नई दिल्ली: भारतीय मूल के एक जानेमाने अर्थशास्त्री ने दावा किया है कि भारत सात फीसद सलाना की दर से वृद्धि नहीं कर रहा है जैसा कि सरकार ने दावा किया है। अर्थशास्त्री के मुताबिक कई अहम् क्षेत्रों में कोई वृद्धि नहीं हुई है। मेर्टन कॉलेज, ऑक्सफोर्ड के एमरिट्स फेलो और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के रीडर एमरिट्स ने यहां कहा कि उनका (भारत का राष्ट्रीय खाता) दर्शाता है कि भारत सात फीसद की दर से वृद्धि कर रहा है। लेकिन कई अन्य अर्थशास्त्रियों के साथ मैं भी इस राष्ट्रीय लेखे जोखे पर विश्वास नहीं करता हूं। उसमें 2011 में तब्दीली की गयी थी। ‘इंडियाज लोंग रोड– द सर्च ऑफ प्रोस्पेरिटी’ के लेखक जोशी ने आरोप लगाया कि भारत की वृद्धि दर 5.5 फीसदी पर लौट आयी है लेकिन उसके राष्ट्रीय खाते इसकी कहीं ज्यादा सुहावनी तस्वीर पेश की गयी है। कार्नेजी इंडोमेंट फोर इंटरनेशनल पीस द्वारा आयोजित परिचर्चा के दौरान शीर्ष अमेरिकी थिंक टैंक और लंदन में रहने वाले अर्थशास्त्री ने अपनी बात साबित करने के लिए कई कारण दिए।

उन्होंने कहा कि मैं एक बात कहूंगा, (भारत का राष्ट्रीय खाता) एक मात्र ऐसी जगह है जहां आप सात फीसद वृद्धि देख सकते हैं। आपको यह कहीं और नजर नहीं आ सकती है। यदि आप निर्यात और आयात देखते हैं तो वे बिल्कुल सपाट हैं। ये कम हुये हैं या बराबर रहे अथवा बहुत धीमी वृद्धि हुई। यदि आप संगठित क्षेत्र में रोजगार पर नजर डाले तो वहां ठहराव है। उन्होंने कहा कि यदि आप औद्योगिक उत्पादन पर नजर डालें तो यह बहुत धीमी रफ्तार से बढ़ रहा है। यदि आप बैंक क्रेडिट पर नजर दौड़ाते हैं तो यह बहुत धीमी वृद्धि कर रहा है। हाल के वर्षों में उद्योगों में बैंक क्रेडिट बहुत सुस्त रफ्तार से बढ़ा है।

जोशी ने कहा कि और खासकर यदि आप निवेश को देखते हैं तो यह बैठ गया है। निवेश अनुपात जो 2011 में जीडीपी का 34 फीसद था, अब जीडीपी का 27 फीसद है। अतएव निवेश वाकई लुढक गया है। ऐसे में यह विश्वास करना मुश्किल है कि राष्ट्रीय आय सात फीसद सलाना दर से वृद्धि कर रही है। सवालों के जवाब में उन्होंने कहा कि वर्तमान प्रवृतियों के तहत भारत में अगले 25 सालों तक सात से नौ फीसद की वृद्धि होने की संभावना नहीं है। उन्होंने कहा कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश द्वारा सात से नौ प्रतिशत दीर्घकालिक वृद्धि दर हासिल करने का कमाल कभी कभार ही होता है। मौजूदा रच्च्ख से नहीं। तब तक नहीं हो सकता जब तक कि हम सभी मिलकर काम नहीं करेंगे। हम संभवत: 5 से 5.5 प्रतिशत सालाना की दर से लगातार बढ़ सकते हैं। जोशी ने कहा कि इस तरह का अद्भुत कार्य कदाचित ही होता है। यह काम तीन देशों ने ही किया है और वो हैं चीन, दक्षिण कोरिया और ताइवान और शायद सिंगापुर।