आजमगढ़: बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने चेतावनी दी है कि यदि हिन्दू धर्म के ठेकेदारों ने जात पात व धर्म के नाम पर दलितों का उत्पीडन बंद नहीं किया तो वह बौद्ध धर्म स्वीकार कर लेंगी। अपने करोडों समर्थकों के साथ उचित समय पर वह हिन्दू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म की दीक्षा ले लेंगी। मायावती ने मंगलवार को आजमगढ़ के रानी की सराय में आयोजित तीन मंडलों (आजमगढ़, बनारस, गोरखपुर )के कार्यकर्ता सम्मेलन में 90 से अधिक विधानसभा के कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों को संबोधित कर रही थीं।

माया के निशाने पर सबसे ज्यादा भारतीय जनता पार्टी ही रहीं। उन्होंने कहा कि आरएसएस के एजेंडे पर चलते हुए बीजेपी लगातार दलितों के उत्पीड़न के काम में लगी है। जिस तरह से बाबा साहब भीम राव अंबेडकर ने चेतावनी देकर हिन्दू धर्म की कुरीतियों से छुब्ध होकर 1956 में अपने समर्थकों के साथ बौद्ध धर्म स्वीकार किया था उसी तरह उचित समय पर वह भी हिन्दू धर्म का त्यागकर अपने करोड़ों समर्थकों के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा लेंगी। अपने एक घंटे 27 मिनट के भाषण में मायावती ने आरएसएस को निशाने पर लेते हुए कहा कि संघ हमेशा से ही आरक्षण और दलितों के खिलाफ रही है अब संघ के एजेंडे पर काम करते हुए भाजपा सरकार लगातार दलितों का उत्पीड़न कर रही है, बीजेपी आरक्षण को खत्म करना चाहती है। उसी एजेंडे के तहत एससी व एसटी के लिए प्रोन्नति में आरक्षण के मामले पर भाजपा कोई कदम नहीं उठा रही है।

मायावती ने बीजेपी पर उनकी हत्या की साजिश का आरोप भी लगाया। उन्होंने कहा कि सहारनपुर के शब्बीरपुर में दलितों के दर्जनों आशियानों ेक जलकर खाक होने के बाद यह साजिश रची गई। इसके तहत मेरे वहां पहुंचने पर आंदोलन कर रहे बसपाईयों के साथ कुछ अराजक तत्वों द्वारा खूनी संघर्ष कराए जाने की साजिश रची गई थी। जिसमें मेरे समर्थकों के साथ ही मेरी भी हत्या कर दी जाती। इसी साजिश के तहत मेरे कार्यक्रम के दौरान वहां हेलीकाप्टर उतरने की परमीशन नहीं दी गई ताकि मै सड़क मार्ग से वहां पहुचूं। यही नहीं वहां महाराणाप्रताप जयंती कार्यक्रम में फूलन देवी की हत्या करने वाले शेरसिंह राणा को मुख्य अतिथि बनाया गया था।

अन्य पिछड़ा वर्ग में आने वाली जातियों को आरक्षण दिलवाने वाले मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू कराने का भी श्रेय लेते हुए मायावती ने कहा कि वीपी सिंह ने अपनी सरकार बनाने के लिए बीएसपी से भी समर्थन मांगा था। बीएसपी ने डा अंबेडकर को भारत रत्न देने और मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करने की शर्त पर ही अपने तीन सांसदों के समर्थन की बात स्वीकारी थी। वीपी सिंह ने प्रधानमंत्री बनते ही दोनो शर्त पूरी की। बीजेपी को आरक्षण विरोधी करार देते हुए कहा कि उस वक्त बीजेपी ने देशभर में इसके खिलाफ आंदोलन किया था।यही नहीं सरकार से अपना समर्थन भी वापस ले कर सरकार गिरा दी थी।

जिस वक्त पं जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री थे उस वक्त उनकी कैबिनेट में बाबा साहब अंबेडकर कानून मंत्री थे। उन्होंने नेहरू से तीन बातों पर अमल करवाने के लिए दबाव बनाया था। इसमें महिलाओं को पुरुषो के समान अधिकार दिलाना, एससी एसटी को आरक्षण को ठीक ढंग से लागू कराने के साथ ही अनुच्छेद 340 पर अमल करना शामिल था। इस अनुच्छेद के तहत पिछड़ों को आरक्षण के लिए पिछड़ा वर्ग आयोग की स्थापना करने की व्यवस्था थी। इस पर सरकार के रवैये से नाखुश होकर उन्होने अपने मंत्री पद से इस्तीफा दिया था। उस वक्त भी डा अंबेडकर को संसद में बोलने नहीं दिया गया था। मुझे भी दलितों पर हो रहे उत्पीड़न मसलन रोहित, ऊना कांड व शब्बीरपुर कांड पर बोलने नहीं दिया गया इसलिए राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया।