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भारत 1991 के आर्थिक सुधारों के दौर से सतत विकास के युग में जा रहा है: मनमोहन सिंह

नई दिल्ली : पूर्व प्रधानमंत्री व देश में आर्थिक सुधारों के अगुवा मनमोहन सिंह ने आज कहा कि आर्थिक वृद्धि दर को 7-7.5 प्रतिशत पर बनाए रखने के लिए विशेषकर बुनियादी ढांचे में निवेश बढाने तथा विदेश व्यापार में नयी जान फूंकने की जरूरत है।

मनमोहन सिंह ने आज यहां उद्योग मंडल पीएचडी चैंबर्स ऑफ कॉमर्स के सालाना सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि आर्थिक नीतियां इस तरह से बनाई जानी चाहिए जिसमें सार्वजनिक वित्तपोषण और वृद्धि प्रक्रिया के बीच बेहतर संतुलन बिठाया गया हो।

उन्होंने कहा, ‘इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए समावेशी विकास को लोक वित्तपोषण, वित्तीय स्थिरता, रोजगार सृजन, आर्थिक वृद्धि व पर्यावरण संरक्षण से जोड़े जाने की जरूरत है।’ उल्लेखनीय है कि सिंह की अगुवाई वाली संप्रग सरकार के बाद 2014 में सत्ता में आई मोदी सरकार देश को दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बनाने की बात कर रही है।

मनमोहन ने कहा, ‘हालांकि भारत इस समय 7-7.5 प्रतिशत सालाना की दर से वृद्धि कर रहा है लेकिन वृद्धि प्रक्रिया में स्थिरता के लिए निवेश दर में उल्लेखनीय बढोतरी की जरूरत है विशेषकर नये ढांचागत क्षेत्रों में। इसके साथ ही हमारे अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्षेत्र विशेषकर निर्यात में नयी जान फूंकनी होगी।’ उन्होंने कहा कि भारत 1991 के आर्थिक सुधारों के दौर से सतत विकास के युग में जा रहा है।

पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा, ‘अब प्राथमिकता केवल तेजी नहीं बल्कि वृद्धि, समानता, समावेश, रोजगार सृजन व पर्यावरणीय सतता के बहुआयामी पहलुओं को दी जानी चाहिए।’ इसके साथ ही उन्होंने उच्च शिक्षा, कुपोषण व गरीबी उन्मूलन में सामने आ रही चुनौतियों को पहचानने की महत्ता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, ‘गरीबी मिटाने के लिए आर्थिक वृद्धि व व्यापक आर्थिक स्थिरता जरूरी है।’ उन्होंने कहा कि नीतिगत हस्तक्षेप के जरिये बेहतर रोजगार सृजन पर ध्यान दिया जाना चाहिये।

मनमोहन ने कहा, ‘श्रम बल में आने वाले युवाओं को काम उपलब्ध कराने के लिये भारत में हर साल 1.20 करोड़ नये रोजगार पैदा करने की जरूरत है। बेरोजगारी के उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि इस मामले में हमारे प्रदर्शन में काफी अंतर बना हुआ है।’

उन्होंने कहा, ‘भारत को बहुआयामी रणनीति अपनानी होगी। इसमें त्वरित वृद्धि, गरीबी कम करने और रोजगार के अवसर पैदा करने, विशेषतौर पर कमजोर तबके के लिये स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में आवश्यक सेवाओं में सुधार लाने, शिक्षा में कौशल विकास और नये रोजगार के अवसर पैदा करने की जरूरत है।’ मनमोहन ने कहा कि कुपोषण को समाप्त करने के लिये सरकार, शहरी और ग्रामीण निकायों और निजी क्षेत्र को मिलकर आगे बढ़ना होगा।

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