पेटीएम से नहीं आज भी अनाज बदलकर सामान खरीदते है गाॅववासी

सुलतानपुर। नोटबंदी ने जहां शहरीयों की बचत को बैकों में जबरिया जमा करा दिया तो वहीं गाॅववासियों की बखरी में पेट-परिवार चलाने का अनाज जरूरी समान खरीदने के लिए सेठ साहूकारों के गोदामों में जमा कराने को मजबूर किया जा रहा है। लगता है जैसे भारत के संविधान की मूलभूत भावना और अधिकारियों-जीने-खाने व स्वतंत्रता के साथ रीति रिवाज शादी-विवाह करने पर अपरोक्ष रूप से स्वंभू प्रधानमंत्री द्वारा रोक लगा दी गई है। जनता आज अपने वोट से चुने गये प्रधानमंत्री से पूछना चाहती है कि अपनी राजनैतिक दुश्मनी कांग्रेस व भ्रष्टाचारियों से थी तो गरीबों को क्यों इसमें पीसा जा रहा है? क्या आपकी ईडी, सीबीआई व अन्य मशीनरी पर भरोसा नहीं है? पहले धन कुबेरों से यह शुरूआत क्यों नहीं की? अपनी बिरादरी नेताओं अफसर साहों द्वारा कालाधन रखने की जानकारी आपको नहीं थी या है? तो फिर मध्यमवर्गी, गाॅव गरीबों को और भारत की पर्दानशीन माॅ-बहनों को बैकों के एटीएम की सडकों पर लगी लाइन में क्यों धक्का खिलवा रहे है क्या यह बेहद जरूरी था? भारत के 30 प्रतिशत शरीफो, गरीबों को जो सरकार व सरकारी कानूनों को मानते है उनको उनकी गाढ़ी, ईमानदार कमाही को क्यो सार्वजनिक करना चाहते है? भारत में महज 22 प्रतिशत धनाढ़य लोग ही हवाला के जरिये व नम्बर दो की कमाई वाले होगें और वो कभी अपने गलत तरीके से कमाये धन को किसी भी बैंक में न तो पहले रखते थे न ही आज रखेगें। उनके पास पहले से जरिया था अैर आज भी अपने रसूख और धनबल के जरिये आप द्वारा जारी सुरक्षित करैंसी प्राप्त करने की ताकत है और इसका नमूना सामने है उसके लिए शरीफो का उत्पीड़न जरूरी नहीं है दम हैं तो भारत के उच्चपदों पर बैठे सातवें वेतनमान के बावजूद कई गुना ज्यादा अवैध कमाई रखने वालों के यहां छापामार कर दिखाये तो जाने? नेताओं मंत्रियों के यहां छाया क्यों नहीं डालते? सारा कालाधन व सभी तुगलकी फरमान केवल शरीफो, कानून पसन्दों के लिए है? आखिर ये कौन सी सोच है? मोदी जी की अपनी पार्टी में ही प्रधान से लेकर राष्ट्रीय नेता तक अपनी आय से ज्यादा धन वाला है। नमूना भारत के किसी भी गाॅव में देखने को मिल जायेगा, चुनाव लड़ने योग्य समझा जाता है आज की तारीख में किसी गरीब को चुनाव लड़ने के लिए किसी भी राजनैतिक दल से टिकट नहीं मिलता न ही उन्हें मोदी की परिवर्तन रैली की जिम्मेदारी दी जाती है, यह कटु सत्य है। बिना भीड़ बिना कालाधन के स्वतः स्फूर्त जनता कभी किसी नेता की रैली की भीड़ नहीं बनती, ज्यादा भीड़ लाने के टिकटार्थियों की ताकत का परचायक माना जाता है अैर वहीं भाजपा के टिकट के योग्य समर्थ उम्मीदवार माने जाते है। नोटबंदी का असर उन पर नहीं दिखा न ही एटीएम की लाईन में ऐसे भाजपाई टिकटार्थी 8 नवम्बर के पहले दिखे न बाद में। गाॅव-गरीबों को पेटीएम व कैसलेश की स्कीम समझाने वाले केन्द्रीय नेताओं को समझना चाहिए कि चार बार अमेरिका मोदी के जाने और जुकरवर्ग से मिल लेने भर से भारत गाॅव-गरीबी से हटकर हाईटेक और पेटीएमधारी नहीं बन जायेगा उसे आज भी अपनी पायल, बिछुआ के लिए चुरौंधा नोट चाहिए, घर आई बहन बेटियों के लिए नेग नेछू के लिए पैसे की जरूरत है, कथावार्ता में आज भी 20 आना पंडीजी को देने के लिए चाहिए। दाना-भूसा के लिए पैसा चाहिए पेटीएम उनके लिए अंतरिक्षयान जैसा है मोदी जी भारत की पुरातन परम्परा रीत-रिवाज व धर्म परिवर्तन की कोशिश शायद ही कभी पूरी होगी। बराक ओबामा के व्हाईट हाऊस और भारत की लाल किले की प्राचीर में बहुत अंतर है हिमालय की कंदरा और गाॅव-गंगा जल में जो अपनत्व और प्यार है वो पेटीएमधारी अमेरिकी में नहीं हो सकता आप और आपके नेता शौक से विदेश घूमे मगर भारत की मुद्रा में एक परम्परा छुपी है जिसे पहचाने नहीं तो 2019 में सबकुछ हमेशा के लिए बदल जायेगा।