रविश अहमद

पश्चिम उत्तर प्रदेश यू तो हमेशा से क्राईम के मामले में बेहद संवेदनशील क्षेत्र माना जाता रहा है किन्तु जनपद सहारनपुर हमेशा अपराधों के ग्राफ में निचले पायदानों पर गिना जाता रहा था। गत 10 वर्षों में यूपी के क्राईम ग्राफ में सहारनपुर का क्राईम इतना बढ़ा कि कभी पूरी दुनिया में क्राईम कैपिटल के प्रमुख शहरों में गिना जाने वाला मुज़फ्फरनगर भी पिछड़ता हुआ नज़र आता है। गौरतलब है कि पिछले 10 वर्षों में सहारनपुर में जितने भी पुलिस कप्तान चार्ज पर रहे, एकाध को छोड़ दिया जाये तो बाकी को अपराधों ने ही चार्ज से हटाया। पिछला शासन जब बहुजन समाज पार्टी सत्ता में थी तबसे ही शहर का सबसे पॉश और वीआईपी क्षेत्र जो कि नये शहर के नाम से जाना जाता है, थाना सदर क्षेत्र प्रमुखतः अपराधों की ज़द में रहा। कार, बाईक चोरी, चेन स्नेचिंग, अपरहण के बाद हत्या और शासन जाते-जाते सहगल परिवार हत्याकाण्ड, कग्गा गैंग द्वारा पुलिसकर्मियों पर हत्या और जानलेवा हमले इन सब ने मिलाकर जो अपराधों की इबारत लिखी उसकी दहशत इतनी रही कि देहात क्षेत्र के कई थाने उस समय अपनी खुद की सुरक्षा के लिये अंधेरा होते ही थानों के मुख्य द्वार बन्द कर लिया करते थे। तबसे अपराधों की बाढ़ अभी तक उफान पर है। आईपीएस दीपक रतन, डॉ. मनोज कुमार, नितिन तिवारी और राजेश पाण्डेय जैसे कुछ कप्तानों को छोड़कर अधिकतर को या तो राजनीति या फिर अपराध लील गये। इस बीच सहारनपुर परिक्षेत्र के पुलिस उपमहानिरीक्षकों में केवल एल.के. एन्टनी एवं रघुवीर लाल का नाम ही लिया जा सकता है जिन्होने पुलिस कप्तानों तक से हर मामले में दौड़ लगवाने में कोर कसर नही छोड़ी और जनहित में स्वयं भी अत्यधिक सक्रिय रहे हैं।

कुछ दिन पहले आईपीएस प्रदीप कुमार यादव चार्ज से हटे तो आईपीएस मनोज तिवारी को सहारनपुर की कमान सौंपी गयी। नये एसएसपी आते ही जिस प्रकार स्वयं सड़कों पर उतर कर जनता से रूबरू हुए तो सकारात्मक आशाएं जगी किन्तु पहले ही सप्ताह में लूट, डकैती, हत्या, अपहरण और खुद पुलिस पर बदमाशों द्वारा किये गये हमलों से पुलिस महकमें की नींव हिलती नज़र आयी। जनता बेहद आक्रामक एवं रोषपूर्ण रवैये के साथ पुलिस से पेश आ रही है, तथा किसी भी मामले में फिलहाल जनता पुलिस पर विशवास नही कर पा रही है। ऐसे विपरीत समय में नये पुलिस कप्तान मनोज तिवारी कितनी सकारात्मक पुलिसिंग करा पायेगें, यह तो भविष्य ही बतायेगा किन्तु पुलिस महकमें को कुछ सकारात्मक एवं नकारात्मक पहलुओं पर गौर करने के बाद ही पुलिसिंग को चुस्त दुरूस्त करना होगा।
मसलन हाल के एक वर्ष में गैर जनपदों से थानेदारों और सिपाहियों की अधिकतम वाली संख्या जनपद की सुरक्षा में है वहीं कुछ पुराने पुलिसकर्मी जिनमें ड्राईवर, सिपाही, एचसीपी और दारोगा भी मौजूद हैं, किन्तु नये थानेदारों के हाथ में चार्ज आने और अपने तरीकों से पुलिसिंग कराने की उनकी सोच विफल हो रही है। ऐसा कतई नही कि जनपद में आये नये पुलिसकर्मी कर्तव्यहीन अथवा पुलिसिंग में विफल है या फिर अनुभव की कोई कमी है। कमी है तो जनता के मिजाज़ को पहचानने की तथा भौगौलिक परिस्थितियों को समझने की जिसके लिये उन्हे अभी और कुछ समय दिया जाना चाहिये। वहीं जनपद के पुराने पुलिसकर्मी अत्यधिक संवेदनषील क्षेत्रां, अपराधियों के तरीकों और यहां की भौगौलिक परिस्थितियों एवं क्षेत्र से बखूबी वाकिफ हैं। ऐसे में यदि उन पर कुछ समय के विश्वास कर आगे रखा जाये तथा जनपद में पिछले 2 वर्षों से आयी पुलिसकर्मियां की जमात को अभी पूरी परिस्थितियों से वाकिफ होने का समय दिया जाये तो शायद सुधार होना जल्द मुमकिन होगा।
हमारा यह लेख स्वतन्त्र रूप से हमारा खयाल है, यह किसी को नसीहत अथवा हिदायत हरगिज़ नही है, किन्तु अपराधियों के बेलगाम व बेखौफ होकर घूमना हर किसी को सोचने पर मजबूर कर रहा है।