सुलतानपुर। जनपद में विधानसभा 2017 का मतदान बेहद निराशा जनक रहा। 55.53 प्रतिशत मतदान के बीच चुनावी पहलवानों की धुकधुकी बढ़ गई है, चर्चाओं का दौर जारी है। जनता का अब एक्जिट पोल मुख्यमंत्री के टोटके की चाह लेने में जुटी है।

गौरतलब हो कि जिले की पाॅचों विधानसभा सीटों के मतदान प्रतिशत की कमी को मतदाताओं का उत्साह कत्तई नहीं कहा जा सकता है, जिले के सभी सीटों पर न तो भाजपा का धु्रवीकरण चला ना ही किसी पार्टी की नहर है। जातिवाद के चर्चाओं ने मतदाताओं को कुछ हद तक प्रभावित किया मगर ज्यादा असर नहीं डाल सके। उसका सीधा कारण किसी भी पार्टी के प्रत्याशी के प्रति उसके क्षेत्र की जनता की बेरूखी साफ दिखी, हाॅं एक मुद्दा जिले की सभी सीटों पर हाबी रहा वो हैं बदलाव की इच्छा वो भी सबसे ज्यादा सवर्णो में दिखी जो अबकी बारी मोदी सरकार का नारा जरूर लगा रहे थे मगर जब मतदान का नम्बर आया तो सबसे फिसड्डी इसी वर्ग का मतदाता रहा। जिले के मतदान में महिला वर्ग की निराशा सबसे ज्यादा सामने आयी। महिला मतदाताओं की उपेक्ष्ज्ञा जिले की चुनावी मशीनरी ने सबसे ज्यादा की। जहां कई महिनों से चुनावी तैयारियां होती रही आये दिन डीएम बैठक करते रहे मगर जब मतदाता सूची में ही सबसे ज्यादा गड़बड़ियां देखने को मिली। महिलाएं बूथों से वापस हुई तो लोगों ने घरों की महिलाओं को बूथों तक झंझट की बजह से जाने ही नहीं दिया। जिले की निर्वाचन मण्डली ने बूथों को सजाया जरूर मगर आम मतदाता जब उत्सव स्थल तक गया ही नहीं तो प्रयास ऐसा ही दिखेगा। कमोवेश अबकी बार मोदी सरकार की पार्टी ने भी पार्टी के टिकट को जीत की गारन्टी मान प्रशासन तैयारी ही नहीं किया मगर सबसे ज्यादा जीत का दावा यही दल कर रहा है। जिले में सन्देहात्मक रूप से सभी क्षेत्रों में वोटरों को मतदान सूची से गायब कर दिया गया यह गलती चाहे बीएलओ की रही या सत्ता का अपनी मशीनरी को दिया गया मंत्र था ये वो ही जाने। मगर आज की तरीख में इस सबसे कम मतदान के आंकड़े सभी दलों के पहलवानों की धुकधुकी बढ़ा रहे है कोई नहीं कह सकता की अबकी बारी ना ही अखिलेश यादव जिन्होंने लाख विरोधों के बावजूद अपने चहेते प्रत्याशी अरूण वर्मा के चुनावी क्षेत्र से अपनी चुनावी अभियान एक बहुचर्चित टोटके के तहत शुरू किया था परन्तु दुर्भाग्य सपा प्रत्याशी हत्या के मामले में नमाजद हो गया और उसका प्रभाव कई सीटों पर पड़ता दिखा। कहा जाता है कि जो भी प्रत्याशी जयसिंहपुर (सदर) सीट से जीतता है तो पार्टी प्रदेश में सरकार बनाती है। ऐसे में अब इस टोटके का क्या होगा क्या यह ‘‘मिथक’’ टूटने वाला है? इसी बात की चर्चा चहुॅं ओर चल रही है। जो भी हो ‘‘समय होते बलवान ना अर्जुन न उनका तीर कमान’’ 11 तारीख तक जिले की मीडिया भी इन्तजार करेगी जिसे जिले के इस महत्वपूर्ण पर्व पर लगभग सभी प्रत्याशियों व दिलों ने पूरी तरह उपेक्षित रखा। यही कारण है कि मतदाता, महिला और मीडिया तीनों की चुप्पी ने दलों के समीकरणों को बिगाड़कर रख दिया है।