लखनऊ: कई बार वादी, प्रतिवादी और गवाहों के कोर्ट में हाजिर न होने से हजारों केस लटके रहते हैं. कई बार अदालत के चक्कर काटने से बचने के लिए गवाह झूठा पता दर्ज करा देते हैं. नतीजा ये निकलता है कि केस कई-कई साल तक कोर्ट में लटके रहते हैं.

इसी को देखते हुए अदालतों ने भी बॉयोमीट्रिक पहचान के लिए आधार कार्ड को अहमियत दी है. हाल ही में दिए गए हाईकोर्ट के एक आदेश के अनुसार अब पुलिस का काम बढ़ गया है. कोर्ट ने आदेश दिया है कि अब कोर्ट कोई भी ऐसी एफआईआर, केस डायरी और एफआर को स्वीकार नहीं करेगी जिसमें वादी, प्रतिवादी औरि गवाहों के आधार नम्बर नहीं लिखे होंगे.

पुलिस को अब अपनी विवेचना के दौरान आधार लिखना अनिवार्य होगा. पहले होता ये था कि विवेचना के दौरान गवाह, वादी और प्रतिवादी किसी न किसी वजह से कभी-कभी गलत पता दर्ज करा देते थे.

ऐसे में जब केस कोर्ट में पहुंचता था और सुनवाई के लिए वादी-प्रतिवादी और गवाहों को तलब किया जाता, सम्मन जारी होते थे तो विवेचक को दर्ज पते पर उस नाम का गवाह, वादी-प्रतिवादी नहीं मिलता था.

इसके चलते केस महीनों, वर्षों तक सुनवाई के लिए लटका रहता था. इसी परेशानी से बचने के लिए अब कोर्ट ने आधार नम्बर अनिवार्य कर दिया है. ये आदेश नई एफआर और एफआईआर पर लागू होगा, लेकिन पुरानी केस डायरी के मामलों में पुलिस को आधार नम्बर उपलब्ध कराने होंगे.