अन्जुमन गुलामाने अहले बैत के तत्वाधान ज़िक्रे शहीदे आज़म जैसे का आयोजन

लखनऊ: अन्जुमन गुलामाने अहले बैत के जेरे एहतमाम आज कैम्पबेल रोड, बालागंज, लखनऊ मंे एक जलसा ज़िक्रे शहीदे आज़म का आयोजन किया गया। जलसे की सदारत आॅल इण्डिया मोहम्मद यूथ वींग के सदर सैयद मोहम्मद अहमद मियाॅ किछौछवी ने की। जलसे को खिताब करते हुए ख़तिबे अहले बैत औलादे मख्दमू-ए-सिमना आले रसूल हज़रत मौलाना सैयद तलहा अशरफ किछौछवी ने कहा कि अल्लाह ताला ने दुनिया में एक लाख 24 हजार कमो बेश अम्बिया की जमात को इन्सानों की हिदायत के लिए भेजा और हर नबी ने अपने अपने दौर में हिदायत का मुकम्मल हक अदा किया और उन पर जो सहीफे नाज़िल हुई उनको अपनी उम्मत तक पहुचाया। जिसमें यह 4 मुकद्दस किताबें, तौरेत शरीफ, जुबुर शरीफ, इन्जिल शरीफ और र्कुआन शरीफ शामिल है मगर एक लाख 23 हजार 9 सौ 99 कमो बेश अम्बिया का न तो दीन रहा, न सहीफे रही, न किबाते, यहाॅ तक की उनके जाने के बाद उनका दीन भी बदल दिया गया, लेकिन वाहिद अल्लाह की एक किताब र्कुआन शरीफ और दूसरा दीने मुस्तफा सल्ललाहो अलेही वसल्लम 14 सौ साल से ऊपर हो गया, न दीन में कोई तबदीली, न र्कुआन पाक में, क्योंकि आदम ता ईसा, दीन तो फैलाया और बुत परसतों को खुदा परस बनाया मगर उनके दीन और किताब के बचाने के लिए कोई हुसैन इब्ने अली न था और इस दीने मुस्तिफा और किताबुल्लाह को बचाने लिए नबी का नवासा हुसैन था। इसीलिए अल्लाह के नबी ने फरमाया की मै तुम्हारे दरमियान दो भारी चीज़ छोड़े जा रहा हूॅं एक र्कुआन और एक मेरी आल इसलिए न र्कुआन न मिट सकता है न नबी का दिया हुआ इस्लाम मिट सकता है। इसी लिए किसी शायर ने क्या खूब कहा है

हर इब्तेदा से पहले हर इन्तेहा के बाद

ज़ाते नबी बुलन्द है ज़ाते खुदा के बाद

कत्ले हुसैन अस्ल में मरगे यज़ीद है

इस्लाम ज़िदा होता है हर कर्बला के बाद

जलसे में जनाब सैयद शाह अली हुसैन अशरफ और जनाब मुबारक हुसैन मसूदी बहराईची ने अपने खिताब में इमामे हुसैन की शहादत पर रोषनी डालकर उनकी कुर्बानियों का ज़िक्र किया। जलसे कि निज़ामत हाफिज़ो व कारी मोहम्मद गुलाबुद्दीन ने अनजाम दिया नात व मकबत का नज़राना जनाब जनाब इमरान निज़ामी, जनाब फैययाज़ अहमद अशरफी, जनाब कारी शरफुद्दीन ने पेश की। जलसे की षुरूआत कारी आरिफ रज़ा कादरी ने तिलावते कुआॅन-ए-पाक से की। इनके अलावा कसीर ताएदाद में आशिकाने एहले बैत तशरिफ लाए और जिसमें मेहमाने खुसूसी, सैयद जुनैद अशरफ, मौलाना ज़ाकिर हुसैन, कारी अनवार, अब्दुल जब्बार, डाॅ शाहनवाज मुस्तफा खान, जनाब सरफराज़ मुस्तफा खान आदि मौजूद थे।