नई दिल्ली: बीजेपी से अलग हुए व गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री सुरेश मेहता ने राज्य के औद्योगिक मॉडल की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि मोदी ने ‘वाइब्रेंट गुजरात’ के नारे को प्रोपेगेंडा में बदल दिया। कर्ज की बढती बोझ और स्पष्ट नीतियों के अभाव में गुजरात रसातल की ओर चला गया है।

गुजरात मॉडल पर उनहोंने कहा कि गुजरात मॉडल और कुछ नहीं, बस शब्दों की हेराफेरी है। गुजरात की जमीनी हकीकत कुछ और ही बयान करती है। भाजपा अपने विकास के ‘गुजरात मॉडल’ का इस्तेमाल गुजरात और हिमाचल प्रदेश के आने वाले विधानसभा चुनावों में अपने तुरूप के पत्ते के तौर पर करने की तैयारी कर रही है।

एक इंटरव्यू में उनहोंने कहा कि जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने हर दो साल में ‘वाइब्रेंट गुजरात’ समिट की शुरुआत की। सरकार ने हर साल एक करोड़ युवाओं के लिए रोजगार पैदा करने का वादा किया था। लेकिन औद्योगिक विकास का रोजगार विकास पर शायद ही कोई असर पड़ा हो। उनहोंने यह भी कहा कि गुजरात सरकार ने सिर्फ पूंजीपतियों का ही पक्ष लिया है।

केंद्रीय वित्त मंत्री पर हमला बलते हुए उनहोंने कहा कि वित्त मंत्री ने कारोबारियों को फायदा पहुंचाने के लिए जीएसटी के कुछ नियमों मे ढील दी है। उन्होंने ये भी बताया कि किन जगहों पर किन किन नियमों में ढील देने की कोशिश की है: कपड़े, हीरे, पापड़, खाखरा आदि, ये सब मुख्य तौर पर गुजरात से जुड़े हुए उद्योग हैं।

उनहोंने बीजेपी की घबराने की बात पर कहा कि निश्चित तौर पर वे घबराए हुए हैं। यह बस आंखों का धोखा है. ये चुनावी जादुगरी के सिवा और कुछ नहीं हैं। बता दें कि गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री सुरेश मेहता 2007 में भाजपा के कारनामे से नाराज होकर अलग हो गये थे