नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के दो सरकारी बंगलों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुख्यमंत्री के पास दो बंगले रहें तो इसमें हर्ज क्या है? एक बंगला रहने के लिए तो दूसरा सरकारी कामकाज के लिए.कोर्ट ने कहा- मुख्यमंत्री के पास बहुत काम होते हैं, बहुत सारे लोग मिलने आते हैं इसके लिए अगर दफ्तर के काम के लिए दूसरा बंगला लिया गया है तो क्या गलत है? इस तरह तो जजों के पास भी दो हिस्से होते हैं एक सचिवालय और एक आवास. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यूपी में चुनाव होने हैं इसलिए मामले की सुनवाई चुनाव के बाद अप्रैल में करेंगे.

दरअसल, लोक प्रहरी संगठन ने सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका की थी. याचिका में अखिलेश को पांच कालीदास मार्ग के बंगले के अलावा चार विक्रमादित्य मार्ग पर सरकारी बंगला देने को चुनौती दी गई थी.

इससे पहले नवंबर में लखनऊ हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को बड़ी राहत देते हुए उन्हें दूसरा बंगला आवंटित किए जाने को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी थी. बेंच ने कहा था कि मुख्यमंत्री द्वारा पहले से आवंटित एक बंगले को कार्यालय के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा रहा है, जहां जाहिर तौर पर बहुत से लोग मिलने आते होंगे. ऐसे में परिवार की निजता का हनन होता होगा. लिहाजा दूसरे बंगले का आवंटन ऐसा विषय नहीं जिसमें कोर्ट हस्तक्षेप करे.

याचिका में कहा गया है कि मुख्यमंत्री को 5 कालीदास मार्ग के अलावा 4 विक्रमादित्य मार्ग के बंगले का आवंटन यूपी मिनिस्टर्स (वेतन, भत्ते और प्रकीर्ण उपबंध) अधिनियम- 1981 से परे जाकर किया जाना बताया गया. एसएन शुक्ला ने कोर्ट को तर्क दिया था कि उक्त अधिनियम में इसी साल संशोधन करते हुए यह आवंटन इसलिए भी किया गया है ताकि मुख्यमंत्री के कार्यमुक्त होने के बाद भी बंगला उनके पास बना रहे.

वहीं सरकार का तर्क था कि 1985 से ही प्रदेश में मुख्यमंत्री को दो बंगले आवंटित किए जाने की प्रथा चली आ रही है. याचिका में मुख्यमंत्री को प्रतिवादी संख्या 2 बनाकर 5 कालीदास मार्ग के अलावा एक अन्य बंगला आवंटित करने संबंधी आदेश निरस्त करने की मांग की गई थी.