बैंक ग्राहकों को कई प्रकार की सुविधाएं, सेवाएं और उत्पादों की देती है. ऐसी ही एक सुविधा है सेफ डिपॉजिट लॉकर्स, जो व्यक्तिगत कीमती सामान, दस्तावेज आदि को संग्रहित करने के काम आती है.

भारत में अधिकांश बैंक, वार्षिक शुल्क के आधार पर व्यक्तिगत उपयोग के लिए लॉकर किराए पर देते हैं. इसके लिए कोई मानकीकृत नियम नहीं है. बैंक अपनी नीतियों के आधार पर अलग-अलग किराया वसूलते हैं. आमतौर पर निजी क्षेत्र के बैंक, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के मुकाबले, अधिक किराया लेते है. इसके अलावा, ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों की दरें मेट्रो और शहरी केंद्रों की तुलना में कम हो सकती हैं.

बैंकिंग कोड्स एंड स्टैंडर्ड बोर्ड ऑफ इंडिया के सीईओ, आनंद अरस के अनुसार , एक बैंक लॉकर खरीदने का सबसे अच्छा समय अब है जब आप खाता खोलते है. ग्राहक बैंक लॉकर के प्रकार का चयन कर सकता है, जैसे छोटा, मध्यम या बडा. यह ग्राहक की आवश्यकता और सामर्थ्य पर निर्भर करता है. लेकिन यह सुनिश्चित कर ले कि आपने किराया के बारे में पूछ्ताछ कर ली हो क्योंकि कुछ बैंक बहुत अधिक किराया लेने के लिए जाने जाते हैं.

बैंक गैर-खाताधारकों को भी सुरक्षित डिपॉजिट सुविधाएं प्रदान करते है, लेकिन अक्सर वे अपने मौजूदा ग्राहकों को प्राथमिकता देते है.

बीसीएसबीआई कोड ऑफ बैंक्स कमिटमेंट टू कस्टमर्स (पैरा 8ण्9) यह कहता है कि सुरक्षित डिपॉजिट लॉकर के आवंटन की प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी होनी चाहिए. यह ग्राहकों को यह भी आश्वासन देता है कि लॉकरों को फिक्स्ड डिपॉजिट्स से जोडे बिना आवंटित किया जाएगा.
इसे देखते हुए, बैंकों को ऐसे एफडी प्राप्त करने की अनुमति है, जो एक अप्रत्याशित स्थिति में तीन साल का किराया और ब्रेकिंग्चार्ज कवर करते है. इन निर्देशों के बावजूद, बैंक अक्सर ग्राहकों को फिक्स्ड डिपॉजिट में बड़ी रकम रखने या बीमा पॉलिसि लेने के लिए कहते है. इसका कारण ये है कि लॉकर्स के लिए एक लंबी प्रतीक्षा सूची है. ये उस स्थिति में ठीक है यदि यह सूची कोड ऑफ बैंक्स कमिटमेंट टू कस्टमर्स में उल्लिखित नियम के अनुसार हो. प्रतिक्षा सूची नंबर देने के लिए ग्राहक बोल सकते है. यदि आपको फिक्स्ड डिपॉजिट में बडी रकम जमा करने या अन्य उत्पाद खरीदने के लिए मजबूर किया जाता हैं, तो आप उच्च बैंक प्राधिकरणों या बैंकिंग लोकपाल से शिकायत कर सकते हैं.

यदि एक लॉकर तीन से अधिक वर्षों तक संचालित नहीं किया जाता है, तो बैंक ग्राहक को जोखिम कम करने के लिए लॉकर को संचालित करने या आत्मसमर्पण करने के लिए कह सकता है. ग्राहक की अनिच्छा के कारण यह काम तब भी किया जा सकता है जब लॉकरधारक नियमित रूप से किराया दे रहा हो.

इसके अलावा, बैंक ग्राहक से लिखित रूप में मांग सकता है कि लॉकर संचालित क्यों नहीं किया गया. यदि ग्राहक जवाब नहीं दे पाता या फिर भी लॉकर का संचालन नहीं करता है, तो बैंक नोटिस देने के बाद लॉकर खोल सकता है. इस स्थिति से बचने के लिए, बैंकों को आवंटन रद्द करने और लॉकर को तोड़ने की बात समझौते में शामिल करना चाहिए. हालांकि, बैंकों को इस तरह के कदम उठाने से पहले उचित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए. इसके बाद ही लॉकर को तोड़ना चाहिए और इन्वेंट्री का स्टॉक ले लेना चाहिए.

ग्राहकों के हित में, बैंक सुरक्षित डिपॉजिट लॉकर्स पर मार्गदर्शन देने के लिए कर्तव्यबद्ध होते हैं, बैंक को नामांकन सुविधा और उत्तरजीविता क्लॉज जैसी बातों को साफ करना होता है. इसका मतलब यह नहीं है कि बैंक अकेले धारक को लॉकर नहीं दे सकती. बैंकिंग कंपजीन रूल 1985 (नॉमिनेशन) के अनुसार, सभी बैंकों को नॉमिनेशन की जानकारी, इसमें बदलाव या रद्द करने के लिए शुल्क आदि के बारे में एक उचित व्यवस्था का सख्ती से पालन करना चाहिए. ग्राहक मांगे या न मांगे, इसकी जानकारी सभी ग्राहकों को दी जानी चाहिए.
एक सुरक्षित डिपॉजिट लॉकर में अपना कीमती सामान रखना किसी के लिए भी हमेशा फायदेमंद होता है, लेकिन उसे किराए पर लेने से पहले सभी सावधानी बरतें. आखिरकार, आप अपने मूल्यवान वस्तुओं की सुरक्षा के साथ समझौता नहीं करना चाहेंगे.

(लेखक बैंकिंग कोड्स एंड स्टैंडर्ड बोर्ड ऑफ इंडिया के सीईओ हैं.)