उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ मुस्लिम समाज में प्रचलित ‘तीन तलाक’, ‘निकाह हलाला’ और ‘बहुविवाह’ की प्रथा को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करके इनका फैसला करेंगी। प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर, न्यायमूर्ति एन वी रमण और न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने इन मामलों के विषय में संबंधित पक्षों द्वारा तैयार तीन प्रकार के मुद्दों को रिकॉर्ड पर लिया और कहा कि संविधान पीठ के विचारार्थ इन प्रश्नों पर 30 मार्च को फैसला किया जायेगा। पीठ ने कहा, ‘ये मुद्दे बहुत महत्वपूर्ण हैं। इन मुद्दों को टाला नहीं जा सकता।’ केंद्र द्वारा तैयार कानूनी मुद्दों का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा कि ये सभी संवैधानिक मुद्दों से संबंधित हैं और संविधान पीठ को ही इनकी सुनवाई करनी चाहिए।
पीठ ने संबंधित पक्षों को अगली सुनवाई की तारीख पर सभी पक्षकारों को अधिकतम 15 पेज में अपना पक्ष पेश करने का निर्देश दिया। जब एक महिला वकील ने प्रसिद्ध शाहबानो प्रकरण में उच्चतम न्यायालय के फैसले के हश्र का जिक्र किया तब पीठ ने कहा, ‘किसी भी मामले के हमेशा दो पक्ष होते हैं। हम 40 सालों से मामलों में फैसला करते रहे हैं। हमें कानून के अनुसार जाना होगा, हम कानून से परे नहीं जायेंगे।’ पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि वह इन मुद्दों को तय करने के लिए शनिवार एवं रविवार को भी बैठने के लिए तैयार है क्योंकि यह बहुत ही महत्वपूर्ण है।

पिछली सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा था कि वह मुस्लिमों के बीच ‘तीन तलाक’, ‘निकाह हलाला’ और ‘बहुविवाह’ से जुड़े मुद्दों पर फैसला करेगी लेकिन इस प्रश्न से नहीं जूझेगी कि क्या मुस्लिम कानून के तहत होने वाले तलाकों पर अदालतों की निगरानी की जरूरत है या नहीं, क्योंकि यह विधानमंडल के दायरे में आता है। ‘निकाह हलाला’ का मतलब है कि कोई व्यक्ति तीन तलाक के बाद किसी महिला से तबतक पुनर्विवाह नहीं कर सकता है जबतक वह किसी अन्य व्यक्ति के साथ अपना वैवाहिक संबंध कायम नहीं कर लेती है और उसके नये पति की मृत्यु न हो जाए या वह उसे तलाक न दे दे।

प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने तब कहा था, ‘(संबंधित पक्षों के) आप सभी वकील साथ बैठकर उन मुद्दों को अंतिम रूप दें जिन पर हमें गौर करना है।’ पीठ ने संबंधित पक्षों को स्पष्ट कर दिया था कि वह किसी खास मामले के तथ्यात्मक पहलुओं से नहीं निबटेगी बल्कि वह इस कानूनी मुद्दे पर निर्णय करेगी। शीर्ष अदालत ने कहा था कि यह प्रश्न कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत होने वाले तलाकों पर अदालतों या अदालत की निगरानी वाले पंचाटों द्वारा नजर रखने की जरूरत है या नहीं, विधानमंडल के दायरे में आता है। हालांकि उसने वकीलों को तीन तलाक की कथित पीड़िताओं से जुड़े मामलों पर संक्षेप में सार पेश करने की अनुमति दे दी थी। केंद्र ने मुस्लिम समुदाय में प्रचलित तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह की प्रथाओं का विरोध किया था तथा लैंगिक समानता एवं धर्मनिरपेक्षता जैसे आधारों पर नये सिरे से गौर करने की हिमायत की थी।