आसिफ मिर्जा

सुल्तानपुर। इसौली विधान सभा में सबसे दिलचस्प मुकाबला चल रहा है। कही हारमोनियम की धुन पर हाथी झूम रहा है तो कही साईकिल के रेस पर बाहुबली के हैंडिल और दिक्कत सामने आ रहे है। ऐसे में इसौली सीट का चुनावी मुकाबला मतदान का दिन करीब आते-आते पार्टी कम तीन चेहरों के बीच सिमटता जा रहा है।

आईए जानें क्या है हकीकत

केस न. 1- 2012 में इसौली के 48 हज़ार वोटरों ने मामूली से घर में रहने वाले और काफी जद्दोजहद कर जिला पंचायत सदस्य की कुर्सी तक पहुंचने वाले खांटी नेता अबरार अहमद को अपने सेवक के रूप में चुना। खासकर उनके अपने वर्ग विशेष के वोटरों ने। जबकि मुस्लिम बाहुल्य सीट होने के चलते इस सीट से आब्शन के रूप में बीएसपी से रिजवान उर्फ पप्पू और कौमी एकता दल से इमरान सिद्दीकी सरीखे नेता मौजूद थे। लेकिन इन सबको दरकिनार कर सपा से अबरार अहमद को चुनने का कारण बस और बस एक था वो "क्षेत्र का विकास"।

केस न. 2- विकास की आशा लेकर अबरार अहमद को विधायक बनाने वाले यहां के वोटरों के मंसूबों पर मनो पानी पड़ गया। क्षेत्र का विकास तो नहीं हुआ हां विधायक का विकास अवश्य हुआ। बिल्डिंग भी खड़ी हो गई, कालेज भी खुल गया और घर वालों के चलने के लिए लग्जरी गाड़ी भी हो गई। क्षेत्र का आलम ये के मुस्लिम बाहुल्य सीट के इस मुस्लिम बाहुल्य इलाके हसनपुर, मनियारपुर, महराजगंज, कोटवा, इस्लामगंज, बघौना, वलीपुर सरीखे दो-चार दर्जन से ज़्यादा ग्रामों की सड़के खस्ताहाल हैं। बड़े-बड़े गड्ढे बड़ी दुर्घटना को दावत दे रहे हैं। सच तो ये है की पांच विधानसभा सीटों पर आधारित जिले की इसौली विधानसभा सीट एक मात्र ऐसी सीट है जिस पर विकास कार्य न के बराबर हुआ।

केस न. 3- वहीं 2012 में पीस पार्टी से चुनाव लड़ते हुए 34 हज़ार वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे ब्लाक प्रमुख यशभद्र सिंह मोनू इस बार भी मैदान में। बस अंतर इतना है के उन्होंने पार्टी बदल दिया हैं और इस बार उन्होंने रालोद के हैंडपंप का सहारा लेते हुए इसौली को विकास रूपी पानी से सीचने की ठानी है। उन्होंने दो दिन पूर्व विधायक के गढ़ इस्लामगंज बाज़ार में हज़ारों के बीच में कहा था के वो 2022 में जनता के बीच आएंगे, और उस समय आप हिसाब मांग सकते हो। इसका मतलब साफ है के अंदरुनी तौर पर उन्हें विधायक से नाराज़ लोगों का समर्थन प्राप्त है। वैसे इसौली की जनता की मानें तो चुनाव हारने के बाद भी मोनू उनके बीच आए और जो फरियाद लेकर उसकी मदद भी किया। जिसका उन्हें लाभ मिल रहा है। मोनू के दाहिने और बाएं हाथ हैंडिल और दिक्कत इस चुनाव में अहम् भूमिका अदा कर रहे हैं।

केस न. 4- उधर बीएसपी उम्मीदवार डा. शैलेंद्र त्रिपाठी ने भी अपनी हज़ारों की प्रैक्टिस छोड़ दो सालों से अधिक समय से क्षेत्र में दे रखा है। इस बीच उनका काम ही यही था लोगों से मिलना उनकी परेशानियां जानना और उसका निराकरण कराना। उधर बीएसपी के बेस वोट के बाद मुस्लिम वोट को उनके लिए कनवर्ट कराने के लिए बीएसपी के राष्ट्रीय महासचिव नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने बीते दिनों समस्त विधानसभा सीटों के उलमाओ के साथ बैठकर उनसे प्रत्याशियों को जिताने की बात कही थी। सूत्रों की मानें तो इसौली सीट पर क़रीब 25 की संख्या में उलमा लगाए गए हैं जो मुस्लिम वोटरों को बीएसपी के पाले में लाने की कोशिश कर रहे हैं।

केस न. 5-"वहीं सपा से टिकट न मिलने से नाराज़ और पत्नी के प्रति इसौली विधायक द्वारा की गई अभद्र टिप्पणी का हिसाब चुकता करने के लिए समाजसेवी शिवकुमार सिंह ने हारमोनियम बजवाना शुरु कर दिया है। उनके निवास प्रतिदिन हज़ारों का जमावडा लग रहा है। श्री सिंह के काफिले में भी उलमा देखे जा रहे हैं। यही नही अपने समाजसेवी छवि के चलते उन्हें हर वर्ग का समर्थन प्राप्त हो रहा। जिसके चलते सपा की फीगर खराब हो रही है। गर स्थित यही रही सपा लहर में जीती गई ये सीट सपा के हाथ से निकल सकती है।