नई दिल्ली: देश में बढ़ती सांप्रदायिकता और सामाजिक ताना बाना में बढ़ती नफ़रतों के बीच हिंदुस्तान के एक कोने से ऐसी ख़बर सामने आयी है जिसने गंगा-जमुनी तहज़ीब का जीता जागता मिसाल पेश किया है।

गुवाहाटी से करीब 75 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में इन तीनों गांवों- संधेली, पोकुआ और पनिगांव में लगभग 10,000 लोग रहते हैं और इनमें से आधे लोग हिंदू और आधे लोग मुसलमान हैं.

आधे से ज्यादा सदी पहले पश्चिमी असम के नलबारी जिले में तीन गांवों को मिलाने वाली सड़क का नाम मिलन चौक या एकता का केंद्र रखा गया था. गुवाहाटी से करीब 75 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में इन तीनों गांवों- संधेली, पोकुआ और पनिगांव में लगभग 10,000 लोग रहते हैं और इनमें से आधे लोग हिंदू और आधे लोग मुसलमान हैं.

जब इन तीन गांवों के निवासियों ने 2015 में एक साथ काली पूजा का आयोजन करने का निर्णय लिया, तो उन्होंने महसूस किया कि उनके पूर्वजों ने सड़क का यह नाम क्यों चुना था.

मिलन चौक कमेटी के अध्यक्ष मोहम्मद इब्राहिम अली ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया, “हमारे पूर्वज यह चाहते थे कि सांप्रदायिक अशांति कभी इन तीन गांवों को छू भी ना पाए और मिलन चौक में होने वाली नियमित बैठकों ने मुश्किल समय में भी सद्भाव बनाए रखने में हमारी मदद की है.”

ऐसी मीटिंग्स के दौरान, ग्रामीणों ने एक-दूसरे के त्योहारों को अच्छी तरह मनाने के लिए मदद करने का फैसला किया, लेकिन 2015 में यह पहली बार था कि उन्होंने बड़े पैमाने पर काली पूजा का आयोजन शुरू किया. अली ने कहा “यह तीसरी बार है कि हम ‘श्यामा पूजा’ का आयोजन कर रहे हैं. हम यह भी सुनिश्चित करते हैं कि सारे अनुष्ठान परंपरा के अनुसार हो रहे हैं या नहीं. श्यामा काली का ही एक और नाम है.

समिति ईद और रोंगली बिहू जैसे दोनों धर्मों के लोगों द्वारा मनाए जाने वाले त्योहारों का आयोजन करती है. समिति के कार्यकारी अध्यक्ष परमेश शर्मा ने कहा कि संयुक्त रूप से आयोजित होने वाले त्यौहारों से तीनों गांवों के लोगों को आपस में जुड़ने का अवसर मिलता है.