लखनऊ: उत्तर प्रदेश के राज्यपाल श्री राम नाईक ने आज संगीत नाटक अकादमी के संत गाडगे प्रेक्षागृह में चिन्मय मिशन द्वारा आयोजित ‘गीता ज्ञान यज्ञ’ का उद्घाटन किया। इस अवसर पर चिन्मय मिशन के प्रमुख स्वामी तेजोमयानन्द महाराज, आचार्य ब्रह्मचारी कौशिक चैतन्य, चिन्मय सेवा ट्रस्ट की अध्यक्षा ऊषा गोविन्द प्रसाद सहित बड़ी संख्या में भक्तजन उपस्थित थे। राज्यपाल ने कार्यक्रम में ‘चिन्मय वन्दना’ नामक स्तुति पुस्तिका का लोकार्पण किया तथा आरती में भी भाग लिया।

राज्यपाल ने अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि विश्व के ग्रंथों में गीता अद्भुत गं्रथ है। भागवत गीता ही ऐसा ग्रंथ है जो हमें साधन और साध्य में सामंजस्य स्थापित कर जीवन के सर्वोच्च उद्देश्य को प्राप्त करने का ज्ञान देता है। गीता सामान्य व्यक्ति के ज्ञानवर्द्धन का साधन होने के साथ-साथ कर्तव्य के प्रति दिशा देने वाला ग्रंथ भी है। सार्वजनिक जीवन में काम करने वालों के लिये गीता आदर्श है। गीता के एक श्लोक में कहा गया है कि सज्जन व्यक्ति के लिये अपकीर्ति से मृत्यु बेहतर है। उन्होंने कहा कि इस मर्म का समझकर व्यवहार करें तो समाज को नयी दिशा मिलेगी।

श्री नाईक ने कहा कि गीता केवल विद्धानों के लिये ही नहीं बल्कि मानव धर्म के मार्गदर्शन करने वाले विचारों का महामार्ग है, जो निष्काम कर्म का दर्शन है। उनके जीवन पर गीता का विशेष प्रभाव है। उन्होंने अपनी बचपन की बात करते हुये बताया कि उनके विद्यालय में सभी विद्यार्थियों को सूर्य नमस्कार करना अनिवार्य था। कक्षा में स्वामी समर्थ रामदास के श्लोक व गीता के पाठ का अर्थ सहित अध्ययन कराया जाता था, जिसका व्यक्तित्व पर प्रभाव होता था। बिना फल की आशा किये अपने कर्तव्य को करने की आदत व्यवहार में लाना मुश्किल कार्य है।

स्वामी तेजोमयानन्द ने प्रवचन करते हुये कहा कि मनुष्य की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह अपनी समस्या नहीं जानता। गीता सम्पूर्ण मानव जाति के लिये दिव्य संदेश है। समस्या जानने के लिये आत्मज्ञान होना जरूरी है। उन्होंने गीता के मर्म को समझाते हुये कहा कि गीता में कर्तव्य के प्रति समर्पण का भाव बताया गया है।
कार्यक्रम में लखनऊ चिन्मय सेवा ट्रस्ट की अध्यक्षा ऊषा गोविन्द प्रसाद ने स्वागत उद्बोधन दिया तथा आचार्य ब्रह्मचारी कौशिक चैतन्य ने धन्यवाद ज्ञापित किया।