नई दिल्ली। कज़ाख़स्तान ने अपनी आज़ादी के 25 साल में बहुत तरक़्क़ी की है और इस दौरान उसने पूरी दुनिया से सम्मानजनक राजनीतिक और कूटनीतिक संबंध बनाए हैं। यह बात भारत में कज़ाख़स्तान के राजदूत बुलत सरसेनबायेव ने आज़ादी के पच्चीस साल पूरे होने के मौक़े पर कही।

उन्होंने बताया कि हमने जब आज़ादी हासिल की थी तब हमारे पास बहुत संसाधन नहीं थे और हमने एक शून्य से शुरूआत की। कज़ाख़स्तान ने समाजवादी सोवियत व्यवस्था से सीधे खुले बाज़ार की रणनीति को अपनाया और बहुत कम समय में लोगों ने आत्मसात कर लिया। हमने रणनीतिक फ़ैसले किए गए ताकि उम्मीद के मुताबिक़ देश का विकास किया जा सके। बुलत ने बताया कि बड़े स्तर पर कज़ाख़स्तान में निजीकरण किया गया, वित्त और बैंकिंग सिस्टम को खड़ा किया गया, राजनीतिक और आर्थिक सुधार किए गए जिसकी बदौलत ना सिर्फ़ हमें बाहरी निवेश मिला बल्कि हम नई राजधानी के तौर पर अस्ताना को संवारने पर कार्य कर पाए। कज़ाख़स्तान 2030 और कैस्पियन सागर में पाइपलाइन योजना के तहत हमने आगे बढ़ने की योजना बनाई। राजदूत ने बताया कि 16 दिसम्बर 1991 को आज़ादी हासिल करने के बाद भारत और कज़ाख़स्तान काफ़ी क़रीब आए हैं। कज़ाख़स्तान भारत को काफ़ी महत्व देता है क्योंकि राष्ट्रपति नूरसुल्तान नज़रबायेव ने सबसे पहले 1992 में भारत यात्रा की। बाद में वह 1996, 2002 और 2009 में भारत आए। इस दौरान उन्होंने भारत के साथ दोतरफ़ा संबंधों पर काफ़ी प्रगति पर ज़ोर दिया।

सरसेनबायेव ने बताया कि देश को संक्रमण से बचाने के लिए हमने पाँच वर्षीय औद्योगिक नीति अपनाई है। सरकार ने औद्योगिक विकास के लिए नूर झोल नाम की योजना बनाई है जिसमें औद्योगिक सुधार और विकास के लिए 100 बिन्दुओं पर तेज़ी से कार्य किया जा रहा है। लोक प्रशासन, शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार के साथ हम छोटे और मझौले उद्योगों के उन्नयन के लिए काफ़ी कार्य कर रहे हैं। हमने एक स्थिर विदेश नीति पर भी कार्य किया है। साल 2017-18 के लिए कज़ाख़स्तान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में ग़ैर स्थाई सदस्य के रूप में भी चयनित हुआ है।