1990 के दशक में पैदा हुआ कोई भी शख्स सुपर मारियो, चाचा चैधरी और पिंकी कॉमिक्स, 101 डेलमेटियन, अलादीन और शक्तिमान के बारे में ही सोचता था। हालांकि, 90 के दशक के विपरीत आज जब बच्चों को टीवी पर अपने पसंदीदा कार्टून चरित्रों को देखने के लिए एक निर्धारित समय है, तो अब बच्चों को अपनी पसंदीदा और वांछित सामग्री तक किसी भी समय पहुंचने की छूट है, वो भी अपने माता-पिता के मोबाइल के जरिए।

अपने पसंदीदा पात्रों को देखने के लिए बच्चों की उत्सुकता ने डिजिटल सामग्री के बाजार को बढ़ावा दिया है और इसके परिणामस्वरूप, विभिन्न टीवी और डिजिटल ब्रॉडकास्टरों ने अब खास तौर पर ऐसे प्लेटफॉर्म लॉन्च कर दिए हैं, जहां बच्चों को अपनी पसंद की सामग्री मिलती है। माना जाता है कि बच्चे सबसे वफादार उपभोक्ता हैं। यदि वे किसी उत्पाद को पसंद करते हैं, तो वे आपके पास वापस आएंगे।
इसके अलावा, इस पीढ़ी को यह बात भी समझ में नहीं आती है कि कोई भी शो किसी विशेष समय पर ही क्यों आता है। इसे तब आना चाहिए, जब वे इसे देखना चाहते हैं। शायद स्कूल के बाद, या एक बार वे अपना होमवर्क खत्म कर लें और ऐसा ही कुछ।

इस साल नेक्सजीटीवी ने बच्चों के लिए वीडियो और इंफोटेनमेंट के साथ ‘नेक्सजीटीवी किड्स’ ऐप लॉन्च किया। बाद में, वायकॉम 18 के वूट ने बच्चों के चारों ओर अपनी पसंद का दायरा बनाया तथा यूट्यूब के यूट्यूब किड्स ने चूचू टीवी, टून्ज एनीमेशन, सेसेम वर्कशॉप और भारत में अप्पू सीरीज के साथ साझेदारी की। सोनी लिव ने भी हिंदी और अंग्रेजी में अपना नया प्लेटफॉर्म लिव किड्स प्रस्तुत किया।
भारत के अग्रणी कंटेंट डिस्ट्रीब्यूशन प्लेटफॉर्म टाटा स्काई ने ‘किड्स सिनेमा’ शुरू किया है, जो देश में अपनी तरह का पहला चैनल है, जहां पूरे परिवार को मिलता है सरल और साफ-सुथरा मनोरंजन।
टाटा स्काई के चीफ कंटेंट ऑफिसर अरुण उन्नी ने कहा, ‘हम ऐसी सामग्री उपलब्ध कराना चाहते हैं जो खूबसूरत हो और जिसे माता-पिता के साथ देखा जा सके। ऐसी सामग्री जिसे हम सब दूरदर्शन युग में देखते हुए बड़े हुए हैं, लेकिन अब ऐसी सामग्री को लगता है भुला दिया गया है।’
टाटा स्काई किड्स सिनेमा देश में अपनी तरह का पहला फिल्म चैनल है, जो विज्ञापनों से मुक्त है और जहां न सिर्फ हिंदुस्तान में बनी बाल फिल्में दिखाई जाएंगी, बल्कि पूरे विश्व में बच्चों की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों का प्रदर्शन करने के लिए विशेष रूप से समर्पित होगा।
डिजिटल बनाम टीवी
बच्चों के टीवी चैनलों की तुलना में, पिछले कुछ सालों में डिजिटल प्लेटफॉर्म ज्यादा मजबूत हो गया है, क्योंकि इस प्लेटफॉर्म पर सामग्री आसानी से उपलब्ध है और इसमें अधिक विकल्प भी मिलते हैं। हाल ही में बच्चों के लिए लॉन्च किए गए वीओडी प्लेटफार्मों का भी मानना है कि इस उद्योग में भविष्य अब डिजिटल का ही है, क्योंकि इसमें ज्यादा से ज्यादा लोगों को अपनी तरफ खींचने की क्षमता है।
भारत में बच्चों से जुड़ी और सीखने की सामग्री के लिए निर्माताओं की कमी नहीं है। और ऐसे दर्शकों की संख्या भी बहुत बड़ी है, जो हमारी वैश्विक सामग्री को देखने के लिए उत्सुक और बेताब हैं। भारत में बच्चे भारतीय और अंतरराष्ट्रीय सामग्री को समान रूप से देखते हैं और कई स्थानीय भाषाओं में सामग्री की भारी मांग है।
हालांकि ब्रांड अभी भी टीवी ऑडियंस में मन को साझा करने के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं, और एक वक्त में जब बच्चों के चैनल मनोरंजन उद्योग में अन्य कंटेंट के बीच जगह बनाते हैं, तो किड्स वीओडी प्लेटफार्म शायद सभी के लिए बेहतर जवाब साबित हो सकता है।