नई दिल्ली: राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाला चंदा हमेशा ही विवादों में रहा है। राजनीतिक पार्टियों को सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत लाने की कोशिशों को सबसे बड़ा झटका तब लगा था जब नरेंद्र मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में हुई सुनवाई में राजनीतिक दलों को आरटीआई से बाहर रखने की पैरवी की थी। एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) की ताजा रिपोर्ट से एक बार फिर ये मुद्दा सुर्खियों में है। एडीआर ने पिछले चार साल में राजनीतिक दलों के मिले चंदे का विश्लेषण किया है। इस दौरान राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे का बड़ा हिस्सा अज्ञात स्रोतों से आया था। सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को इन सालों में करीब 159 करोड़ रुपये अज्ञात स्रोत से मिले हैं यानी चंदा देने वालों का पैन, आधार या निवास का ब्योरा उपलब्ध नहीं है। राजनीतिक दलों को 20 हजार रुपये स अधिक चंदा देने वाले दानदाताओं को ब्योरा हर साल चुनाव आयोग को देना होता है। पिछले चार सालों में तीन हजार से ज्यादा दान “अज्ञात स्रोत” से मिला है।

एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार साल 2012 से लेकर साल 2016 तक विभिन्न राजनीतिक दलों को 1933 दानदाताओं से 384 करोड़ रुपये चंदा मिला जिन्हें देने वालों का पैन नंबर नहीं था। वहीं इस दौरान 1546 दानदाताओं से मिले करीब 355 करोड़ रुपये देने वाले का रिहायशी पता नहीं दिया गया था। एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार राजनीतिक दलों को वित्त वर्ष 2014-15 में करीब 60 प्रतिशत चंदा कार्पोरेट कंपनियों से मिला। साल 2012 से 2016 के बीच कारोबारी घरानों ने पांच राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को 956.77 करोड़ रुपया चंदा दिया। इन चार सालों में ज्ञात स्रोत से मिले कुल चंदे का 89 प्रतिशत कारोबारी घरानों से मिला था।

पांच सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों (बीजेपी, कांग्रेस, एनसीपी, सीपीआई और सीपीएम) में कार्पोरेट कंपनियों से सबसे अधिक 705.81 करोड़ रुपये चंदा बीजेपी को मिला। दूसरे स्थान पर कांग्रेस रही जिसे इस दौरान 198 करोड़ रुपये कार्पोरेट कंपनियों से मिला। सीपीआई और सीपीएम को कार्पोरेट कंपनियों सबसे कम क्रमशः चार और 17 प्रतिशत चंदा मिला। एडीआर के अनुसार बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने चुनाव आयोग को बताया कि उसे वित्त वर्ष 2012-13 से 2015-16 के बीच 20 हजार रुपये से अधिक चंदा किसी से नहीं मिला। साल 2013-13 में राजनीतिक दलों को सबसे अधिक चंदा रियल एस्टेट की कंपनियों ने दिया था। उसके बाद के तीन सालों में निर्माण सेक्टर की कंपनियों ने राजनीतिक दलों को सबसे अधिक चंदा दिया।