नई दिल्ली: नोटबंदी के फैसले को कानूनी चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, लोग वास्तव में पीडि़त हैं। सरकार को इस ओर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कोऑपरेटिव बैंकों को हो रही दिक्कत का भी हवाला दिया। हालांकि मामला सुनवाई के लिए 5 दिसंबर तक स्थगित कर दिया है।

चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि कोऑपरेटिव बैंक का मामला काफी गंभीर है। सरकार को इस दिशा में जरूर कुछ करना चाहिए अगर संभव हो। इसके अलावा उन्होंने ये भी कहा कि आम आदमी परेशान हैं और ये काफी गंभीर मामला है।

इससे पहले कल केंद्र सरकार ने कोर्ट में दूसरी बार शपथ पत्र दायर कर इस मामले पर अपनी राय रखी। इसमें कहा गया कि 500 और 1000 के नोट को बंद करने का फैसला कहीं से भी नागरिकों के मौलिक अधिकार का हनन नहीं है। सरकार ने ये भी स्पष्ट किया कि हमने नोटबंदी के अलावा जरूरी प्रतिबंध लगाया है ताकि कालाधन और नकली नोटों की समस्या का रोकथाम हो सके।

अपने जवाब में केंद्र सरकार ने कहा है कि 8 नवंबर को नोटबंदी की अधिसूचना पूरी तरह कानूनी है। अभी की परिस्थिति में लोग अभाव की जिंदगी नहीं जी रहे हैं। वे अभी भी अपने पैसे के इस्तेमाल चेक, ई ट्रांसफर आदि के माध्यम से कर सकते हैं। इसमें ये भी कहा गया है कि अपना पैसा निकालने, बदलने या जमा करने को लेकर वर्तमान में लगाया गया प्रतिबंध सिर्फ वक्त की मांग है यह निश्चित समय सीमा तक ही रहेगा।

इसके अलावा केंद्र सरकार ने 2000 के नोट को लागू करने के निर्णय को भी सही ठहराया। कहा गया है कि इसका निर्णय वर्तमान में लगातार बढ़ रही मुद्रास्फीति और रुपये की गिरती मजबूती को देखते हुए लिया गया है। सरकार ने इस तर्क को सिरे से खारिज कर दिया कि केंद्र सरकार के पास नोटबंदी का अधिकार नहीं है।