नई दिल्ली: समाजसेवी अन्ना हजारे ने आज कहा कि वर्ष 2011 में भ्रष्टाचार के खिलाफ उनके आंदोलन के बाद अरविंद केजरीवाल ने जब आम आदमी पार्टी बना ली तो उन्होंने उनसे कोई वास्ता नहीं रखा. उन्होंने कहा कि 23 मार्च 2018 से वह एक और आंदोलन शुरू करने वाले हैं और उम्मीद करते हैं कि इससे कोई नया ‘केजरीवाल’ पैदा नहीं होगा.

उन्होंने आज यहां पत्रकारों से बातचीत में कहा कि 23 मार्च 2018 से दिल्ली के रामलीला मैदान में होने जा रहे तीन सूत्रीय आंदोलन में लोकपाल की नियुक्ति, किसानों की समस्या, चुनाव सुधार को लेकर जनता में जागरूकता पैदा करने का लक्ष्य है.

उन्होंने कहा कि अब जो भी कार्यकर्ता आंदोलन के दौरान उनसे मिलेंगे स्टाम्प पेपर पर लिखकर देंगे कि वह कोई पार्टी नहीं बनायेंगे. साथ ही उन्होंने घोषणा की कि वह न तो किसी पार्टी का समर्थन करेंगे और ना ही किसी पार्टी से किसी को चुनाव लड़वाएंगे.

जीएसटी और नोटबंदी पर उन्होंने कहा कि सरकार का कहना कि बैंकों का 99 प्रतिशत पैसा जमा हो गया है तो कालाधन कहां गया. उन्होंने मोदी सरकार पर हमला करते हुए कहा कि मोदी ने कहा कि 30 दिन के अंदर कालाधन वापस देश में आएगा और हर आदमी के खाते में 15-15 लाख रुपये होंगे, लेकिन किसी के खाते में 15 रुपये तक नहीं आये.

समाजसेवी अन्ना हजारे ने आज कहा कि आजादी के 70 साल बीत जाने के बाद भी देश में लोकतंत्र नहीं है. देश को ना तो नरेन्द्र मोदी चाहिये और ना ही राहुल गांधी, क्योंकि दोनों उद्योगपतियों के हिसाब से काम करते हैं. इस बार किसान के हित में सोचने वाली सरकार चाहिए.

23 मार्च से दिल्ली के रामलीला मैदान पर एक नये आंदोलन की जरूरत बताते हुए अन्ना ने कहा कि राजग और संप्रग दोनों सरकारों ने लोकपाल को कमजोर किया गया है. इसलिए एक बार फिर आंदोलन की जरूरत है. अन्ना ने यहां दावा किया कि देश में 22 साल में 12 लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं. उन्होंने कहा कि इस बार लड़ाई निर्णायक होगी. यह आंदोलन 23 मार्च से दिल्ली के रामलीला मैदान में होगा.

उन्होंने आरोप लगाया कि उद्योगपतियों की सरकार नहीं चाहिए. ना ही मोदी चाहिये और ना ही राहुल गांधी. इन दोनों के मन मस्तिष्क में उद्योगपति ही हैं. हमें ऐसी सरकार चाहिये, जिसके दिमाग में उद्योगपति नहीं बल्कि किसान हो.

उन्होंने कहा कि मनमोहन सिंह की सरकार ने लोकपाल का कमजोर ड्राफ्ट तैयार किया. हर राज्य में लोकायुक्त लाने के कानून बदल दिये गए. मनमोहन सिंह के बाद आयी मोदी सरकार दूसरा विधेयक ले आई और उसे कमजोर कर दिया. ऐसे में फिर आंदोलन की आवश्यकता है.