लखनऊ: उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने आज विधान सभा को ‘भारत का संविधान’ के अनुच्छेद 175(2) के तहत दोबारा संदेश भेजा है। पत्र में राज्यपाल की ओर से कहा गया है कि श्री माता प्रसाद पाण्डेय द्वारा श्री राम गोविन्द चैधरी को नेता विरोधी दल के रूप में मान्यता दिये जाने के संबंध में 28 मार्च, 2017 को भेजे गये उनके संदेश के साथ इस संदेश पर भी विधान सभा द्वारा उचित समय पर विचार किया जाये।

उल्लेखनीय है कि राज्यपाल द्वारा विधान सभा के विचारार्थ भेजे गये संदेश पर तत्कालीन विधान सभा अध्यक्ष श्री माता प्रसाद पाण्डेय द्वारा अपना अभिमत पिं्रट एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया/सोशल मीडिया के माध्यम से प्रकट करते हुये कहा गया था कि विगत दो दशकों के दौरान विधान सभा उत्तर प्रदेश में नेता विरोधी दल को निवर्तमान अध्यक्ष द्वारा ही अभिज्ञात किया जाता रहा है। श्री माता प्रसाद ने अपने निर्णय को परम्परागत नियमानुकूल एवं निर्वतमान अध्यक्ष को संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों के अधीन होना कहा है।

राज्यपाल की ओर से भेजे गये पत्र में विधान सभा के सदस्यगण का ध्यान उच्चतम न्यायालय द्वारा कतिपय प्रकरणों में समय-समय पर प्रतिपादित किये गये सांविधानिक विधि की ओर आकृष्ट करते हुये कहा गया है कि ‘‘यदि पूर्व में कतिपय प्रकरणों में कुछ निर्णय संविधान अथवा विधि के प्रतिकूल लिया गया हो तो इस प्रकार के असांविधानिक/अविधिक निर्णय को पुनः असांविधानिक/अविधिक निर्णय लेने हेतु न तो अनुसरणीय दृष्टान्त के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है और न ही ऐसे दृष्टान्त को संविधान/विधि की भावना के विपरीत लिये गये निर्णय को वैध ठहराने हेतु ही प्रयुक्त किया जा सकता है। दो गलत निर्णय मिलकर भी एक उचित निर्णय नहीं कर सकते हैं (two wrongs never make a right)। संविधान अथवा विधि के अन्तर्गत जो कार्य अथवा निर्णय प्रत्यक्ष रूप से नहीं किया जा सकता है उसे परोक्ष रूप से भी नहीं किया जा सकता है (what could not be done directly, could also not be done indirectly)।’’