भागलपुर । 27 वर्षों बाद भी 1989 के भागलपुर सांप्रदायिक हिंसा के पीड़ित न्याय से वंचित हैं। उन्हें 1984 के सिक्ख दंगा पीड़ितों के तर्ज पर क्षति पूर्ति मुआवजा मिलना चाहिए था, किन्तु पटना-दिल्ली की आती-जाती सरकारें आज तक इसकी गारंटी नहीं कर पायी। यह एक बड़ा सवाल भागलपुर सांप्रदायिक हिंसा के 27 वर्ष बाद भी बना हुआ है। इस सांप्रदायिक हिंसा पीड़ितों को आज तक सरकार के द्वारा पुनर्वासित करने का भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। उक्त बातें न्याय मंच द्वारा गांधी शांति प्रतिष्ठान में आयोजित प्रेस वार्ता को रिहाई मंच, उत्तर प्रदेश के महासचिव राजीव यादव ने संबोधित करते हुए कहा। उन्होंने कहा कि सांप्रदायिक हिंसा पीड़ितों को जमीन वापसी के नाम पर नीतीश-लालू की सरकार ठगने का काम कर रही है। इस साल के अप्रैल में नीतीश सरकार ने दंगा पीड़ितों को जमीन वापसी के मसले पर बुलाकर कार्यवाही का आश्वासन दिया था, किन्तु इसके छह माह बीतने के बाद भी जमीन वापसी की कार्यवाही एक इंच भी आगे नहीं बढ़ पायी है। जिन दंगा पीड़ितों को उस वक्त औने-पौने तरीके से अपनी जमीन बेचनी पड़ी थी, उन्हें जमीन वापसी के नाम पर राज्य सरकार कोर्ट-कचहरी के चक्कर में उलझाये रखना चाहती है। सरकार की अगर सही मनसा होती तो इस दिशा में त्वरित और ठोस कदम उठाया गया होता।

राजीव यादव ने कहा कि भागलपुर सांप्रदायिक हिंसा के 27 वर्ष बाद भी दंगे के वक्त गायब लोगों के परिजनों को आज तक कोई मुआवजा नहीं दिया गया है। शाहकुंड के लापता मोहम्मद शमशेर खान (पिता- मो. ककुल खान) और मो. शारे (पिता शेख मोहम्मद इज़राइल) के परिजनों को आज तक कोई मुआवजा नहीं दिया गया है। ऐसे और भी कई लापता लोगों के परिजन आज भी मुआवजे से वंचित हैं। शाहकुंड में कब्रिस्तान की जमीन पर दंगाइयों का कब्जा है और कब्रिस्तान की चाहारदीवारी व गेट तक को दंगाइयों द्वारा तोड़ दिया गया है। दंगाई आज भी दंगा पीड़ितों को खुलेआम तरह-तरह की धमकियाँ दे रहे हैं। दंगा पीड़ितों को सुरक्षा देने के मोर्चे पर भी सरकार पूरी तरह से नाकाम है। उन्होंने कहा कि नीतीश का भागलपुर दंगा पीड़ितों को जमीन वापसी का वादा उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार के उस वादे की ही तरह है, जिसमें उन्होंने आतंकवाद के नाम पर गिरफ्तार मुस्लिम युवाओं को छोड़ने, आरक्षण देने और उनके पुनर्वास की बात की थी, जिससे आज वे पूरी तरह भाग खड़े हुए हैं। उन्होंने कहा कि बिहार से लेकर उत्तर प्रदेश में सेकुलर और सामाजिक न्याय के नाम पर चल रही सरकारों का चरित्र एक जैसा है। दोनों राज्यों में लालू-नीतीश और मुलायम, मायावती की सरकारें आती-जाती रहीं किन्तु सांप्रदायिक हिंसा पीड़ितों को न्याय नहीं मिला। हिंसा पीड़ितों को न्याय से वंचित किया गया। उन्होंने कहा कि यदि भागलपुर (बिहार), हाशिमपुरा व मलियाना (उत्तर प्रदेश) के सांप्रदायिक हिंसा पीड़ितों को न्याय मिला होता तो आज मुजफ्फरनगर से लेकर पूरे देश में जारी सांप्रदायिक हिंसा को अंजाम देने वाली शक्तियों का इस कदर मनोबल नहीं बढ़ा हुआ होता।

श्री राजीव यादव ने कहा कि सेकुलरिज़्म-सामाजिक न्याय की बात करने वाली चालू राजनीति अल्पसंख्यकों व दलितों के लोकतांत्रिक अधिकारों की गारंटी करने और उन्हें न्याय व सुरक्षा देने में पूरी तरह से नाकाम रही है। ये तथाकथित सेकुलर-सामाजिक न्याय मार्का पार्टियां अपने मूल चरित्र में हिंदुत्ववादी ही हैं और इनका दलित-अल्पसंख्यक प्रेम महज सत्ता प्राप्ति तक ही सीमित है। इनके लिए दलित-अल्पसंख्यक महज वोट बैंक हैं। आगे उन्होंने कहा कि जब देश में बीजेपी-आरएसएस कमजोर स्थिति में था, तब इन तथाकथित सेकुलर-सामाजिक न्याय मार्का पार्टियों का यह रवैया था। और आज जब बीजेपी-आरएसएस अत्यंत ही मजबूत स्थिति में हैं तब इनसे दलितों-अल्पसंख्यकों को न्याय की क्या उम्मीद हो सकती है? उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि इन तथाकथित सेकुलरिज़्म-सामाजिक न्याय की लफ्फाजी करने वाली पार्टियों और उनके नेता- लालू-नीतीश, मुलायम-मायावती व कांग्रेस ने ही फासीवादी बीजेपी-आरएसएस की जमीन तैयार की है। इसलिए इनसे दलितों-अल्पसंख्यकों व कमजोर तबकों को न्याय की उम्मीद करना बेमानी है।

श्री राजीव यादव ने कहा कि अल्पसंख्यकों और दलितों को न्यायालय से भी न्याय की गारंटी नहीं हो पा रही है। उत्तर प्रदेश के हाशिमपुरा से लेकर बिहार के बाथे-बथानी टोला और मियांपुर के जनसंहार पीड़ितों को न्याय नहीं मिला है। बारी-बारी से इन जनसंहारों के आरोपी न्यायालय द्वारा बारी कर दिये गए हैं। उन्होंने कहा कि मालेगांव ब्लास्ट और हाल में आया बिहार के सेनारी कांड पर न्यायालय का फैसला स्पष्ट करता है कि न्यायालय का पलड़ा सवर्ण-सामंती और हिन्दू सांप्रदायिक ताकतों की तरफ झुका हुआ है।

राजीव ने कहा कि पूरे देश में न्याय की आवाज उठाने और न्याय के लिए संघर्ष करने वाले लोगों पर हमले किए जा रहे हैं। उन्हें देशद्रोही, आतंकवादी, नक्सली ठहराया जा रहा है। कलबुर्गी, पांसारे की हत्या से लेकर उत्तर प्रदेश में अखलाक और झारखंड में मिनहाज अंसारी की हत्याओं का एक लंबा सिलसिला चल पड़ा है और इन हत्यारों को सत्ता का खुला संरक्षण हासिल है। सत्ता लोकतन्त्र में असहमति के तमाम स्वर को कुचल देने पर तुली हुई है। पूरे देश में बर्बर दलित उत्पीड़न की घटनाओं और आदिवासियों पर हमले में इजाफा हो रहा है। निर्दोष अल्पसंख्यक युवाओं को जब-तब आतंकवादी बताकर जेलों में डाला जा रहा है, उन्हें गायब तक किया जा रहा है। बिहार के दरभंगा से दर्जनों मुस्लिम युवाओं को आतंकवाद के नाम पर गिरफ्तार किया गया है। दरभंगा के फसी मोहम्मद को 5 महीने तक गायब रखा गया। जबकि फसी मोहम्मद पेशे से इंजीनियर था। देश की राजधानी स्थित देश के चर्चित विश्वविद्यालय से नजीब अहमद एक महीने से भी ज्यादा वक्त से गायब है। नजीब के परिजन दर-ब-दर की ठोकरें खा रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह आरोप लगाया जाता था कि मुसलमान शिक्षा पर ध्यान नहीं देते। आज जब मुस्लिम लड़के पढ़ने जा रहे हैं, नौकरी करने जा रहे हैं तो उन्हें गायब तक कर दिया जा रहा है। उन्हें आतंकवादी बताकर जेलों में डाला जा रहा है एवं हत्याएं तक की जा रही हैं। सत्ता के लिए यह सब कोई सवाल- मुद्दा नहीं है।

वहीं संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए न्याय मंच के रिंकु ने कहा कि भोपाल सेंट्रल जेल से 8 मुस्लिम युवाओं को उठाकर षड्यंत्रपूर्वक उनका पुलिस द्वारा एनकाउंटर कर दिया गया। जब इसकी न्यायिक जांच की मांग की गई तो रिहाई मंच के महासचिव राजीव यादव का बर्बर पुलिस दमन किया गया। सत्ता ने पुलिस दमन के जरिये न्याय की तमाम आवाजों को दबाने की मुहिम छेड़ रखी है। न्याय मंच के ही डॉ. मुकेश कुमार ने कहा कि आज न्याय के सवाल पर गुजरात के ऊना से लेकर उत्तर प्रदेश के हाशिमपुरा-मलियाना-मुजफ्फरनगर और बिहार के भागलपुर, झारखंड के बड़कागांव सहित देश के तमाम जगहों पर लड़ी जा रही लड़ाइयों के बीच एकजुटता बन रही है। आज जरूरत इस बात की है कि दलितों, वंचितों-अल्पसंख्यकों-कमजोर तबकों और महिलाओं की राष्ट्रव्यापी मजबूत एकता बने और न्याय व लोकतंत्र के लिए संघर्ष तेज किया जाय। संवाददाता सम्मेलन में पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता अभिषेक आनंद, उर्दू के स्वतंत्र पत्रकार फ़र्राह शकेब, हरिजन सेवक संघ की युवा इकाई के राष्ट्रीय संयोजक रूपेश कुमार, प्रगतिशील छात्र संगठन के अंजनी भी उपस्थित थे।

अपने भागलपुर दौरे में राजीव यादव ने भागलपुर सांप्रदायिक हिंसा पीड़ितों- शाहकुंड के मो. जब्बार, मो. नूर शाह, मो. जकीर, मो. इस्लाम और भागलपुर के मो. जावेद तथा सुल्तानगंज के भूमिहीन दलितों- पोली पासवान, शंकर दास आदि से भी मिले। उन्होंने भागलपुर शहर के चंपानगर जाकर बुनकरों से भी मिले।