नई दिल्‍ली: देश के शीर्ष क़ानूनी अधिकारी अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी कार्यकाल विस्‍तार नहीं चाहते हैं. उन्होंने कहा कि मैंने वाजपेयी सरकार में पांच साल काम किया और अब मोदी सरकार में तीन साल काम कर चुका हूं. मेरे सरकार के साथ अच्छे संबंध हैं लेकिन मैं अब निजी प्रैक्टिस करना चाहता हूं. इसलिए मैंने सरकार को लिखा है कि मैं अटॉर्नी जनरल के तौर पर एक्सटेंशन नहीं चाहता. रोहतगी को 19 जून 2016 को तीन साल के कार्यकाल के लिए अटॉर्नी जनरल बनाया गया था और हाल ही में उन्‍हें कार्यकाल विस्‍तार दिया गया है. 3 जून को केंद्र सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने सात विधि अधिकारियों का कार्यकाल बढ़ाया था जिनमें रोहतगी भी शामिल थे.

3 जून को ही सरकार ने अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी, सॉलीसीटर जनरल रंजीत कुमार और पांच अन्य वरिष्ठ विधि अधिकारियों का कार्यकाल बढ़ा दिया था. कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने जारी एक आदेश में कहा था कि कैबिनेट की नियुक्ति समिति ने कानून अधिकारियों का कार्यकाल अगले आदेश तक बढ़ा दिया है. इसमें कहा गया था कि अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल जिन्हें अनिश्चितकाल के लिए कार्यकाल विस्तार दिया गया है, उनमें पिंकी आनंद, मनिंदर सिंह, पी.एस पटवालिया, तुषार मेहता और पी एस नरसिम्हा हैं.

मुकुल रोहतगी दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति अवध बिहारी रोहतगी के पुत्र हैं. उन्होंने 2002 के गुजरात दंगे और बेस्ट बेकरी एवं जाहिरा शेख मामले सहित फर्जी मुठभेड़ मौत मामले में उच्चतम न्यायालय में गुजरात सरकार की तरफ से पैरवी की.

अंबानी बंधुओं के बीच गैस विवाद मामले में रोहतगी उच्चतम न्यायालय में उद्योगपति अनिल अंबानी की तरफ से पेश हुए. वर्ष 2012 में केरल तट के पास दो मछुआरों की हत्या में संलिप्त दो इतालवी नौसैनिकों से जुड़े मामले में उन्होंने शीर्ष न्यायालय में इतालवी दूतावास का पक्ष रखा.