लखनऊ। गणेश उत्सव का उल्लास हो या माँ दुर्गा की आराधना। सभी लोग ऐसे धार्मिक आयोजन विशाल तरीके से करते हैं। प्रतिमाओं के विसर्जन को लेकर कोई ठोस प्रयास नहीं हो रहे हैं। हम सभी को प्रशासन और पूजा समितियों के साथ सामंजस्य बनाकर नदी की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना होगा। प्रतिमाओं के विसर्जन को लेकर रणनीति तय करने की बहुत ज्यादा आवश्यक है। यह बात मनकामेश्वर मठ मंदिर की महंत देव्या गिरि जी महाराज ने सोमवार को मंदिर परिसर में पत्रकारों से कही।

महंत देव्या गिरि ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि जिला प्रशासन, नगर निगम, पुलिस प्रशासन को मिलकर प्रतिमाओं के विसर्जन के लिए ठोस रणनीति बनानी चाहिए। सभी को इस बात का ध्यान जरूर रखना चाहिए कि गोमती नदी को प्रदूषण मुक्त रखना होगा। आने वाले समय में पानी की समस्या विकराल रूप ले सकती है। पूजा कमेटियों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि प्रतिमाओं को इको-फ्रेंडली बनाना चाहिए। प्रतिमाओं का आकार भी सीमित होना चाहिए। महंत देव्या गिरि ने बताया कि प्रतिमाओं का भू विसर्जन भी एक बेहतर विकल्प है। कमेटियों को प्रशासन का पक्ष सुनकर उनका सहयोग करना चाहिए और प्रशासन को कमेटियों से सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश करनी चाहिए। विसर्जन स्थलों की स्वच्छता पर भी ध्यान देने की जरूरत है। विसर्जन का उचित स्थान तय होना चाहिए। दो दिन पहले झूलेलाल घाट पर विवाद हुआ, जो कि अनुचित है।

महंत देव्या गिरि ने कहा कि प्रतिमाओं के विसर्जन को लेकर कई मंदिरों के प्रमुख लोगों की एक राय और समर्थन है। जिसमें ठाकुरगंज के कल्याण गिरि मंदिर के प्रमुख सुमेर गिरि जी महाराज, अलीगंज के पुराने हनुमान मंदिर के प्रमुख गोपाल दास जी महाराज, टिकैतराय तालाब मेंहदीगंज के रामाधीन जानकी मंदिर के कौशल किशोर दास महाराज, शनि मंदिर रामानंद आश्रम के राम सेवक दास महाराज शामिल हैं। प्रतिमाओं के विसर्जन और गोमती की स्वच्छता को लेकर इन महात्माओं का भी एकमत है।

गणेश पूजा और दुर्गा पूजा के बाद प्रतिमाओं के विसर्जन सुनिश्चित हो। हम प्रशासन और पूजन समितियों से भी सहयोग की अपील करतें हैं।
शहर की परम्परागत पूजन समितियों द्वारा भगवान की प्रतिमाओं के सम्मानजनक विसर्जन की मांग करतें हैं। हम चाहतें हैं क़ि विसर्जन के दौरान प्राचीन मंदिर समिति पदाधिकारियों के सम्मान का ध्यान भी रखा जाये।

आदि गंगा गोमती गोमती में प्रतिमाओं का विसर्जन शहर से बाहर, और ज्यादा से ज्यादा पर्यावरण को ध्यान में रखकर किया जाये। चूँकि प्रतिमाएं मिटटी की होती हैं, जिनसे पर्यावरण क खतरा भी नहीं है।
अगर इसके बावजूद पारंपरिक प्रतिमा विसर्जन से प्रदूषण का खतरा नजर आता है तो, प्रसाशन को फैक्टरियों से गोमती में गिर रहे प्रदुषण को भी देखना होगा। अगर बाकी त्योहारों के मद्देनजर सुरक्षा, सुविधाएं दी जाती हैं तो प्रतिमाओं के विसर्जन का सम्मानजनक अधिकार और सहूलियतें दिन जाएँ।