नई दिल्ली: गेहूं फिर से देश के कई बड़े शहरों में महंगा हो गया है. जहां वो सस्ता है, वहां नोटबंदी की वजह से बिक्री आधी रह गई है. कुल मिलाकर गेहूं का कारोबार संकट में है. खाद्य मंत्रालय के पास मौजूद ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक 20 नवंबर से 10 दिसंबर के बीच चेन्नई में गेहूं 400 रुपये क्विंटल महंगा हो गया है, जबकि इन बीस दिनों में वाराणसी में इसकी कीमत 210 रुपये क्विंटल और पटना, हिसार, पंचकुला और सिलिगुड़ी में 200 रुपये क्विंटल बढ़ गई है.

हालांकि सरकार ने गेहूं की कीमतों पर नकेल कसने की तैयारी पहले से शुरू कर दी है. सरकार ने पहले सितंबर में आयात शुल्क 25 फीसदी से घटाकर 10 फीसदी किया और अब पिछले हफ्ते शून्य कर दिया.

अब सवाल ये उठ रहा है कि जब रबी का गेहूं बाज़ार पहुंचेगा तो क्या किसानों को उसकी वाजिब कीमत मिल पाएगी, क्योंकि तब तक आयात किया हुआ गेहूं आ चुका होगा. क्या ये फ़ैसला किसानों की परेशानी बढ़ाएगा?

नरेला मंडी में द फारमर्स एग्रो-क्रेडिट कोऑपरेटिव मार्केट लिमिटेड के मैनेजर प्रताप सिंह खत्री कहते हैं, 'सरकार ने गेहूं पर आयात शुल्क खत्म करने का जो फैसला किया है, उससे किसानों को नुकसान होगा. उन्हें पहले से ही उनकी उपज का सही कीमत नहीं मिल पा रहा है.'

संकट इतना भर नहीं है, दिल्ली की नरेला मंडी में गेहूं इन दिनों सस्ता भी हुआ है. मगर नोटबंदी की वजह से बिक्री आधी रह गई है. नरेला मंडी में गेहूं व्यापारियों का कहना है कि नोटबंदी के बाद से खरीददार कम आ रहे हैं क्योंकि उनके पास कैश का संकट है. उनका व्यापार नोटबंदी के बाद 50 फीसदी तक घट गया है. गेहूं व्यापारी आशीष जैन ने एनडीटीवी से कहा, गेहूं मंडी में कम बिक रहा है. जो खरीददार हैं, उनमें से कई के पास बैंक अकाउंट नहीं है और वो ऑनलाइन बैंकिग नहीं जानते. इसकी वजह से गेहूं की बिक्री आधी रह गई है.

कारोबार घटने का सबसे ज़्यादा खामियाज़ा मज़दूर भुगत रहे हैं. ठेकेदार मुन्ना कहते हैं कि मंडी में काम 70 फीसदी तक घट गया है. व्यापारियों के पास कैश कम है और मज़दूरों को चेक से पेमेंट कर रहे हैं, जिसे बैंक में भुनाना मुश्किल हो रहा है.