(14 जनवरी पर विशेष)

शीत ऋतु के बीच जब सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं जिसे इसी दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारम्भ होती है। एक प्रकार से यह पर्व जीवन व सृष्टि में नवसंचार करता है। यह हिंदुओं का प्रमख परिवर्तनकारी समय का पर्व है। यह पर्व पूरे भारत व पड़ोसी नेपाल में भी पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है। तमिलनाडु में इस पर्व को पोंगल के नाम से मनाया जाता है जबकि कर्नाटक केररल व अांध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं। मकर संक्रांति पर्व का विशेष महत्व है। इस पर्व के दिन जप, तप, दान, स्नान, श्रद्धा, तर्पण आदि धार्मिक विधि विधान व कर्मों का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन दिया गया दान सौ गुना पुन बढ़कर प्राप्त होता है। कहा जाता है कि इस दिन घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है।इसदिन गंगा स्नन एवं गंगातट पर दान का भी विशेष महत्व है।इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगा सागर में स्नान को महास्नन की संज्ञा दी गयी है। इस संक्रांति से सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं। वैज्ञानिक मान्यता है कि इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गर्मी की शुरूआत होने लग जाती है। दिन बड़ा होने से प्रकाश का वातावरण अधिक होता है । अतः सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना गया है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्यशक्ति में वृद्धि होती हैं । इस अवसर पर सम्पूर्ण भारत में सूर्य देव की उपासना, आराधना एवं पूजन करने का विधि-विधान है।

इस पर्व का ऐतिहासिक महत्व भी है। मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं।महाभारत काल में इसी दिन भीष्म पितामह ने अपनी देह का त्याग किया था। आज ही के दिन गंगाजी भगीरथ के पीछे- पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। इसी दिन भगवान विष्णु ने असरों का अंत कर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी और यही कारण है कि इस पर्व को बुराइयों और नकारात्मकता समाप्त करने का पर्व कहा जाता है।

सम्पूर्ण भारत में यह पर्व किसी न किसी रूप में मनाया जाता है तथा वर्तमान समय में यह पर्व भी आधुनिकता के रंग भी गया है । हरियाणा और पंजाब में यह पर्व लोहड़ी के रूप में एक दिन पहले मनाया जाता है। इस दिन अंधेरा होते ही आग जलाकर अग्निदेव की पूजा करते हुए तिल गुड़ चावल और भुन हुए मुक्के की आहुति दी जाती है। इस सामग्री को तिल चौली कहा जाता है। इस दिन पारम्पपरिक मक्के की रोटी व सरसों के साग का आनंद भी उठाया जाता है। उप्र में यह पर्व दान का पर्व है। इलाहाबाद में गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर विशाल मेला लगता है। जिसे माघ मेले के नाम से जाना जाता है। इसी दिन से अच्छे कामों अर्थात मांगलिक कामों की शुरूआत हो जाती है। माघ मेले का प्रथम स्नान संक्रांति से शुरू होकर शिवरात्रि के आखिरी स्नन तक चलता हैं। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में गोरखनाथ मंदिर में विशाल मेला लगता है जो खिचड़ी मेले के नाम से प्रसिद्ध है। बागेश्वर में बड़ा मेला लगता है। इस दिन लगभग सभी बड़ी नदियों के तट पर स्नन व दान आदि का बड़ा महत्व होता हैं। इस दिन स्नान करके मिल के मिष्ठान्न आदि को ब्राहमणों व पूज्य व्यक्तियों को दान किया जाता है। इस पर्व के अवसर पर गंगा एवं रामगंगा घाटों पर बड़े – बड़े मेले लगते हैं। उप्र में इस व्रत को खिचड़ी के नाम से जाना जाता हैं। इस दिन खिचड़ी खाने एवं खिलाने का बड़ा महत्व है। खिचड़ी दान का भी सर्वाधिक महत्व हे।

बिहार में इस पर्व को खिचड़ी नाम से जाना जाता हैं। इस दिन उड़द, चावल, तिल, गौ, स्वर्ण, ऊनी, वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का अपना महत्व है। महाराष्ट्र में भी यह पर्व बड़े धूमधाम व उमंग के साथ मनाया जाता है। यहां पर यह पर्व सुहागिनों का पर्व है। इस दिन महिलाएं आपस में तिल, गुड़ एवं रोली और हल्दी बांटती है। वहीं बगाल में इस पर्व पर तिल दान करने की प्रथा हैं। यहां गंगासागर में प्रतिवर्ष विशाल मेला लगता है।

तमिलनाडु में इस पर्व को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाया जाता है। पोंगल मनाने के लिये स्नान करके खुले आंगन में मिटअी के बर्तन में खीर बनायी जाती है। जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्यदेव को भोग लगाया जाता है। असोम में मकर संक्रांति को माघ बिहु अथवा भोगाली बिहू के नाम से मनाया जाता हैं ।

एक प्रकार से मकर सक्रांति का पर्व पूरे भारत में उत्साह, उमंग, उल्लास का पर्व है। यह समाज को सकारात्मक विचार प्रदान करने वाला पर्व है। वर्तमान समय में इस पर्व में भी आधुनिकता का रंग चढ़ गया है। अब इस पर्व पर भी लोग व्यापक पैमाने पर बधाई संदेश देने लग गये हैं तथा इसके लिये आधुनिक संचार के सभी साधनों का उपयोग किया जाता है। गुजरात में तो पतंगबाजी का विशेष महत्व हैं जिसमें भारी संख्या में देशी और विदेशी पर्यटक तथा बड़ी- बड़ी हस्तियां हिस्सा लेती हैं। यहीं नही उत्तर भारत का अधिकांश आकाश पतंगों से भर जाता है।

वर्तमान समय में इस पर्व को राजनैतिक हितों की पूर्ति के लिये भी उपयोग किया जाने लग गया है। भारत में इस समय पांच राज्यां के विधानसभा चुनावों से पहले इस पर्व का तो और भी महत्व बढ़ गया है। सभी दल इस पर्व को अपने -अपने हिसाब से भुनाने की तैयारी में लगे हैं। कई दलों ने तो चुनाव में अपने उम्मीदवारों व चुनाव घोषणापत्रों आदि का ऐलान भी टाल दिया है तथ संक्रांति के समापन का समय निकाल रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी हर बार की तरह अपना सामाजिक समरसता भोज का कार्यक्रम व्यापक पैमाने पर मनाने जा रहा हैं। इस बार इस पर्व का इसलिए भी महत्व है क्योंकि भाजपा व संघ के समस्त संगठनों ने दलित बस्तियां में भी समरसता भोज का आयोजन करने का फैसला लिया है। संघ ने इस बार सहजभेग का नारा भी दिया हैं।

प्रेषकः- मृत्युंजय दीक्षित

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