नई दिल्ली: टाटा ग्रुप के चेयरमैन पद से अचानक हटाए गए साइरस मिस्त्री ने बोर्ड मेंबर्स को भेजी गई ईमेल में कहा है कि उन्हें जिस तरह से बाहर किया गया, उससे उन्हें 'झटका लगा'. इस ईमेल में उन्होंने लिखा है कि 'बोर्ड को इस फैसले से कोई प्रशंसा नहीं मिली है' और उन्हें 'अपने बचाव के लिए मौका' तक नहीं दिया गया. रतन टाटा ने मिस्त्री की जगह ली है, यानी वह केवल चार महीनों के लिए ग्रुप के अंतरिम चेयरमैन बनकर लौटे हैं. इस बीच समिति ने नया चैयरमैन का चुनाव करना है और इस समिति में खुद रतन टाटा भी हैं. इस बात की आशंका जताते हुए कि मिस्त्री बोर्ड के फैसले को अदालत में चुनौती दे सकते हैं, टाटा समूह ने कैविएट फाइल कर दिया है. साइरस मिस्त्री ने खुद को हटाए जाने को भारत में 'अभूतपूर्व' बताया है. साइरस के ऑफिस की ओर से कहा गया है कि 'इस स्टेज पर' साइरस किसी तरह का कोई कानूनी कदम नहीं उठाने जा रहे हैं. 100 बिलियन डॉलर के ग्रुप के बोर्ड में नौ सदस्य हैं. उनमें से छह सदस्यों ने साइरस को हटाने के लिए वोट दिया जबकि दो सदस्यों ने वोटिंग से खुद को अलग रखा. नियमानुसार, मिस्त्री के पक्ष में कोई वोट नहीं डला. रतन टाटा के लंबे समय से लीगल अडवायजर हरीश साल्वे ने कहा कि भारत की इस बहुआयामी कंपनी के परिवार के कुलपिता को लगा कि मिस्त्री यूके में टाटा के संपूर्ण स्टील कारोबार को समाप्त करके 'परिवार के रत्नों' में से एक को बेचने जा रहे थे. इसके साथ ही वह अमेरिका स्थित होटलों को भी बेचने जा रहे थे, जो समूह की प्रतिष्ठित ताज श्रृंखला का हिस्सा हैं. साल्वे ने जोर देकर कहा कि मिस्त्री को हटाने का फैसला रातोंरात नहीं लिया जा सकता. कल मोहन पराशरन ने कहा था कि टाटा बोर्ड का साइरस मिस्त्री को हटाए जाने का फैसला ग्रुप के अधिकारक्षेत्र में आता है. मोहन उन टॉप वकीलों में से एक हैं जिनसे टाटा ग्रुप ने परामर्श किया था. मोहन ने यह बात से कही. उन्होंने यह भी कहा, 'टाटा बोर्ड के पास साइरस को हटाए जाने के लिए बहुमत की आवश्यकता थी जोकि उनके पास था'. उन्होंने बताया था कि टाटा ने साइरस से बोर्ड मीटिंग से पहले एक निजी मीटिंग करके खुद ही पद त्याग देने के लिए कहा था.