्तव्यों को प्रसिद्ध नाज़िम ए मुशायरा मुजाहिद हसनैन हबीबी ने अंजाम दिया, ठंड के बावजूद अंत तक हज़ारों की संख्या में आये दर्षक मुषायरे को जमकर सुनते रहे और सुबहान अल्लाह, सुबहान अल्लाह की सदाएं गूंजती रहीं, इष्क़े नबी व साहबा में डूब कर कही गयी शायरी दिलों के साज़ के छेड़ते रहे , और लोगों पर सुरूर व मस्ती की कैफियत तारी रही। अन्त में मौलाना मुहम्मद मतीनुल हक़ उसामा क़ासमी की दुआ पर मुशायरे का अंत हुआ। मदरसा जामिया बैतुल उलूम के संचालक हाफिज़ नूरूलहुदा ने शायरों, और षिरकत करने वालों का शुक्रिया अदा किया।