ज़िक्र शोहदाए कर्बला के उनवान से एक जलसे को खिताब करते हुए सैयद तलहा अशरफ किछौछवी ने कहा कि शाह हैं हुसैन, बादशाह हैं हुसैन, दीन हैं हुसैन, दीन को पनाह देने वाले हैं हुसैन, सर दे दिया नहीं दिया यज़ीद के हाथ में अपना हाथ, हक है लाइल्लाह की बुनियाद हैं हुसैन। यह लब्ज़ मैंने अजमेर शरीम मंे ख्वाजाओं के ख्वाजा, हिन्दुस्तान के महाराजा, हिन्दल वली ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती के रौज़ए अनवर पर फारसी में लिखा देखा। मेरी समझ में सारे अलफाज़ आ गए, मगर लाइलाहा इल्ललाह की बुनियाद हैं हुसैन। इस लब्ज़ पर मैं सोच में पड़ गया कि इमाम हुसैन लाइलाहा इल्ललाह की बुनियाद कैसे हो सकते हैं। बुनियाद ऐसी चीज़ होती है जिस पर पूरी इमारत खड़ी होती है और वह भी लाइलाहा इल्ललाह की बुनियाद। हर इमारत को कायम रखने के लिए मज़बूत बुनियाद होना ज़रूरी है। और इस्लाम की बुनियाद हज़रते इमाम हुसैन को ठहराया गया। यह अज़ीम शहादत जो हुजुर सल्लललाहो अलैहि वसल्लम की तरफ से हज़रते ईमाम हुसैन ने कर्बला में पेश करके इस्लाम को हमेशा-हमेशा के लिए ज़िंदा कर दिया, इस शहादत के तुफैल में मोमिनीन की ज़बानों पर कलमा लाइलाहा इल्ललाह है। करोड़ो मुसलमान दुनिया में हैं। वजह ईमान हुसैन हैं, मस्जिदों से अज़ानों की आवाजे़ आ रही हैं वजह शहादते इमाम हुसैन हैं, क्यांेकि इस कलमाए लाइल्लाहा को पढ़ाने वाले सरवरे कौनैन हैं और इसी कलमाए लाइल्लाहा को बचाने वाले ईमाम हुसैन हैं। इसीलिए किसी शायर ने क्या खूब कहा ‘‘जिसे नसीब नहीं हुब्बे अहले बैते रसूल, उसे नसीब कहा लाइल्लाहा इल्ललाह। अली को दिल में बसा कर तू देख ऐ वाएज़, तो खुद कहेगी ज़बा लाइल्लाह।
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